🔴जौनपुर / आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र अमिहित जौनपुर-2 के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ संजीत कुमार ने कहा एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाकर बदलतें हुए मौसम से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता हैं। एकीकृत कृषि प्रणाली एक बहु-आयामी खेती करने की विधा है जिसमे किसान भाई फ़सल उत्पादन के साथ- साथ पशुपालन, बकरी पालन, मुर्गी पालन, केचुआ खाद उत्पादन, मशरूम की खेती, मधुमक्खी पालन आदि व्यवसाय अपनाकर आय के स्रोतों को बढ़ा सकते हैं। किसान भाई मौसम को देखते हुये कम पानी चाहने वाली फसले जैसे मक्का, ज्वार, बाजरा, तिल आदि फसलों की खेती कर सकते है। पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ संदीप कुमार ने ख़रीफ़ की फसलों में लगने वाले कीटों एवं रोगों के प्रबंधन उपाय बताये। मृदा वैज्ञानिक डॉ दिनेश कुमार ने कहा कि किसान भाई मिट्टी की जांच के उपरांत भूमि के उर्वरता स्तर को देखते हुए फसल की आवश्यकतानूसार सन्तुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरको के उपयोग करे।शस्य वैज्ञानिक डॉ संजय कुमार ने खाली पड़े खेतों की गहरी जुताई करने की सलाह दी जिससे भूमि में उपस्थित खरपतवारों एवं कीटों के अंडों को नष्ट करने के साथ-साथ भूमि जलधारण क्षमता को बढ़ाया जा सके।कृषि वानिकी वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार ने लौकी, नेनुआ, बैगन, टमाटर, भिंडी आदि सब्जियों की वैज्ञानिक खेती पर जानकारी दी । पशुपालन वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार सिंह ने कहा गाय/भैंस ब्याने के 2-3 माह बाद पशु हर 18-21 दिन पर हीट पर आता है। हीट का समय लगभग 18-36 घंटे का होता है। गर्भाधान कराने का सही समय 12-18 घंटे का होता है। मध्यम अवस्था गर्भधारण के लिए सबसे उपयुक्त है। मध्यम अवस्था लगभग 10 घंटे तक रहती है। श्लेष्मिक पदार्थ गाढ़ा हो जाता है। पशु जोर-जोर से बोलने लगता है। शरीर का तापमान बढ़ जाता है। दूध में कमी, पीठ में टेड़ा पन हो जाता है। पशु अपने ऊपर दूसरे पशु को चढ़ने देता है या खुद दूसरे पशु के ऊपर चढ़ने की कोशिश करता है।