दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ और उसकी खिदमात
📝अज़:मुहम्मद शमीम अहमद नुरी मिस्बाही
अल्हम्दुलिल्लाह! दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ बाड़मेर न सिर्फ राजस्थान बल्कि हिंदुस्तान के ज़्यादातर हिस्सों में जहां कहीं तअ़लीम व तअ़ल्लुम का रिश्ता क़ाइम है मुहताजे तआ़रुफ नहीं|
ययूं तो राजस्थान में जितने भी मदारिसे अ़रबिया हैं सबकी अपनी-अपनी जगह अहम खिदमात व कारनामे हैं जिनका एहतिराम व एअ़तिराफ न करना नाहक़ शनाशी और हक़ाइक़ से चश्म पोशी है, मगर *दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ* ने अपने निहायत ही पसमाँदा व पिछड़े महल्ले वक़ूअ़ के बावजूद निहायत ही कम अ़रसे में अल्लाह तआ़ला के बे पायाँ फज़्ल व करम से जिस क़दर हैरतअंगेज़ व खुश कुन खिदमात अंजाम दी है वह इस दर्सगाहे इल्म व अदब को माज़ी क़रीब में क़ायम होने वाली दर्सगाहों में मुम्ताज़ व नुमायाँ करती है|
बिला शुब्हा *दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा* राजस्थान की एक अ़ज़ीम व मुम्ताज़ दीनी दर्सगाह है जिसे आज से लगभग 27 -28 साल पहले हुजू़र *मख्दूमे जहानियाँ सय्यदना सरकार जलालुद्दीन जहानियाँ जहां गश्त* के खानवादा से तअ़ल्लुक़ रखने वाले एक मर्दे दरवेश मुजाहिद- ए- थार नमूना-ए- असलाफ हज़रत *पीर सययद कबीर अहमद शाह बुखारी* अ़लैहिर्रहमा ने मुफ्ती -ए-आज़म राजस्थान हज़रत *अ़ल्लामा मुफ्ती मुहम्मद अशफाक़ हुसैन नईमी* अ़लैहिर्रहमा व दीगर उ़ल्मा व मशाइख व सादाते किराम की तहरीक व ख्वाहिश पर अपने मुरीदीन व मुतवस्सिलीन और मुख्लिसीन नीज़ अ़वामे अहले सुन्नत व मुखय्यिरीने क़ौम व मिल्लत की बे लौष कु़र्बानियों वतआ़वुन से इलाक़ा-ए-थार के निहायत ही पिछड़े हुए इलाक़ा “खावड़”के बढ़ते हुए बद मज़हबिय्यत पर क़दग़न{रोक} लगाने और मसलके आला हज़रत के फरोग़ व इस्तिहकाम और तअ़लीम व तअ़ल्लुम की नश्र व इशाअ़त के लिए इलाक़ा के मक़बूल तरीन वली-ए- कामिल क़ुतबे थार हज़रत पीर सय्यद हाजी अ़ाली शाह बुखारी अ़लैहिर्रमा के आस्ताना-ए-आ़लिया से मुत्तसिल *02 फरवरी 1993 ईस्वी* को क़ायम फरमाया और इसकी बुनियाद तवक्कल अ़लल्लाह खुलूस व लिल्लाहियत और तक़वा पर रखी जो इस इदारा का असली सरमाया है-
पीरे तरीक़त हज़रत *सय्यद कबीर अहमद शाह बुखारी* अ़लैहिर्रहमा की खुलुस व लिल्लाहियत, बुज़ुर्गों के फैज़ान और नुसरते खुदा वन्दी का ही नतीजा है कि इस दर्सगाहे इल्म व अदब ने अपनी मुख्सर सी मुद्दते क़याम में बहुत से फारिग़ुत्तहसील तल्बा के सरों पर दस्तारे फज़ीलत व हिफ्ज़ व क़िरात रखी, बहुत से मुस्तहिक़ हाथों को सनदे तकमील से नवाज़ा, न जाने कितने खाली सीनों में क़ुरआने अ़ज़ीम के तीसों पारे महफूज़ किए, कितने बे ज़बानों को क़ुव्वते गोयाई व सलीक़ा-ए-गुफ्तार बख्शा,कितने ही गैर मुहज़्ज़ब बच्चों को