🔻होली पर विशेष रिपोर्ट 
🔴मक़सूद अहमद भोपतपुरी
भाटपार रानी,देवरिया।सनातन धर्म मे होली के त्यौहार का अपना एक खास महत्व है। के मौके पर प्रयोग होने वाले केमिकल युक्त रंग महज एक रंग नहीं है, बल्कि इसमें अथाह भक्ति, प्यार और भाईचारा समाहित है।आपसी दुश्मनी भूलकर सबको प्यार से गले लगाने का नाम है होली।यह पर्व बुराइयों पर अच्छाइयों की जीत का प्रतीक है।इसके जरिए प्रेम व सौहार्द के धागे मजबूत किए जाते हैं।इस मौके पर किए जाने वाले होलिका दहन का भी अपना विशेष महत्व है।होलिका दहन अनैतिकता, अन्याय,अत्याचार व घमण्ड को जलाने का प्रतीक है।होली से पूर्व होने वाले होलिका दहन के बाबत जानकारी देते हुए भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के पड़री बाजार निवासी श्रीमद्भागवत व श्रीरामचरितमानस कथा वाचक पण्डित घनश्यामानन्द ओझा ने बताया कि सतयुग में राक्षसों का एक राजा रहता था,जिसका नाम हिरण्यकश्यप था।वह अधर्मी,अनैतिक व भगवान विष्णु का घोर विरोधी था।तीनों लोक में उसका भय व्याप्त था।देवता व ऋषि- मुनि भी उससे डरते थे।उसका एक पुत्र पैदा हुआ,जिसका नाम प्रहलाद रखा गया।प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।जब उसकी भक्ति के बारे के उसके पिता हिरण्यकश्यप को पता चला, तो उसने उस पर भक्ति छोड़ देने का दबाव बनाया।जब प्रहलाद ने अपने पिता की बात नहीं माना, तो उसके पिता ने उसे जान से खत्म करने की योजना बनाई।इस कार्य मे हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका का सहारा लिया।होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती थी।हिरण्यकश्यप के आदेशानुसार होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को गोद मे लेकर धधकती आग में बैठ गई।लेकिन ईश्वर की कृपा से भक्त प्रहलाद बच गए और होलिका जलकर खाक हो गई।तभी से होलिका दहन का प्रचलन है।कथावाचक पण्डित ओझा ने कहा कि जब हम किसी भी पर्व को मिलजुलकर मनाते हैं तो उसका मिठास बढ़ जाता है।सीमावर्ती प्रान्त बिहार के गोपालगंज जिला के भोरे प्रखंड अंतर्गत स्थित कोरेया दीक्षित गांव निवासी पण्डित विद्यानन्द मिश्र का कहना है कि वर्तमान में होली का स्वरूप बदरंग होता जा रहा है।आजकल के अधिकांश लोग होली के मौके पर मांस,मछली,शराब का सेवन करते हैं।इसके कारण लोग खुद ही बेसुध हो जाते हैं,तो फिर वे पर्व कैसे मनाएंगे।अतः हमें शांति के वातावरण में शुद्ध हृदय से होली मनानी चाहिए।