🔴मक़सूद अहमद भोपतपुरी
भाटपार रानी,देवरिया।इस्लामी महीने शाबान की 14 वीं तारीख की रात मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाए जाने वाला शब-ए-बरात गुनाहों से निजात व बख्शीश दिलाने वाली रात है।यह रात हजारों रातों से बेहतर है।इस रात को सच्चे दिल से मांगी गई दुआएं खुदा कुबूल फरमाता है।यही वजह है कि इस रात को मुस्लिम बिरादरी के लोग खुदा की इबादत में गुजारते हुए अपने व अपने पुरखों की गुनाहों की बख्शीश व मग़फ़ेरत के लिए दुआएं करते हैं।इस रोज मस्जिदों व कब्रिस्तानों को सजाया जाता है।इस मौके पर हलवा पकाकर फातिहा भी पढ़ी जाती है।शब-ए-बरात दो शब्दों से मिलकर बना है— शब+ बरात।शब का अर्थ होता है–रात,जबकि बरात का अर्थ होता है—खुशी।यानि गुनाहों से माफी दिलाने वाली खुशियों की रात।इस बाबत जानकारी देते हुए भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के भोपतपुरा गांव निवासी मौलाना महमूद आलम कादरी,हाफिज रहमतुल्लाह ,कुशीनगर निवासी मौलाना अब्बास अली,करौंदी गांव निवासी मौलाना सिद्दीक अजीजी आदि ने बताया कि शब-ए-बरात काफी अहमियत, फजीलत,बरकत व रहमत भरी रात है।इस रात को रहमत के फरिश्ते आसमान से जमीं पर उतर आते हैं।वे हर एक दरवाजे पर हाजिरी देते हुए यह देखते हैं कि कौन सा बन्दा क्या कर रहा है।अगर इस रात को अपनी इबादत के जरिए बन्दा अपने रब को राजी कर ले,तो उस पर साल भर तक खुदा की रहमतें बरसती हैं।हदीश शरीफ के मुताबिक इस रात को खुदा फरमाता है कि जिस बन्दे को जो कुछ मांगना हो,मुझसे मांग ले।इस रात को सच्चे दिल से मांगी गई दुआएं खुदा कुबूल फरमाता है।इस रात को खुदा अगले साल भर के लिए अपने बन्दों को दी जाने वाली रोजी-रोटी की बजट सहित जन्म,मौत वगैरह तमाम कार्य योजनाएं भी तैयार करता है।इस रात को अगर बन्दा सच्चे दिल से अपनी गुनाहों से तौबा करते हुए आइंदा गुनाह न करने का वादा करे, तो खुदा उस बन्दे के साल भर आगे व साल भर पीछे के तमाम गुनाहों को माफ़ कर देता है।ऐसी रवायत है कि शब-ए-बरात की रात पैगम्बर मुहम्मद सल्ल० मक्का स्थित जन्नतुलबकी नामक कब्रिस्तान जाकर वहां दफनाए गए मुर्दों के गुनाहों की मग़फ़ेरत के साथ-साथ लोगों की भलाई व सलामती की दुआएं किया करते थे।लिहाजा हमें भी चाहिए कि इस बेशकीमती रात को कुरआन की तिलावत,नफ़ील नमाज़, दरूद व कलमा जैसी इबादतों में गुजारते हुए अपने व पूर्वजों की गुनाहों की माफ़ी, समाज व मुल्क में अमन, सलामती व बेहतरी के लिए खुदा से दुआएं करें।