मऊ / पूर्वांचल में मऊ का साड़ी बुनाई के क्षेत्र में प्रमुख स्थान है । साड़ी , लुंगी इत्यादि की बुनाई यहां की पहचान से जुड़ी है । साड़ी बुनाई का हुनर मऊ क्षेत्र की आबो हवा में घुल मिलकर यहां की रोजमर्रा की जिंदगी बन चुका है । प्रचलित मान्यताओं के अनुसार मऊ में तानसेन नामक जुलाहे ने प्रथम करघे की स्थापना की और धागे की कलाकारी से अत्यंत सुंदर कपड़े का उत्पादन किया ।धीरे-धीरे तानसेन से अन्य लोगों ने भी इस कला को सीखा तथा करघा उद्योग इस क्षेत्र में बढ़ने लगा । एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार मुग़ल बादशाह शाहजहां की लड़की जहाँआरा ने शाही मस्जिद का निर्माण कराया था जो आज भी शाही कटरे की मस्जिद के रूप में मौजूद है । इसी निर्माण के दौरान मजदूरों तथा कारीगरों की एक बड़ी संख्या मुगलों के साथ आयी । इन मजदूरों में विभिन्न पेशे से संबंधित लोग थे , जिनमें बड़ी संख्या में बुनकर भी थे । उपरोक्त भवनों के निर्माण के बाद इन्ही बुनकरों ने अपना स्थाई रुप से यही निवास बना कर बुनाई का कार्य शुरु किया जो लगातार आज भी जारी है ।
मऊ की बनी साड़ियां जो देश विदेश में विशिष्ट साड़ियों के रूप में पहचानी जाती हैं यहां के बुनकरों की कला का उत्कृष्ट नमूना है । मुग़लो के शासनकाल में पनपी तथा शनैः शनैः फली फूली यह कला आज अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है । हैण्डलूम की सुरीली आवाज़ अब पॉवरलूम की खटर – पटर में तब्दील हो गयी है ।

आज बुनकर अपने इस पुश्तैनी कारोबार को बदलने के लिए मजबूर हो रहा है । बुनकरों के हित में चलाई जा रही योजनाओं का लाभ ग़रीब बुनकरों को न मिल पूंजीपति मालिकों में ही सिमट जा रहा है । गरीब बुनकर और गरीब होता जा रहा है । उसे अपनी मेहनत का भरपूर मुआवजा भी नहीं मिल पा रहा है । बुनकर अपने पुश्तैनी व्यापार के प्रति सशंकित है । उसे कपड़ा तैयार करने से लेकर बेचने तक अनेक समस्याओं से रुबरु होना पड़ता है ।
हालांकि प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी ” एक जनपद – एक उत्पाद योजना ” में जनपद के वस्त्र उद्योग को चयनित करने से बुनकरों में अपने अतीत की बुलंदियों और आने वाले सुनहरे भविष्य को लेकर आशा की नई किरण जगी है ।
बुनकरों के ख़्वाब ख़्वाब ही रहेंगे या सच भी होंगे ? आने वाला कल बताएगा किंतु शासन का फर्ज बनता है कि इस तरफ विशेष ध्यान देते हुए मऊ जनपद के लिए इस संदर्भ में विशेष पैकेज की घोषणा करें जिससे मुरझाए बुनकरों के चेहरों पर पुनः खुशी लौट सके ।