भगवान बलभद्र(अग्रज) और भगवान कृष्ण(अनुज) को जानें और सीख लें उनसे, आनंदमय होगा जीवन

बलभद्र और कृष्ण की तरह भाई भाई के बीच प्रेम और प्यार भरा संबंध बनाएं – डॉ अरविन्द वर्मा, चेयरमैन

✍️ANA/Indu Prabha

🟥पटना। भगवान बलभद्र जन्मोत्सव के अवसर पर सूबे के कोने कोने से आए हुए बलभद्र बंशियों का राजधानी पटना में स्वागत करते हुए अखिल भारतीय व्याहुत कलवार महासभा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी एवं कलवार सेवक समाज के नेशनल चेयरमैन डॉ अरविन्द वर्मा ने मीडिया से कहा भगवान कृष्ण की गाथा हर लोग गाते हैं, मगर भगवान बलभद्र जी की शक्तियों के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। व्याहुत कलवार के तो कुल देवता हैं भगवान बलभद्र। औरों के लिए खासकर किसानों के लिए देवता हैं क्योंकि भगवान बलभद्र ही हलधर हैं। आगे डॉ वर्मा ने कहा भगवान बलभद्र बहुत शक्तिशाली थे और उन्होंने कई युद्ध लड़े थे लेकिन उनके महाभारत युद्ध में शामिल नहीं होने के कई कारण थे।कृष्ण को विष्णु तो बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है और कहा जाता है कि जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान

 

 

 

बलभद्र पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नन्द बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणीजी के गर्भ में पहुंचा दिया इस कारण उनका एक नाम संकर्षण पड़ा था। भगवान बलभद्र के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए डॉ वर्मा ने कहा भगवान बलभद्र का विवाह रेवती से हुआ था और बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण ही उन्हें बलभद्र कहते हैं। भगवान बलभद्र को बलराम भी कहते हैं। इसी के साथ उनके नाम से मथुरा में दाऊजी का प्रसिद्ध मंदिर है। जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ की रथयात्रा में भगवान बलभद्र का भी एक रथ होता है। आगे डॉ वर्मा ने दिवंगत एक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलभद्र ने श्रीकृष्ण को कई बार समझाया कि हमें युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही हमारे मित्र हैं। ऐसे धर्मसंकट के समय दोनों का ही पक्ष न लेना उचित होगा। लेकिन कृष्ण को किसी भी प्रकार की कोई दुविधा नहीं थी। उन्होंने इस समस्या का भी हल निकाल लिया था। उन्होंने दुर्योधन से ही कह दिया था कि तुम मुझे और मेरी सेना दोनों में से किसी एक का चयन कर लो। दुर्योधन ने कृष्ण की सेना का चयन किया। महाभारत में वर्णित है कि जिस समय युद्ध की तैयारियां हो रही थीं और एक दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलभद्र, पांडवों की छावनी में अचानक पहुंचे। दाऊ भैया को आता देख श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर आदि बड़े प्रसन्न हुए और सभी ने उनका आदर किया। उसके बाद सभी को अभिवादन कर बलभद्र, धर्मराज के पास बैठ गए और फिर उन्होंने बड़े व्यथित मन से कहा कि ”कितनी बार मैंने कृष्ण को कहा कि हमारे लिए तो पांडव और कौरव दोनों ही एक समान हैं। दोनों को मूर्खता करने की सूझी है। इसमें हमें बीच में पड़ने की आवश्यकता नहीं, पर कृष्ण ने मेरी एक न मानी। कृष्ण को अर्जुन के प्रति स्नेह इतना ज्यादा है कि वे कौरवों के विपक्ष में हैं। अब जिस तरफ कृष्ण हों, उसके विपक्ष में कैसे जाऊं? भीम और दुर्योधन दोनों ने ही मुझसे गदा सीखी है। दोनों ही मेरे शिष्य है। दोनों पर मेरा एक जैसा स्नेह है। इन दोनों कुरुवंशियों को आपस में लड़ते देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता अतः मैं तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं। अखिल भारतीय व्याहुत कलवार महासभा के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी डॉ अरविन्द वर्मा ने समाज के हर वर्ग के लोगों से आग्रह किया कि भगवान बलभद्र (अग्रज)और भगवान कृष्ण (अनुज) जैसे बड़े छोटे भाई के बीच प्यार भरे भाईचारे सा संबध को अपनाएं और भाई भाई में प्रेम और आपसी मधुर संबंध बनाए रखें। परिवार और समाज के लिए बेहतर होगा।