🟥वाराणसी / गंगापुर में मैरिज लान परिसर में चल रही नौ दिवसीय श्री रामकथा के दूसरे दिन रविवार को पावन प्रसंग में अवध के सुखनंदन व्यास जी महाराज ने प्रसंग सुनाया कि दक्ष ने एक यज्ञ किया। जिसमें अन्य देवताओं को निमन्त्रण दिया, किंतु शिव को नहीं बुलाया। सती अनिमंत्रित पिता के यहां गई और यज्ञ में पति का भाग न देखकर उसने अपना शरीर त्याग दिया।

इस घटना से क्रोधित होकर शिव ने अपने गणों को भेजा। जिन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। शिव सती के शव को कंधे पर लेकर विक्षिप्त घूमते रहे। यज्ञ में अपना पूजन न होने पर भगवान शंकर एक बार भयंकर भड़के थे और दक्ष प्रजापति का अश्वमेध यज्ञ नष्ट करवा दिया था।

दक्ष प्रजापति के यज्ञ के लिए भगवान विष्णु समेत सब देवता और महर्षि पृथ्वी लोक पहुंचे। तब पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि क्या समस्या है। सब देवता यज्ञों में जाते हैं पर आप नहीं जाते? शिव ने जवाब दिया कि ये देवताओं के बनाए नियम हैं। उन्होंने किसी यज्ञ में मेरा भाग नहीं रखा है। पहले से यही रास्ता चल रहा है।

तो हमें भी इस पर ही चलना चाहिए। यह सुनकर पार्वती दुखी हो गईं बोलीं कि आप इन सबमें श्रेष्ठ हो, फिर भी आपको कोई याद नहीं करता। यह सुनकर भगवान शिव के अंतर्मन में अंहकार विराजमान हो गया। उन्होंने यज्ञ में तबाही मचा दी। कोई तोड़फोड़ में जुट गया और किसी ने ब्रह्म मंडप में आग लगा दी। तब इंद्र और बाकी देवता घबरा गए और हाथ जोड़कर बोले कि महाराज आप कौन हैं? वीरभद्र बोले- न देवता हूं, न दैत्य हूं. कौतुहल से भी नहीं आया मैं तो शिव-पार्वती की आज्ञा से आया हूं. तुम लोग उन्हीं की शरण में जाओ।

तब प्रजापति दक्ष ने मन ही मन भगवान शिव का स्मरण किया। शिव प्रकट हुए और बोले- बताओ तुम्हारा क्या काम करूं? दक्ष ने प्रार्थना की जो भी खाने-पीने की चीजें और यज्ञ का सामान तबाह हुआ, वह बहुत मेहनत से जुटाया गया था। बस आपकी कृपा से वह सब खराब न हो जाए और दक्ष रूपी अहंकार को काट डाला।