इस्लाम के आला और शाइस्ता अख्लाक़ व किरदार से आरास्ता किया, कितने ना तराशीदा ज़ेहनों को तअ़लीम व तरबीयत के जरिए फिकरे सलीम का मालिक बनाया और इसी तरह इस दर्सगाह ने ना जाने कितने जम्हूरियत पसंद ,मुहिब्बे वतन, अमन परवर और मुल्क व क़ौम के वफादार उ़ल्मा-ए-दीन पैदा किए और इसी तरह बानी-ए-इदारा हज़रत पीर साहब अ़लैहिर्रहमा और आप के शहज़ादा-ए- ग्रामी पीरे तरीक़त,नूरुल उ़ल्मा हज़रत अ़ल्लामा *स्ययद नूरुल्लाह शाह बुखारी* मद् ज़िल्लहुल आ़ली की मुख्लिसाना कोशिश व तहरीक के नतीजे में *”दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा ” ने अपने मातहत राजस्थान व गुजरात बिल खुसूस इलाक़ा-ए-थार के मुख्तलिफ मवाज़िआ़त में 80 तअ़लीमी शाखैं भी बशक्ले मदारिस व मकातिब क़ाइम कर ली हैं|* जो अपनी अपनी जगह नौनिहालाने इस्लाम को अ़रबी,उर्दू,दीनियात,हिंदी व अंग्रेजी और हिसाब वग़ैरह की तअ़लीम के साथ दीन व सुन्नियत की ग्राँ क़दर खिदमात अंजाम दे रही हैं|
*दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा की मौजूदा सूरते हाल:* यह इदारा दीनी व अ़सरी उ़लूम पर मुश्तमिल है |इस वक़्त इस इदारा में दरजाते प्राइमरी ,हिफ्ज़ व क़िरात और मुकम्मल दर्से निज़ामिया {अज़:एअ़दादिया ता:दरजा-ए- फज़ीलत ,<आ़लिमिय्यत व फज़ीलत के मुकम्म्ल कोर्स>}की तअ़लीम व तदरीस के साथ हाई स्कूल (दसवीं क्लास) तक दुनियावी तअ़लीम का भी बंदोबस्त *”अनवारे मुस्तफा माध्यमिक विद्यालय”* की शक्ल में है- गोया *यह इदारा दीनी व अ़सरी उ़लूम का हसीन संगम है|*
इस इदारा की सब से बड़ी पूंजी और बेश बहा दौलत इस का वह खास दीनी मिजाज़ है जो इसे अपने बानी और असलाफ व अकाबिरीने इस्लाम से वरषे में मिली है–गोया यह इदारा सिर्फ एक दानिशगाह ही नहीं बल्कि तरबियतगाह भी है| यही इसका खास इम्तियाज़ है कि यहाँ उ़लूम की तअ़लीम के साथ नुफूस की तरबियत भी होती है ,यह बयक वक़्त मदरसा व खानक़ाह दोनों है|मदरसा में आ़मतौर पर इल्म सिखाया जाता है और खानक़ाह में अख्लाक़ की ताक़त पैदा की जाती है |इल्म व अख्लाक़ ही वह दो गौहरे आबदार [चमकते मोती] हैं जिन्हें लेकर रसूले खुदा सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम इस दुनिया में जलवा गर हुए थे |
इदारा के ज़िम्मेदारान ने अपनी मुख्लिसाना कद्दो काविश और मेहनत व जाँफशानी से जहां एक तरफ तअ़लीमी मेअ़यार बुलंद करने के लिए लाइक़ व फाइक़, बासलाहियत, मेहनती, शफीक़ व मेहरबान असातिज़ा का इन्तिखाब किया वहीं तल्बा की अख्लाक़ी तरबियत पर खुसूसी तवज्जोह दी,साथ ही साथ अपने अख्लाक़ व किरदार और खिदमात से अ़वामी राब्ते को क़ाइम व दाइम कर रखा है |अगरचे कुछ शर पसंदों ने ना मुसाइद हालात भी पैदा करने की कोशिश की, मगर अरकाने इदारा ने उन का खनदा पेशानी से मुक़ाबला करते हुए हुज़ूर *हाफिज़े मिल्लत* अ़लैहिर्रहमा के इस फरमान पर अ़मल किया कि *”मेरे नज़दीक हर मुखालफत का जवाब काम है”* अल्लाह का शुक्र है कि आज शर व फितना फैलाने वाले पसपा व ज़ेर हो गए हैं और “दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा” का बोलबाला है |
