🔴जयनगर /स्वतंत्रता के 75 वर्ष* पूरे कर हम एक ऐसे नए कालखंड में प्रवेश करने जा रहे हैं जहां *चुनौतियों के साथ असीम संभावनाएं हमारे भाग्य का निर्धारण करने के लिए प्रतीक्षारत* है। हमें न केवल यह सुनिश्चित करना होगा कि इन संभावनाओं के अनुरूप ही आगे बढ़े, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अपने अधिकारों को लेकर हम जितने सजग हैं उतने ही कर्तव्य के लिए भी सजग हो। ऐसा करके ही हम उन सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं जो अब कहीं अधिक निकट और आसान दिख रहे हैं। यह एक अलग तथ्य है कि अब भारत एक बलशाली और वैभवशाली राष्ट्र है। विश्व समुदाय के बीच भारत की प्रतिष्ठा और महत्ता भी बढ़ी है, इसी कारण वैश्विक स्तर पर सभी देश भारत के प्रति कहीं अधिक आशावान है।

किसी व्यक्ति और समाज की तरह राष्ट्र के समक्ष कुछ चुनौतियां उपस्थित रहती हैं इनका सामना तभी आसानी से किया जा सकता है जब *राष्ट्र निर्माण में के यज्ञ* में देश की जनता भी भागीदार बनेगी और इस मंत्र को आत्मसात करेगी कि कोई भी राष्ट्र तभी सबल और सफल बन कर विश्व को आईना दिखा सकता है। जब वहां के लोग एकजुट होकर उन समस्याओं के निदान में सहायक बनते हैं, जो उनकी प्रगति में बाधक बनती रहती है।
*समृद्धिशाली, शक्तिशाली भारत* हम सब का सपना है लेकिन यह सपना तब तक पूर्ण नहीं होगा जब तक इसमें भारतीय मूल्यों का समावेश नहीं होगा।
*भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं* की शुरुआत पश्चिम से काफी समय पहले हो गई थी और भारत का प्रजातंत्र हर मामले में पश्चिमी प्रजातंत्र से ज्यादा समावेशी और समृद्ध था यही वजह थी कि भारतीय संविधान के निर्माताओं ने उन्हीं प्रजातांत्रिक मूल्यों को आधुनिक व्यवस्था में जीवित रखा।
इस वैभव के साथ साथ देश को सामाजिक व आर्थिक समानता की ओर चलना होगा, दरअसल इस गौरवशाली अमृत काल की यात्रा का यह महत्वपूर्ण पड़ाव होगा। *वैभव, संपन्नता और शक्ति* के मायने तभी सार्थक होते हैं जब सामाजिक व आर्थिक असमानता पर विजय पाई जा सके। हम विश्व गुरु बनने की कल्पना को तभी साकार कर सकते हैं जब हम सामाजिक और आर्थिक रूप से सुदृढ़ होंगे। हमें कोऑपरेटिव फेड्रिजम के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है। अब जरूरत *कोऑपरेटिव, कंपटीशन, फेड्रिजम* की है जो हमें विकास की नई ऊंचाई पर ले जाने को प्रयासरत रहे। हम 25 साल के अमृत काल के लिए चर्चा करते हैं तो पता चलता है कि मुसीबतें हैं, चुनौतियां हैं, बहुत कुछ है। यदि हम इसे कमत्तर आकते है तो यह हमारी सबसे बड़ी भूल होगी, हमें इसके समाधान का रास्ता खोजना होगा।
मैं भारत के भविष्य के स्वरूप का परिचय भी भारत की निहित शक्ति में छिपा देखता हूं भारत बढ़ेगा इन्हीं शक्तियों के आधार पर। वर्ष *2047 का भारत सिर्फ समृद्धशाली, शक्तिशाली ही नहीं बल्कि एक समावेशी और उदार भारत हो*, अमीर और गरीब की खाई मिट सके, छात्र – युवा – नौजवान खुशहाल हो, हर व्यक्ति को अपने विकास की संपूर्ण आजादी हो। वास्तव में हमारे भारत में ऐसे समाज का निर्माण हो जो महात्मा गांधी की कल्पना का *रामराज्य* जैसा हो।
*76वें स्वतंत्रता दिवस* के अवसर पर अमृतकाल की यात्रा में संकल्प लें नव भारत के निर्माण का, भारत को विश्व गुरु बनाने का, अमीरी – गरीबी की खाई को पाटने का, जातीवाद – क्षेत्रवाद – भाषावाद को समाप्त करने का। आईए एकजुट होकर *कोऑपरेटिव, कंपटीशन और फेड्रिजम* के मूल मंत्र को आत्मसात करें और *अमृतकाल की स्वर्णिम यात्रा* को रेखांकित करने का पुनः संकल्प लें….
सादर!!!!
*डॉ. एस. के. सिंह*
सहायक प्रोफेसर
वाणिज्य विभाग, डी.बी. कॉलेज, जयनगर (बिहार)