🟥गोरखपुर –
आप हैं श्री जोखन प्रसाद जी- बिशुनपुरा प्राथमिक विद्यालय में मेरे पिता जी के सहकर्मी शिक्षक । आपकी-जन्म तिथि– 01.01.1944 दुलहरा, गोरखपुर में) । आपके एक जनवरी 79 वें जन्मदिन पर विशेष —

शिक्षक रूप में प्रारम्भिक नियुक्ति–1964 अनट्रेंड untrained teacher के रूप में। ट्रेंड Trained शिक्षक के रूप में स्थायी नियुक्ति -01.10.1970 प्राथमिक विद्यालय विशुनपुरा, गोरखपुर में। उच्च प्राथमिक विद्यालय डुमरैला, गोरखपुर से प्रधानाध्यापक पद से 30-06-2006 को सेवानिवृत्त । आदरणीय जोखन प्रसाद जी को तो मिलना चाहिए था हर हाल में शिक्षक का राष्ट्रपति पुरस्कार , पर वास्तविक रूप में शतप्रतिशत ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा किसी व्यवस्था या सरकार से कब समादरित / पुरस्कृत हो पाती है ? पर त्याग , कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी केवल पुरस्कार के लिए ही तो नहीं होती है । उसका एक उद्देश्य बेहतर समाज निर्माण और आत्मतोष भी होता है और वह किसी भी पुरस्कार या सम्मान से हजार गुना बड़ा होता है । 40-45 वर्षों बाद भी हमारे जैसे उस विद्यालय के अनेकानेक पूर्व छात्र निष्कलुष भाव से उन्हें यथोचित सम्मान आज भी देते हैं। एक अध्यापक के लिए जीवन पर्यन्त अपने छात्रों से आदर पाते रहना जीवन का सर्वश्रेष्ठ सम्मान और पुरस्कार है। आदरणीय जोखन प्रसाद जी बिशुनपुरा प्राथमिक विद्यालय में कक्षा-3 में मेरे शिक्षक थे, पर पाँचवी कक्षा तक निरन्तर आपका उचित सरंक्षण- मार्गदर्शन मिलता रहा, भाषा , अनुशासन और निष्ठा के सम्बन्ध में , साथ ही मेरे जैसे अनगिनत छात्रों को भी । मेरे पिता जी भी आपके साथ ही अध्यापक थे, पिता जी की सलाह पर भाषा सुधार व अनुशासन के लिए उस वक्त आप मुझ पर और अन्य छात्रों पर निरंकुश हो उठते थे। हमारे बचपन में आपकी वह निरंकुशता आज हमारे जैसे अनेकानेक विद्यार्थियों की बहुत बड़ी पूँजी है । पठन-पाठन के अतिरिक्त साहित्यिक- सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद / स्काउट और गाइड के क्षेत्र में भी छात्रों के लिए आपका मार्गदर्शन बेजोड़ था । आपके भीतर धर्ममयता और आस्तिकता भी अद्भुत है, जो आपको अतिरिक्त आदर दिलाती है , आप नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ विधान से करते हैं , नास्तिक और धर्म विरोधी दो कौड़ी के लोग इसका मजाक भी उड़ाया करते हैं ,आप इन मूर्खतापूर्ण कार्यों की परवाह नहीं करते हैं। आपके विरोधी और निन्दक भी कम नहीं हैं, लेकिन उसकी आपको परवाह नहीं । आप जातीय संकीर्णता और वर्तमान में पूर्वाग्रह और प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति से सर्वथा मुक्त रहते हैं। आपकी ईमानदारी अनुशासनप्रियता और कर्तव्यनिष्ठा की मैं बार-बार वन्दना करता हूँ। रिटायरी के 15-16 वर्षों बाद भी आपको विद्यालय में सेवाएं देते हुए देखा गया है और पेंशन भी गरीब छात्रों पर खर्च करते हुए देखा गया है , यही कारण हैं कि आप उम्र के इस पड़ाव पर भी स्वस्थ और पूरी तरह से प्रसन्न रहते हैं। पुनः अभिवादन।
शैक्षिक अभिलेखों में मेरा भी 01 जनवरी ही जन्मतिथि है, अतः यह आलेख याद आ गया और इस पटल पर प्रस्तुत हो गया।
🟥शशिबिन्दु नारायण मिश्र की कलम से