🔴मकसूद अहमद भोपतपुरी

🔻भाटपार रानी,देवरिया।

*मन्दिर में खुदा है, न मस्जिद में खुदा है।*
*जिस दिल में हो मुहब्बत,उस दिल मे खुदा है।।*

शायर की ये पंक्तियां भाटपार रानी कस्बा निवासी कमल पटेल के परिवार पर सटीक बैठती हैं, जो सैकड़ों वर्षों से मुहर्रम के मौके पर लगातार ताजिया बनाते चला आ रहा है।पटेल परिवार को मुहर्रम पर्व का बेसब्री से इंतिजार रहता है।कौमी एकता को मजबूत करने वाला उनके इस नेक काम की चर्चा पूरे क्षेत्र में होती है।
भाटपार रानी कस्बा निवासी पत्रकार समन्वय समिति के जिलाध्यक्ष कमल पटेल ने बताया कि उनके परदादा अयोध्या पटेल के जमाने से उनके यहां ताजिया बनाने का सिलसिला शुरू हुआ था, जो आज भी बदस्तूर जारी है।देश मे समय-समय पर जाति व मजहब के नाम पर तमाम विवाद हुए,लेकिन इस परिवार की आस्था को कोई डिगा नहीं सका।पटेल परिवार के लोग बकायदे मुस्लिम रीति-रिवाज के मुताबिक सातवीं मुहर्रम को मिट्टी खोदने,आठवीं मुहर्रम को चौक कसने का काम करते हैं।वहीं नवीं मुहर्रम की रात ताजिया कसकर चौक पर रखा जाता है।इस परिवार के लोग झारी गाने व लकड़ी खेलने में भी रुचि रखते हैं ।मुहर्रम के मौके पर परिवार की महिलाएं व्रत रखकर ताजिया के सामने खिचड़ी का चढ़ावा भी करती हैं।हर साल की तरह इस साल भी पटेल परिवार के लोग ताजिया निर्माण कार्य मे लगे हुए हैं।इस पर्व को लेकर परिवार के लोगों में जबरदस्त उत्साह है।वहीं पास-पड़ोस के लोग भी ताजिया निर्माण में पटेल परिवार का हाथ बंटाते हैं।दसवीं मुहर्रम के दिन ताजिया को कंधे पर लादकर या हसन, या हुसैन का नारा लगाते हुए कस्बा के अन्य ताजिए से मिलान करते हैं।वहीं मेला स्थल पर ताजिया को ले जाया जाता है।

🟥मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना: कमल
भाटपार रानी कस्बा के हिन्दू तजियादार व पत्रकार कमल पटेल उर्दू के मशहूर शायर अल्लामा इकबाल की पंक्तियों को दुहराते हुए कहते हैं कि- मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,हिंदी हैं हम वतन है हिन्दुस्तां हमारा।उन्होंने कहा कि जाति व मजहब के नाम पर लड़ना मूर्खों का काम है।सारे जग का पालनहार एक है।ईश्वर ने हमें सिर्फ इंसान बनाकर भेजा है।लेकिन दुनिया में आने के बाद हम लोग हिन्दू-मुसलमान में बंट जाते हैं।उन्होंने कहा कि हजरत इमाम हुसैन ने किसी जाति विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि अधर्म व अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते हुए शहादत प्राप्त किया था।हम लोगों को मुहर्रम के मौके पर ताजिया बनाकर आत्मिक सुकून मिलता है। अतः हमें जाति व धर्म के आधार पर नफरत नहीं फैलाना चाहिए।अनेकता में एकता हमारी सांस्कृतिक पहचान है।इसे बचाकर रखना है।