बिहार के टमटम चालकों को प्रति वर्ष 50000/- पचास हजार रुपए की अनुदान दे सरकार – डॉ अरविन्द वर्मा, चेयरमैन

टमटम चलाना ही मेरे परिवार का मुख्य साधन – मोo तौकी

✍️ANA/Indu Prabha

🟥खगड़िया (बिहार)। आईए, मैं आपको इतिहास के पन्नों में अंकित विलुप्त हो गए घोड़ा गाड़ी ” टमटम” की कहानी सुनाऊं। प्राचीन जमाने में घोड़ा गाड़ी से बग्घी बना कर बड़े बड़े शहंशाह सवारी किया करते थे। मनमोहक नक्कासी और काफी सुसज्जित हुआ करता था बग्घी। बाद के दिनों में गरीब लोग भी बग्घी के अनुरूप साधारण ढंग से बनी घोड़ा गाड़ी को टमटम के रुप में प्रयोग कर सवारी करने लगे। वर्तमान आधुनिक युग में इक्के दुक्के टमटम ही जिले में नजर आने लगे। वक्त बदला, इंसान बदला, पहले की अपेक्षा सवारी करने का तरीका भी बदल गया। अब गरीब से गरीब लोग भी चार चक्का वाली अति आधुनिक मोटर गाड़ी की सवारी करना ही पसंद करते हैं। प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने आपको सबसे आगे निकलने की जुगाड़ में रहते हैं। उक्त बातें, बिहारी पॉवर ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ अरविन्द वर्मा ने इस मीडिया से एक खास मुलाकात के दौरान कही। आगे उन्होंने कहा एक मुद्दत के बाद मुझे ज़िला मुख्यालय स्थित एस डी ओ रोड में एक टमटम नजर आया। यह देख मैं प्रफुलित हुआ। मुझे बचपन की याद आ गई। जब मेरे पिता जी (स्वo कमलेश्वरी प्रसाद वर्मा) खगड़िया ज़िले के परबत्ता ब्लॉक में प्रधान सहायक के पद पर कार्यरत थे। परबत्ता में ही प्रखंड आवासीय क्वार्टर में हमलोग पूरे परिवार के साथ रहा करते थे। उन दिनों परबत्ता से अगुवानी घाट तक जाने के लिए टमटम ही सवारी हेतु मुख्य साधन था। खूब मजा आता था चढ़ने में। पुरानी यादों को तरोताजा करने के लिए मैं ने टमटम चालक को आवाज लगाई, अरे भैया जरा रुकना। वो रुका, बोला कहिए। मैंने कहा आपके टमटम की सवारी कर खुद चलाना चाटता हूं। टमटम चालक तैयार हो गया और खुद उतार कर मुझे टमटम पर चढ़ने को कहा। मैं फूले नहीं समाया। आव देखा न ताव। झटपट टमटम पर सवार होकर लगाम को थाम चाबुक लिया और लगाम ढीली कर कहने लगा चल चल… । धीरे धीरे टमटम आगे की तरफ बढ़ने लगा। कुछ देर तक काफी इंजॉय किया। लोग देख कर हंस रहे थे। मजा भी ले रहे थे। मैंने टमटम की सवारी समाप्त कर टमटम से नीचे उतरा और टमटम चालक से पूछने लगा भाई साहब आपका नाम ? उसने कहा मोo तौकीर मियां। कहां के रहने वाले हैं ? जबाब मिला मैं जलकौड़ा का रहने वाला हूं। वर्षों से टमटम चला रहा हूं। अब तो टमटम पर सवारी नहीं बैठता है। इसलिए सिर्फ माल लोड कर खगड़िया शहर से अपने गांव जलकौड़ा ले जाता हूं और ले आता हूं। इसी से प्राप्त भाड़े की राशि से अपने परिवार और अपने घोड़े का भरण पोषण करता हूं। हर रोज कितना कमा लेते हैं ? बाबू सात आठ सौ रुपए हो जाता है। घोड़ा के भरण पोषण पर हर रोज कितना खर्च आता है ? दो ढ़ाई सौ रुपए। परिवार के लिए पांच सात सौ रूपए बच जाता है। इस प्रकार मेरे परिवार का एक ही सहारा है “टमटम”। डॉ वर्मा ने तौकीर से मिली सहयोग के लिए उन्हें साधुवाद देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना भी की। डॉ वर्मा ने बिहार सरकार के मुख्य मंत्री से मांग किया कि बिहार के टमटम चालकों सह मालिकों को प्रति टमटम एवं घोड़ा पोषण के लिए प्रति वर्ष कम से कम 50000/- पचास हजार रुपए की राशि बतौर अनुदान दी जाय ताकि प्राचीन संस्कृति कायम रह सके।