🟥वर्तमान समय में वोट के लिए भारतीय राजनीति के निम्नतर स्तर में पहुंँचने पर कवि कुमार विश्वास की निम्न काव्य – पंक्तियां द्रष्टव्य हैं—–
पराये आँसुओ से आँख को नम कर रहा हूँ मैं,
भरोसा आजकल खुद पर भी कम कर रहा हूँ मैं,
बड़ी मुश्किल से जागी थी ज़माने की निगाहों में;
उसी उम्मीद के मरने का मातम कर रहा हूँ मैं।।
काफी पहले की बात है,तिथि ठीक-ठीक याद नहीं,एक सांसद जी और एक विधायक जी से अलग-अलग समयों पर मिलना हुआ।दोनों का एक जैसा स्वभाव, एक जैसा विचार,एक जैसा व्यवहार,एक जैसा संस्कार। सांसद जी लोकसभा से आने के बाद शहर में किसी धनाढ्य के यहाँ अक्सर बैठते थे, क्षेत्र में जाकर समस्याओं से रूबरू होना उनके स्वभाव में नहीं था , वह सांसद कहाँ के थे, किस पार्टी के थे , यहाँ यह तथ्य गैरजरूरी है । सांसद जी के साथ वहां पर 5-7 लोग काफी मोटे शरीर वाले प्रौढ़ भी ,जवान भी बैठे थे, जो आने-जाने वाले अपरिचित आगन्तुकों को गिद्ध नजर से देख रहे थे । वहीं पर मैं भी उनसे मिलने किसी आवश्यक कार्य वश पहुंँच गया था, उस सांँसद की तरह मिलने का स्तरहीन / संस्कारहीन अन्दाज़ मैंने आज तक किसी भी छोटे-बड़े जनप्रतिनिधि में नहीं देखा । बहरहाल एक बार चुनाव हारने के बाद उनके हमेशा के लिए होश ठिकाने लग गये। ठीक ऐसा ही अनुभव मेरे परम शुभेच्छु , परम मित्र और बड़े भाई भी डा अनिल कुमार श्रीवास्तव बताते हैं, वह मुम्बई से दिल्ली एक विश्वविद्यालय में कम्प्यूटर साइंस डिपार्टमेंट में बतौर प्रोफ़ेसर आ गये थे, उस समय तक समाज में शहर हो या देहात गैस सिलेंडर पर भोजन बमुश्किल 5 % से अधिक परिवारों में नहीं बनता रहा होगा , डॉ अनिल श्रीवास्तव उसी सांसद के यहां एक गैस सिलेंडर कनेक्शन के लिए गये थे, तब सांसदों / विधायकों को कुछ कनेक्शन का कोटा मिलता था। सांसद ने बड़े आराम से बिना परिचय पूछे आनाकानी कर टाल मटोल कर वापस कर दिया, दूसरे दिन डा. अनिल कुमार श्रीवास्तव ने गैस कनेक्शन हेतु अपनी एक कम्प्यूटर छात्रा से इस हेतु मदद मांगी, वह छात्रा दिल्ली में उसी राजनीतिक दल के बहुत बड़े राजनेता की सुपुत्री थी, दिल्ली के उस राष्ट्रीय राजनेता ने उक्त सांसद को सख्त हिदायत दी। उस छात्रा द्वारा अपने पिता से कहने पर ,उसी सांसद ने खिसियाते हुए “गैस कनेक्शन” उपलब्ध कराया था। ऐसे किसी भी राजनीतिक दल के माननीय हों, उनके लिए आम मतदाता के लोग जब कभी सोशल मीडिया पर, कभी चौराहों और बाजारों में मुँह-चुथौवल / गाली गलौज करते हैं, तो उनके पागलपन पर को देखकर बड़ी पीड़ा होती है।
ऐसे ही मेरे परिचित, एक अति आत्मीय पेशे से चिकित्सक अपने पड़ोसी से तंग आकर अपनी गम्भीर समस्या को लेकर एक छुटभैय्ए नेता या नेता टाइप व्यक्ति के घर सुबह- सुबह ही पहुंचे थे।वह बताते हैं कि नेता व्यक्ति राजाओं की तरह अपने सिंहासन लगाकर ऊपर बैठा और आगुंतक अतिथि को अपने से नीचे बैठाया।
दोनों घटनाएं किस राजनीतिक दल और किस क्षेत्र की हैं, यह चर्चा अनपेक्षित है।
दूसरी घटना– मुझे एक सेवानिवृत्त शिक्षक से मिलना था, जो राजनीति में भी गहराई से जुड़े थे, उन्होंने तत्कालीन विधायक जी के शहर स्थित आवास पर मुझे मिलने का समय दिया था (तब तक मुझे यही पता था कि पूरे क्षेत्र में विधायक जी के सर्वाधिक प्रिय ये शिक्षक महोदय ही हैं , ऐसा पूरे क्षेत्र में प्रचारित भी था)। बहरहाल तय समय पर मैं वहाँ पहुँचा, तो मेरे वहाँ पहुँचने से पाँच मिनट पहले वे कहीं चले गये थे, मेरे पूछने पर विधायक जी ने ऐसा ही बताया था, कोई शक-सुबहा न रहे, अतः मैंने अन्य किसी से न पूछकर सीधे विधायक जी से ही उनके बारे में पूछा था, उनका जवाब था,–“यहीं तो थे, कहीं गये होंगे, देखिए आते ही होंगे।” खैर आधे घंटे तक बाहर मैंने अपनी साइकिल के सहारे