✍️जय सिंह यादव रायबरेली

🔻सन 1857 कि क्रान्ति में सुबेदार भोंदू सिंह के नेतृत्व में , अहीर सैनिकों ने विद्रोह का बिगुल बजाया। सन 1897 में हुऐ प्रथम सेना पुनर्गठन में कुल छह इन्फैंट्री रेजिमेंट में , अहीर दो रेजिमेंट में 25,25 प्रतिशत थे। प्रथम विश्व युद्ध में अहीरवाल के 19400 सैनिकों ने भाग लिया।जो अविभाजित भारत में जन संख्या व सैनिको के अनुपात में सबसे अव्वल था। द्वितीय विश्व युद्ध में 38000 अहीर सैनिकों ने भाग लिया। आज लगभग दस रेजिमेंट जाति व क्षेत्रों के आधार पर ऐसी है जिनकी प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध में या तो एक भी सिपाही नहीं था या अहीर से नफरी कम थी। आजादी से पहले उन्हीं जातियों और क्षेत्रों कि रेजिमेंट अंग्रेजों ने बनाई , जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया और आजादी के बाद उन्हीं क्षैत्रो कि रेजिमेंट बनी जिन्होंने हमारे देश के खिलाफ अलग होने कि बात कही आजादी से पहले और बाद में अहीर सैनिकों ने हर युद्ध और मोर्चों पर अपने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया और अनेकों अनेकानेक पदक जीते। जिस जाति या क्षेत्र कि रेजिमेंट होती है , उनमें उसी जाति और क्षेत्र के लोगों कि भर्ती होती है। इसलिए रेजिमेंट नहीं होने कि वजह से अहीरों कि भर्ती अब नहीं के बराबर है। जबकि जाति, क्षैत्र के आधार पर भर्ती संविधान कि धारा 14,15,16का उल्लंघन है। भारतीय सेना संसार कि एक मात्र सेना है जिसमें भर्ती का कोई लिखित कानून नहीं है। भारतीय सेना में हमेशा अहीरों के सैनिक व बलिदान के इतिहास को कमतर करने कि कुचेष्टा होती रही है। इसलिए अहीरों कि सैनिक परम्परा, बलिदान कि परिपाटी व सैनिक इतिहास को देखते हुए अहीर रेजिमेंट कि स्थापना अविलंब करी जाय।अगर ऐसा नहीं होता है तो सभी जाति व क्षेत्रों पर आधारित रेजिमेंट व भर्ती प्रणाली को समाप्त किया।
जाए।