🔴दरभंगा, 04 जुलाई 2022

महात्मा गांधी महाविद्यालय, सुंदरपुर, दरभंगा के हिंदी विभाग द्वारा बहुद्देशीय भवन में प्रधानाचार्य डॉ रामदेव चौधरी की अध्यक्षता में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका विषय है-“तुलसीराम और ओमप्रकाश वाल्मीकि : दलित वैचारिकी विन्यास।”
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ आगत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित व स्नेहा कुमारी हिंदी के स्वास्ति
वाचन के द्वारा किया गया। तत्पश्चात आगत अतिथियों का स्वागत हिंदी विभाग के प्राध्यापकों द्वारा पाग, चादर, मोमेंटो, व पुष्प गुच्छ देकर किया गया।
कार्यक्रम में महात्मा गांधी महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ रामदेव चौधरी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि दलित साहित्यकार उस पीड़ा को झेलते हुए अपने साहित्य में उद्घाटित करने का प्रयास करते हैं,जो यथार्थ है । उन्होंने तुलसीराम की मणिकर्णिका एवं ओमप्रकाश वाल्मीकि की जूठन पर विशेष रुप से चर्चा किया।
मुख्य वक्ता के रूप में एमएलएस महाविद्यालय दरभंगा के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ रामचंद्र सिंह ‘चंद्रेश’ ने कहा कि क्या दलित साहित्य? क्या सवर्ण साहित्य?क्या आदिवासी साहित्य? आदि-आदि साहित्य के रूप में विभाजन आखिर क्यों? आज तो समाज को भी दो वर्गों में विभक्त किया है- स्त्री और पुरुष वर्ग। ठीक है यदि अलग ही किया तो पुरुषात्मक सत्ता क्यों? इस विषय पर गंभीरता से अपना विचार रखा।उन्होंने दलितों के बारे में कहा कि जो दलित है, वही ललित है और जो दलित शिक्षा का श्रृंगार कर लेता है उसका लालित्य जाग जाता है। वही डॉ तुलसीराम,ओमप्रकाश वाल्मीकि, श्योराज सिंह बेचैन, कालीचरण स्नेही, हीरा डोम, मुसाफिर बैठा आदि के रचनाओं के माध्यम से स्वानुभूति के आधार पर हिंदी साहित्य को प्रमाणिक दस्तावेज साबित होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि समग्र, बहुजन, श्रमण- जो दलितों का मूल है, इसी पर वे आगे बढ़ते रहते हैं। उन्होंने तुलसीराम और ओमप्रकाश वाल्मीकि के साथ-साथ श्योराज सिंह बेचैन से आपसी भेंट में जो भी मूलभूत बातें हुई उन बातों को यहां गंभीरता से रखने का प्रयास किया।
सह वक्ता एमआरएम महाविद्यालय दरभंगा के सहायक प्राध्यापक श्रीमती नीलम सेन ने कहा कि तुलसीराम के लेखन और उनका व्यक्तित्व दोनों में मेल खाते हैं। उन्होंने दलित वैचारिकी विन्यास पर चर्चा करते हुए आदिवासी साहित्य, वृद्ध विमर्श,विकलांग विमर्श के साथ छात्र छात्राओं का आह्वान करते हुए कहा कि छात्राएं अपने मन की बात लेखन के माध्यम से प्रकाशन जरूर करावे, जिससे महिलाओं के अधिकार और समस्याओं पर चर्चा की जा सके ।छात्राओं की उपस्थिति देखकर आज मैं आह्लादित हूं। बड़ी संख्या में छात्राएं इस सेमिनार में उपस्थित हुई है, इस जागृति के लिए मैं महाविद्यालय के व्यवस्थापक को धन्यवाद देना चाहूंगी।
प्रो हीरालाल सहनी ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण है व साहित्य जो विखंडित समाज है उस समाज को जोड़ने का काम करता है। साथ ही उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा न बनने की पीड़ा को व्यक्त किया।
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, कामेश्वरनगर,दरभंगा के पदाधिकारी डॉ कामेश्वर पासवान (डी आर-1) ने महाविद्यालय के शासी निकाय अध्यक्ष एवं सचिव को साधुवाद देते हुए सेमिनार के सफलता हेतु सभी शिक्षकों और छात्रों को शुभकामनाएं दी।
हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ भृगु प्रसाद ने स्वागत भाषण में कहा कि तुलसीराम और ओमप्रकाश वाल्मीकि दोनों साहित्यकार दलित रहते हुए उस पीड़ा को झेला है, जिस पीड़ा को दलित को झेलने पर विवश होना पड़ता है। उन्होंने उस पीड़ा को अपने साहित्य के माध्यम से उजागर करने का प्रयास किया और समाज को एक दिशा देने का काम किया है, जो समकालीन संदर्भ में एक सफल प्रयास है।
विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के वरीय शोध प्रज्ञ अनुराग कश्यप ने कहा कि दलित जहां विचार का केंद्र है, वहां बौद्ध धर्म ही स्थापना है। वे अपने लिए नहीं जीये,समाज के लिए जीए। जो समाज और शिक्षा के दल-दल में धंसा है, उस दल-दल से कैसे उबारे? इस पर विचार किया है। उन्होंने दलितों को किस दिशा में जाना चाहिए इस पर बल दिया है।
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के शोधार्थी राजन कार्तिकेय ने स्वरचित दलित कविता के माध्यम से सेमिनार के विषय को प्रसांगिक बनाया।
इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राध्यापकों में डॉ मदन लाल केवट,डॉ विश्वनाथ साह, प्रो उत्तीम लाल साहू, डॉ नसीमुद्दीन, डॉ एकनारायण पंजियार, डॉ विष्णु देव मंडल, डॉ चंद्रा कर्ण, डॉ किरण कुमारी,डॉ गणेश प्रसाद यादव,डॉ रामानेक महतो, प्रो अविनाश कुमार, डॉ नुरुल हसन, प्रो शिव कुमार नायक के अलावे स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के शोध प्रज्ञ धर्मेंद्र दास,राजन कार्तिकेय, स्नेहा, मनोज, पद्मा श्री आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही।
मंच संचालन हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ ज्वाला चंद चौधरी एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ अजय कुमार ने किया ।