खड़े रहकर प्रतीक्षा की, फिर मैं चल दिया । दूसरे दिन भेंट होने पर मैंने यह बात जब उन शिक्षक महोदय से बताई थी, तो वह ज़मीन की ओर देखते हुए एकदम मौन रह गये । उक्त दोनों जन प्रतिनिधि जब एक बार चुनाव हारे, तो फिर सदा-सदा के लिए राजनीति से समाप्त हो गये, जैसे कि दूध की मक्खी। विधायक जी के दूसरे आवास पर भी एक बार और जाना हुआ था (अपने एक अत्यन्त प्रिय पात्र हम उम्र से मिलना था, वे राजनीति के उभरते हुए होनहार चेहरा थे) वह घटना भी बड़ी रोचक है, लेकिन दूसरी बार उन विधायक जी पर बड़ा गुस्सा लगा। क्रोध में मेरे मुँह से निकल गया था कि “देख लीजिएगा, इन्हें न इस बार चुनाव जीतना है और न फिर इसके बाद कभी।” भवितव्यता ऐसी कि भविष्य में हुआ भी एकदम वैसा ही , इसे महज़ संयोग ही कहा जा सकता है । हालांकि मेरे उक्त होनहार और व्यवहारकुशल प्रिय- पात्र ने कहा था–“गुरुदेव ! ऐसा मत कहिए।” हमको अपने प्रिय -पात्र पर बड़ी दया आयी और तत्काल मुझे पीड़ा भी हुई थी पर क्या करते, गुस्से में बात तो मुँह से निकल गयी थी। तब से लेकर आज तक किसी जनप्रतिनिधि से मैं व्यक्तिगत तौर पर नहीं मिला और न तो कभी अपने स्वार्थ के लिए मिलना ही है। शिक्षक राजनीति में लगे हुए अधिकतर शिक्षक नेताओं के साथ भी मेरा अनुभव भी बहुत बेहतरीन नहीं रहा है, कुछेक को छोड़कर । सभी नेता या शिक्षक नेता एक जैसे तो नहीं हैं, जो बेहतर रहे हैं,उन पर बेहतर रूप में चर्चाएं भी समय समय पर होती रहती हैं और होती रहेंगी।
लेकिन अनुभव यही बताता है, कि राजनीति में लोग कितना गिरकर रहते होंगे, किस सीमा तक अपनी आत्मा को बेंच कर समय देते होंगे ? इसका यह बानगी भर है। हाँ ! यह अलग बात है, कि वोट की विद्रूप राजनीतिवश जातिगत समीकरणों के कारण किसी को भाग्यवश यदा-कदा सफलता बिना मेहनत के भी मिल जाती है।सच बताऊँ ! जब कोई झूठ-मूठ में बड़ी-बड़ी राजनीति परक बातें हांँकता है, तो बड़ी घिन लगती है, क्योंकि राजनीति का सच कुछ कुछ ऐसा ही है। हर जगह से अनफिट कुछ लोग खुद्दारी गिरवी रख कर ऐसे नेताओं के पिछलग्गू या समर्थक बने इतराते हैं,कि क्या कहा जाय , बस आधार होता है, जातिवाद अथवा निजी गर्हित स्वार्थ और व्यक्तिगत लाभ-लोभ। सामान्य लोगों की कौन कहे,पढ़े लिखे और प्रबुद्ध कहे जाने वाले तथाकथित समर्थक भी अपनी – अपनी बिरादरी के आका नेताओं के लिए मुंह चुथौवल के लिए सोशल मीडिया पर ऐसे कूद पड़ते हैं, कि मानो एक गाँव के कुत्ते दूसरे गाँव के कुत्तों को खदेड़ने के लिए टूट पड़े हों।
झूठ, फरेब, छल और धूर्तता, मेहनत न करनी पड़े,चाहे जिस तरह से अकूत पैसा जुटाने की हवस। भगवान बचायें। हमारे माननीय यदि लोगों के बीच जातीय ज़हर घोलकर उन्माद और आपसी वैमनस्यता फैलाने की बजाय समान रूप से सबके सुख- दु:ख में सहभागी बनते, तो शायद सामाजिक सौहार्द में कोई समस्या उत्पन्न ही नहीं होती और वे सबकी पसंद बने रहते। मतदान होने तक तो कुछ को पैर छूकर खुश रखना,शराबी को जी भर मांस व शराब पिलाना, किसी को भोजनादि कराकर और बहुतों को अन्य प्रलोभनों से खुश करते हैं, उसके बाद वही, जो ऊपर वर्णित है, मतगणना के पश्चात् उन्हीं मतदाताओं को हमारे माननीय पहचानने से इंकार तक कर देते हैं,यह मेरा अनुभव है। यदि इनके असीमित अधिकार और सुविधाएं कम कर दी जाएं, तो बहुत सारी समस्याओं का अपने आप निराकरण हो जायेगा।
यदि आप जातिवाद और निजी गर्हित स्वार्थ से मुक्त हो कर विचार करेंगे , तो आपको भी कुछ- कुछ ऐसा ही अहसास होगा। हर तरह के अभाव में, दुर्दशा में जी लेना श्रेयस्कर है,पर अपनी आत्मा की हानि कराना सबके वश की बात नहीं।
✍️शशिबिन्दु नारायण मिश्र
प्रवक्ता – संस्कृत
स्वावलम्बी इण्टर कॉलेज विशुनपुरा गोरखपुर उत्तर प्रदेश , 273405
21.08.2019