✍️रिपोर्ट सत्येंद्र यादव

🟥मथुरा बलदेव – भाकियू भानु के बल्देव कैम्प कार्यालय पर कार्यकर्ताओं की ओर से महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सांसद, पत्रकार राजा महेन्द्र प्रताप सिंह को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्दांजलि अर्पित कर केंद्र सरकार से उनको भारत रत्न देने की मांग की गयी। राजा महेंद्र प्रताप का स्वर्गवास आज ही के दिन 29 अप्रैल, 1979 को हुआ था।
बरिष्ठ किसान नेता, प्रदेश महासचिव रामवीर सिंह तोमर ने कहा कि राजा साहब का जीवन त्याग और बलिदान से भरा हुआ है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर देश के लिए कार्य करने की जरूरत है। राजा साहब भारत रत्न थे। जिस प्रकार भगवान राम और गौतम बुद्ध ने राजपाठ और वैभव छोड़कर त्याग किया था, उसी प्रकार राजा महेन्द्र प्रताप ने भी 32 सालों तक विदेशों में जाकर भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। राजा महेंद्र प्रताप ने हिन्दू-मुस्लिम धर्म की बजाय एक अलग ‘प्रेम धर्म’ में यकीन रखते थे। 1909 में वृन्दावन में उन्होंने ‘प्रेम महाविद्यालय’ की स्थापना की, जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत का पहला केंद्र था। बीएचयू के संस्थापक मदन मोहन मालवीय इसके उद्घाटन में शामिल हुए थे। इस बात से महात्मा गांधी भी प्रभावित हुए थे और उन्होंने अपने अखबार ‘यंग इंडिया’ में भी उनकी तारीफ की थी।
राजा महेंद्र प्रताप देश के इकलौते राजा थे, जिन्होंने अपनी भूमि, संपत्ति, शिक्षण संस्थानों को किसानों को देकर स्वरोजगार और शिक्षा का उजियारा किया। राजा महेंद्र प्रताप आजादी के बाद मथुरा से लोकसभा के सांसद तो रहे ही साथ ही उन्होंने अखंड हिंदुस्तान के लिए एक ऐसी मुहिम चलाई, जिसकी बदौलत हिंदुस्तान के कई सूबे एकजुट हुए। इतना ही नहीं
जब पूरा हिंदुस्तान अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था काबुल जाकर अफगानिस्तान में
एक दिसंबर 1915 को पहली अनंतिम भारत सरकार बनाई थी और वे उसके राष्ट्रपति बने थे, मौलाना बरकतउल्ला उनके प्रधानमंत्री, ओबेदुल्ला सिधी गृहमंत्री और चंपक रामन पिल्लई विदेश मंत्री थे। वहीं पर उन्होंने आजाद हिद फौज की स्थापना की थी । उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए रूस ,चीन ,जापान, जर्मन और तुर्की आदि देशों का समर्थन प्राप्त किया । हालाकि 1919 में अंग्रेजों के दबाव के चलते उनकी सरकार को काबुल से हटा दिया गया था। उन्होंने मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़ के लिए अपनी जमीन दान की थी ताकि शिक्षा का प्रचार प्रसार हो सके। देश को सब कुछ न्योछावर कर देने बाले महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को सरकार ने एक डाक टिकट जारी करके सम्मान तो दिया, लेकिन उनके कार्यों और योगदान को देखते हुए सरकार और इतिहासकारों ने असली स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों, बलिदानों के साथ राजा महेंद्र प्रताप का भी सही प्रकार से मूल्यांकन नहीं किया। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए लगाया। भले ही साल 1932 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किए गए हो, लेकिन हिंदुस्तान में न उन्हें सर्वोच्च सम्मान मिला, और हिंदुस्तान के नागरिक तो उनकी जयंती और पुण्यतिथि तक भूल गए हैं। राजा महेंद्र प्रताप सिंह को देश के सर्वोच्च सम्मान देने की मांग लंबे समय से उठती रही है। प्रधानमंत्री मोदी जरूर इस बात पर गौर करेंगे। पुण्यतिथि पर पुष्प अर्पित करने बालों में नरेंद्र उपाध्याय उर्फ नंदो, जगदीश पांडेय, रविंश कुमार, अकबर खान, समीम खान, सोनू, विपिन कुमार, महेंद्र कुमार, हिमांशु, विशाल, हरिओम, सोनू कुमार, देवेंद्र सिंह चौधरी, शिवराम, टीटू गोयल आदि उपस्थित हुए।