मऊ / पूर्वांचल में मऊ का साड़ी बुनाई के क्षेत्र में प्रमुख स्थान है । साड़ी , लुंगी इत्यादि की बुनाई यहां की पहचान से जुड़ी है । साड़ी बुनाई का हुनर मऊ क्षेत्र की आबो हवा में घुल मिलकर यहां की रोजमर्रा की जिंदगी बन चुका है ।



मऊ की बनी साड़ियां जो देश विदेश में विशिष्ट साड़ियों के रूप में पहचानी जाती हैं यहां के बुनकरों की कला का उत्कृष्ट नमूना है । मुग़लो के शासनकाल में पनपी तथा शनैः शनैः फली फूली यह कला आज अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है । हैण्डलूम की सुरीली आवाज़ अब पॉवरलूम की खटर – पटर में तब्दील हो गयी है ।
आज बुनकर अपने इस पुश्तैनी कारोबार को बदलने के लिए मजबूर हो रहा है । बुनकरों के हित में चलाई जा रही योजनाओं का लाभ ग़रीब बुनकरों को न मिल पूंजीपति मालिकों में ही सिमट जा रहा है । गरीब बुनकर और गरीब होता जा रहा है । उसे अपनी मेहनत का भरपूर मुआवजा भी नहीं मिल पा रहा है । बुनकर अपने पुश्तैनी व्यापार के प्रति सशंकित है । उसे कपड़ा तैयार करने से लेकर बेचने तक अनेक समस्याओं से रुबरु होना पड़ता है ।
हालांकि प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी ” एक जनपद – एक उत्पाद योजना ” में जनपद के वस्त्र उद्योग को चयनित करने से बुनकरों में अपने अतीत की बुलंदियों और आने वाले सुनहरे भविष्य को लेकर आशा की नई किरण जगी है ।
बुनकरों के ख़्वाब ख़्वाब ही रहेंगे या सच भी होंगे ? आने वाला कल बताएगा किंतु शासन का फर्ज बनता है कि इस तरफ विशेष ध्यान देते हुए मऊ जनपद के लिए इस संदर्भ में विशेष पैकेज की घोषणा करें जिससे मुरझाए बुनकरों के चेहरों पर पुनः खुशी लौट सके ।