✍️नरेश सैनी

🟥मथुरा – सहायक श्रम आयुक्त श्रमिकों के लिए वेलफेयर अधिकारी के अलावा श्रम कानूनों के अंतर्गत विभिन्न पदेन दायित्व के लिए विधिक जिम्मेदारियां हैं वर्तमान सहायक श्रम आयुक्त ना तो अपने मूल दायित्व का जिम्मेदारी के साथ निर्वहन कर पा रहे हैं , और ना ही पदेन जिम्मेदारियों के साथ ही न्याय नहीं कर पा रहे हैं, भारी संख्या में मजदूर उनके कार्यालय के चक्कर लगा पर हलकान होकर अपनी समस्या को भगवान भरोसे छोड़कर थक हारकर घर बैठने के अलावा उनके सामने और कोई विकल्प नहीं बचता है।
जानकारी के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की जन्म और क्रीड़ा स्थली मथुरा में शासन स्तर से श्रमिकों की समस्याओं का निदान करने और श्रमिकों के कल्याण के लिए जिला स्तरीय कार्यालय स्थापित है। जिसमें सहायक श्रम आयुक्त के अलावा श्रम प्रवर्तन अधिकारी तथा कर्मचारियों की लंबी फेहरिस्त है । इसके बावजूद श्रमिकों के कल्याण और उनकी समस्या जस की तस बनी हुई हैं। श्रमिक अपनी समस्या को लेकर बड़ी उम्मीद के साथ श्रम कार्यालय आते हैं, लेकिन बड़े खेद का विषय है ,मजदूर अपनी शिकायत दर्ज कर या विभिन्न श्रम अधिनियम के अंतर्गत बाद दर्ज कराते हैं । अधिकारियों की उदासीनता के चलते श्रमिक निर्धारित तिथि और समय पर श्रम कार्यालय बड़ी उम्मीद लेकर आते हैं । बेचारे घंटों तक धूप बरसात गर्मी और सर्दी के मौसम में घंटो तक पड़े रहते हैं शाम को उन्हें एक ही जवाब में मिलता है। तुम्हारे मामले में फला तारीख लगा दी है, सहायक श्रम आयुक्त जिलाधिकारी को छोड़कर दूसरे नंबर पर ऐसे अधिकारी है जिन्हें अपने मूल पद से ज्यादा पदेन दायित्व प्राप्त हैं। जैसे अवैध रूप से सेवा मुक्त किए गए कर्मचारी की समस्या को सुनने के लिए संसाधन अधिकारी पदेन पावर है, ऐसे ही श्रमिक /कर्मकार के कार्य स्थल पर दुर्घटनाग्रस्त होने की स्थिति में उस कर्मकार को वर्कमैन कंपनसेशन एक्ट के तहत पदेन पावर है, वेतन नहीं देने की स्थिति में संबंधित श्रमिकों वेतन दिलाने के लिए पेमेंट ऑफ वेजेस एक्ट के अंतर्गत पदेन पावर है, शासन द्वारा निर्धारित वेतन से कम वेतन देने की स्थिति में मिनिमम वेजेस एक्ट के तहत पदेन पावर प्राप्त है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक बाल श्रमिक समस्या रूपी कलंक को समाप्त करने का भी जिम्मेदारी सहायक श्रम आयुक्त को भी पदेन पावर हैं, इसके बावजूद बाल श्रमिक समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है लगभग 2 दर्जन से अधिक श्रम कानून है। जिनका निर्वाहन कराना सहायक श्रम आयुक्त और उनके अधीनस्थों का नैतिक दायित्व है, इसके बावजूद श्रमिकों के द्वारा विभिन्न श्रम कानूनों के तहत कार्रवाई श्रम कार्यालय के स्तर पर लंबित चल रही है । जिन्हें निस्तारित करने में सहायक श्रम आयुक्त कोई रुचि नहीं ले रहे हैं स्थिति यह हो गई है। संबंधित श्रमिक लगातार श्रम कार्यालय के चक्कर लगा – लगाकर हलकान होने के बाद अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई का पैसा किराए भाड़े में खर्च कर और तारीख वाले दिन की मजदूरी छोड़कर दिन भर थक हार कर शाम को घर चले जाते हैं । भारी संख्या में ऐसे मजदूर भी हैं,जो श्रम कार्यालय के चक्कर लगाकर न्याय पाने की उम्मीद को छोड़कर हताशा की भावना के साथ घर बैठ जाते हैं। जिन श्रमिकों के नाम पर सरकार ने विभाग को बनाया है।
उन श्रमिकों के नाम पर अधिकारी और कर्मचारियों को नौकरी मिली है, वेतन मिल रहा है , तमाम सारी सरकारी सुविधाएं मिल रही उन्हीं श्रमिकों के प्रति संवेदनहीनता है । आखिर मजदूर अपनी फरियाद लेकर कहां जाए यह प्रश्न श्रमिकों के सामने मुंह बॉय खड़ा है?