✍️जी. पी. दुबे
संवाददाता
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🟠बस्ती जून महुआ डाबर जन विद्रोह के 166 साल पूरा होने पर क्रांतिकारी योद्धाओं को मनोरमा तट पर याद किया गया |
महुआ डाबर क्रांतिकारी दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए क्रांतिकारी योगदानो के दस्तावेजी लेखक एवं चंबल संग्रहालय के संस्थापक डॉक्टर शाह आलम राना ने मेहरबान खातिर ऊपर चले मुकदमे की ट्रायल की प्रति दिखाते हुए उस पर प्रकाश डाला |
उन्होंने कहा कि महुआ डाबर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर मनोरमा नदी के किनारे बसा हुआ बस्ती जिले का एक संपन्न कस्बा था |
जिसने आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर अपना योगदान दिया | महुआ डाबर कस्बे में आज भी उसके अवशेष मिलते रहते हैं | 10 जून 1857 को क्रांत वीरों ने अंग्रेज सैन्य अधिकारियों के ऊपर हमला बोल दिया था | इसमें 6 अंग्रेज मारे गए थे |
उन्हीने प्रकाश डालते हुए कहा कि किस तरह तत्कालीन मजिस्ट्रेट पे पे विलियम्स और गोपालपुर राजा की घुड़सवार फौजे महुआ डाबर कस्बे को घेरकर तहस-नहस करने के बाद गैर चिरागी घोषित कर देती हैं |
महुआ डाबर के कुछ नागरिकों के पलायन कर अन्य जगह सरल लेने की बात भी सामने आती है |
उन्होंने कहा कि मेहरबान खा को विद्रोह का मास्टरमाइंड बताते हुए उन्हें काले पानी की सजा दी गई जो मृत्युदंड से भी बढ़कर होती है और इसमें विद्रोही हर दिन मरता है | हालांकि 19 जुलाई 1860 को 17 लोगों के खिलाफ साधना मिलने पर उन्हें रिहा भी कर दिया जाता है |
इस अवसर पर महुआ डाबर एक्शन के महानायक कि पिरई खां के वंशज असलम खां,शहीद गुलजार खां के वंशज मतिउल हक, रामकेश आदि नें अपने विचार व्यक्त किए |
अंत में आदिल खान ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम का समापन किया|