यह सारी चीज़ैं *दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा* की अ़ज़ीम खिदमात, रफ्तारे तरक़्क़ी और उसकी सरगर्मीयों व कामियाबियों का वाज़ेह षुबुत हैं|
और ऐसा क्यों ना हो जबकि *दारुल उ़लूम के मुहतमिम व शैखुल हदीष हज़रत अ़ल्लामा अल्हाज पीर सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी मद्द ज़िल्लहुल आली खुद इसाबते फिकरो नज़र ,तदब्बुर व तफक्कुर,अ़फ्व व दरगुज़र,हिल्म व बुर्दबारी ,मुन्कसिरुल मिजाज़ी[आ़जिज़ी व इन्किसारी]करम व अ़ता,जूद व सखा और पैकरे इल्म व अ़मल हैं , और दूसरों को भी ऐसी ही रंग में देखना चाहते हैं जिनका मक़सद व हदफ ही क़ौम व मिल्लत की इस्लाह व तरबियत करना और तल्बा को इस लायक़ बनाना कि वह अपने इलाके़ व मुल्क की दूसरी जगहों में तब्लीग़े दीने मतीन का फरीज़ा अंजाम दे सकें_* आप इस इदारा और इदारा के मातहत चलने वाली तअ़लीमी शाखों की तअ़लीमी व तअ़मीरी तरक़्की़ के लिए दिन व रात कोशाँ रहते हैं !
*दर हक़ीक़त इस इदारा के लिए आप की कुर्बानियों ,अ़र्क़रेज़ियों, काविशों और कोशिशों का अंदाजा लगाना एक मुश्किल काम है , सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि आपने अपने आपको इस इदारा व दीने मतीन की खिदमात के लिए वक़़्फ कर रखा है |*
अब अहक़र इदारा के ज़िम्मेदारान,मुदर्रिसीन व मुलाज़िमीन और तल्बा की तरफ से अपने करम फरमाओं और दीनी हमदर्दी रखने वाले *अहले खैर हज़रात से गुजा़रिश करता है कि हमेशा की तरह आप अपने इस महबूब इदारा गहवारा-ए-इल्म व अदब “दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेलाऊ शरीफ” की उ़म्दा कार कर्दगी को मद्दे नज़र रखते हुए इसे अपनी खुसूसी इमदाद व तआ़वुन से नवाज़ कर इसके अज़ाइम और मंसूबों को पाया-ए-तकमील तक पहुंचाने में इदारा का तआ़वुन कर के इदारा के बाज़ुओं को मज़्बूत व मुस्तहकम फरमाएं!*
फिर आखिर में हम जुम्ला मुसलमानाने अहले सुन्नत का तहे दिल से शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने इस इदारा की अहमियत व ज़रूरत और इसकी खिदमात को ध्यान में रखते हुए अपना क़ीमती तआ़वुन पेश किया, और आप हज़रात से यही उम्मीद करते हैं कि इसी तरह हमेशा अपने इस दीनी सुन्नी तअ़लीमी मरकज़ “दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा” की तरफ अपनी खुसूसी तवज्जोह मब्ज़ूल फरमाएंगे– दारुल उ़लूम को ज़कात, सदक़ात फितरा व खैरात और अ़तिय्यात से नवाज़ कर इसके तअ़लीमी व तअ़मीरी उमूर में हिस्सा लेकर शुक्रिया का मज़ीद मौक़ा इनायत फरमाएंगे|
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