मृत्युंजय विशारद की रिपोर्ट,
देवरिया 23 मई
बिना संस्कृति , संस्कार, सभ्यता के मानव जीवन अंधकार समान होता है। संस्कृति और संस्कार व्यक्ति को स्वाभिमानी बनाते हैं। यह जीवन खुशियो से भर देती है, अगर गहराई से सोचा जाए तो संस्कृति मानवता की आत्मा है। जिस प्रकार भूख को मिटाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार परिवार, समाज और राष्ट्र की उन्नति और विकास के लिए संस्कृति की आवश्यकता होती है। संस्कारों के कारण हमारा जीवन संस्कारी बनता है।

उक्त वक्तव्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गोरक्ष प्रांत के प्रांत प्रचारक सुभाष जी द्वारा वर्चुअल तकनीकी से कार्यकर्ता प्रबोधन विषय पर स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा ।

उन्होंने कहा की वर्तमान समय में इस वैश्विक संकट की घड़ी में हम सभी को मजबूती से खड़ा होने की आवश्यकता है। जो साहस रखते हैं वह विजय की तरफ अग्रसर होते हैं। आज इस वैश्विक महामारी, संकट की छाती पर पैर रखकर संघ के स्वयंसेवक उसे परास्त करने पर लगे हैं। संघ का स्वयंसेवक समाज में एक धनात्मक कार्य और आशा का वातावरण बना रहेहैं।
जबकि बहुत से लोग केवल सोशल मीडिया पर दिखते हैं, और जो नकारात्मक संदेश पहुंचाने का कार्य कर रहे।

उन्होंने कहा की आज इस वैश्विक महामारी में आयुर्वेद की शरण में पूरी दुनिया को जाना पड़ा। महर्षि पतंजलि द्वारा दिए गए योग शास्त्र को अपनाने हेतु विश्व बाध्य है। वैश्विक महामारी में सनातन संस्कृति एवं विचार पद्धति को सभी स्वीकार कर संकट से उबरना चाहते हैं। आयुर्वेदिक औषधियों एवं योग शास्त्र के माध्यम से वैश्विक महामारी पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए अपने सनातन संस्कृति, संस्कारों की रक्षा उनकी चिंता करना हमारा परम कर्तव्य है।
संस्कारों के कारण हमारा जीवन संस्कारी बनता है। सफल जीवन के लिए यह सार्थक मूल मंत्र है।
ऋषि, देवता एवं पूर्वजों की कृपा से मनुष्य का जन्म प्राप्त होता है, और इन सभी के ऋण को उतारना हम सभी का नैतिक कर्म व दायित्व है।

पर्यावरण संरक्षण पर उन्होंने कहा कि पर्यावरण की सुरक्षा भी हम सभी का नैतिक दायित्व है। इसके लिए मानव एवं प्रकृति का आपसी समन्वय सामंजस्य अत्यंत आवश्यक है। आज इस वैश्विक महामारी में ऑक्सीजन की कमी इसका उदाहरण है।
गाय के कंडे पर 10 ग्राम देसी घी गिराने से 2 टन ऑक्सीजन बनता है जिससे समस्त वातावरण वायु शुद्ध होती हैं।
हवन,यज्ञ से वातावरण की शुद्धि होती है। हमारे ऋषि मुनि इन्ही का प्रयोग कर, वातावरण को शुद्ध रखते थे, वर्षा कराते थे। समाज की, प्रकृति की पर्यावरण में संतुलन बना रहे, चिंता करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य व धर्म है।