आजमगढ़
✍️रिपोर्टर, अब्दुर्रहीम शेख़।

19 सितम्बर 2008 का दिन इस मुल्क में मुसलमानो के लिए स्याह दिन था,जिस दिन भारत के मुसलमानो के माथे पर एक आतंकवाद का कलंक लगाया गया जिससे आज तक साफ नही किया जा सका,2008 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री के इशारे पर दिल्ली पुलिस द्वारा सरकार की किरकिरी से बचाने व मुस्लिम नौजवानों को बलि का बकरा बनाने की नियत से साजिश रच कर 19 सितम्बर 2008 को दिल्ली के बटला हाउस में फर्जी मुदभेड के दौरान दो बेकसूर मुस्लिम नौजवान आतिफ व साजिद के साथ एक जाबांज पुलिस इंस्पेक्टर को मौत के घाट उतार दिया गया,और अनेक मुस्लिम नौजवानों को इसमें फंसा कर उनकी जिंदगी बरबाद कर दी गई,इस फर्जी इनकाउंटर के खिलाफ राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल ने आजमगढ़ से लेकर दिल्ली तक जोरदार विरोध किया, राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी साहब के नेतृत में पूरी ट्रेन बुक करके आजमगढ़ से दिल्ली व लखनऊ तक विरोध हुआ,
लेकिन सरकारों को कुछ फर्क नही हुआ,दीगर इनकाउंटर होता है उसकी जांच हो जाती है लेकिन बटला हाउस की जांच आखिर क्यों नहीं होती है,क्या यह समझ ले की मुसलमान होने की वजह से यह जांच नही हो रही है।
मुल्क के आज़ादी के बाद से ही मुसलमानो पर जुल्म के पहाड़ तोड़े गए लेकिन सभी हादसात को मुसलमानो ने बड़ी आसानी से भुला दिया आज किसी को एहसास भी नही की बल्कि हमारी नौजवान पीढ़ी को मालूम भी नही की हाशिमपुरा में क्या हुआ था, भागलपुर,मलियाना,मेरठ व दीगर हादसात में क्या हुआ था।
राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल ने अपने विरोध प्रदर्शन व दीगर तहरीक चला कर बटला हाउस को सबके दिल व दिमाग में जिंदा रखा हुआ है।
19 सितम्बर को आप लोग भी अपने फेसबुक व ट्विटर व दीगर शोसल मीडिया,प्रिंट मीडिया हर जगह अपनी कलम से बटला हाउस पर लिखे,लिख न सके तो इस मजमून को ही आम करे।
जांच से क्यों घबराते हो
जांच क्यों नहीं कराते हो!
मोहम्मद नसीम
राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल।