बारूदी सुरंग के विस्फोट में दब गई एसपी केसी सुरेन्द्र बाबू हत्याकांड की फाइल

दो दशक के बाद भी नहीं सुलझा पाई है एसपी हत्याकांड की गुत्थी

5 जनवरी 2005 को नक्सलियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट कर एसपी सहित अन्य पांच पुलिसकर्मियों उड़ा दिए थे परखच्चे

साक्ष्य व गवाही नहीं देने के कारण पूर्व में सभी आरोपी हो चुके है बरी

फजीहत के बाद फरवरी 2011में फिर से केस का किया रीओपन

नक्सलियों के जाल में फंस गए थे एसपी व पुलिस कर्मी

बारूदी सुरंग के बाद पुलिसकर्मी आक्रामक रहती तो बच जाती एसपी की जान

अपनों के शहादत पर भी गवाही देने नहीं पहुंच रहे हैं पुलिसवाले

एडीजे-3 में साक्ष्य के लिए लंबित पड़ा है मामला

🟠डॉ शशि कांत सुमन

⭕मुंगेर। 5 जनवरी मुंगेर जिले के पुलिस महकमें के लिए काला दिन माना जाता है। इसी दिन 5 जनवरी 2005 को नक्सलियों ने मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित हवेली खड़गपुर थाना क्षेत्र के सोनरवा गांव के नजदीक नक्सलियों ने मुंगेर के जांबाज तत्कालीन एसपी के सी सुरेन्द्र बाबू सहित पांच पुलिसकर्मियों को बारूदी सुरंग विस्फोट कर परखच्चे उड़ा दिया था।

हत्याकांड के दो दशक के बाद भी पुलिस महकमा एसपी हत्याकांड की न तो गुत्थी सुलझा पाई और न ही हत्याकांड में शामिल नक्सलियों को अब तक सजा दिला पाई है। हां इतना सच है कि इस दिन पुलिस महकमे के आलाधिकारी सहित पुलिसकर्मी शहीद एसपी केसी सुरेन्द्र बाबू सहित

पुलिसकर्मियों के शहीदवेली पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित जरूर करते है। लेकिन अपने महकमे के एसपी हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में दिलचस्पी नहीं दिखाते है। इस हत्याकांड में पुलिस महकमे की कार्रवाई की बात करें तो इस हत्याकांड में गिरफ्तार हुए नक्सलियों के विरुद्ध गवाह (पुलिसकर्मी ) गवाही से मुकर गए। और पांच वर्ष तक ट्रायल चलने के बाद मुंगेर के प्रथम न्यायिक

दंडाधिकारी ने तीन आरोपियों राज कुमार दास, भोला ठाकुर, मंगल राय को बरी कर दिया। न्यायालय द्वारा एसपी हत्याकांड के आरोपी को बरी करने के बाद पुलिस महकमे की बहुत ही फजीहत हुई। इसके बाद फरवरी 2011 में इस केस को दोबारा खोलने का सीजेएम मुंगेर से आग्रह किया गया। नई चार्जशीट में मंगल राय, भोला ठाकुर, बचनदेव यादव, शत्रुघ्न यादव, रासो दास, नरेश रविदास, बड़का सुनील,प्रकाश यादव, मंटू यादव, भिखारी यादव, प्रताप राम और पंकज राम को शामिल किया

गया। दोबारा केस का शुरू किए जाने के बाबजूद वर्तमान में यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया हो ऐसा प्रतीत हो रहा है।

नक्सलियों के जाल में फंस गए एसपी केसी सुरेन्द्र बाबू

4 जनवरी 2005 को जमालपुर-किऊल रेलखण्ड के कजरा रेलवे स्टेशन तैनात पुलिसकर्मियों से नक्सलियों ने 4 राइफल , 1 कार्बाइन को लूट लिया था। उसी स्टेशन पर एक मतदाता पहचान पत्र पैसरा गांव का मिला था। इसी आधार पर 22 दिन पूर्व पदस्थापित जांबाज एसपी के सी सुरेन्द्र बाबू सशस्त्र बलों के साथ नक्सलियों के घर पकड़ के लिए नक्सलियों के जन्मस्थली

पैसरा गांव पहुंच गए। वहां पुलिस ने भोला कोड़ा के घर से एक बंदूक भी बरामद किया। छापेमारी से लौटने के क्रम में घात लगाए नक्सलियों ने हवेली खड़गपुर थाना क्षेत्र के सोनरवा गांव के नजदीक बारूदी सुरंग विस्फोट कर एसपी के सी सुरेन्द्र बाबू सहित पांच पुलिसकर्मियों को परखच्चे उड़ा दिए। शहीद होनेवाले पुलिसकर्मी में ध्रुव कुमार ठाकुर,ओम प्रकाश गुप्ता, मो अंसारी, शिवकुमार राम एवं चालक मो इस्लाम शामिल थे। उस वक्त सुल्तानगंज सब जोन

के वरीय कमांडर कमान सुबीर दा जबकि मारक दस्ते की कमान सुनील हेम्ब्रम उर्फ बड़का सुनील के पास थी। बताया जाता है कि एसपी को जाल में ही फसाने के लिए कजरा रेलवे स्टेशन पर मतदाता पहचान पत्र छोड़ा गया था।

बारूदी सुरंग के बाद पुलिसकर्मी आक्रामक रहती तो बच जाती एसपी की जान

5 जनवरी को हुए बारूदी सुरंग विस्फोट में जहां जिप्सी के साथ पुलिसकर्मियों की परखच्चे उड़ गए, लेकिन विस्फोट के दौरान जिप्सी का गेट खुल जाने के कारण एसपी के सी सुरेन्द्र बाबू जमीन गिर गए। जमीन पर गिरते ही जांबाज एसपी के सी सुरेन्द्र बाबू ने पिस्टल की गोली नक्सलियों की ओर झौंक दिया। लेकिन विस्फोट इतना भयावह था कि साथ चल रहे है अन्य पुलिसकर्मी जान बचाने के लिए तितरबितर

हो गए और इसी का फायदा उठाते हुए नक्सलियों ने एसपी के सी सुरेन्द्र बाबू के पास आकर गोलियों से छलनी कर दिया। बताया जाता है कि विस्फोट के बाद पुलिसकर्मी नक्सलियों पर टूट पड़ते तो एसपी के सी सुरेन्द्र बाबू की जान बच जाती।

अपनों के शहादत पर भी गवाही देने नहीं पहुंच रहे हैं पुलिसवाले

5 जनवरी को हुई एसपी हत्याकांड का मामला फिलहाल एडीजे-3 के न्यायालय में साक्ष्य के लिए लंबित है। इस मामले में तारापुर के तत्कालीन एसडीपीओ सनत कुमार श्रीवास्तव, अवर निरीक्षक रामानंद सिंह, सिपाही कृष्णानंद यादव, मार्शल टोकनो, भृगु सोरेन घटना के वक्त मौजूद थे और यह सभी इस मामले में गवाह है, लेकिन गवाही देने के लिए न्यायालय नहीं पहुंच रहे है। अब तो लोगों ने कहना शुरू कर

दिया है कि अपने ही साथी के शहादत पर गवाही देने के लिए न्यायालय नहीं पहुंच रहे है तो आम लोगों के केस में पुलिस का रवैया क्या होगा?यह तो भगवान ही जाने।