अब्दुल गफ्फार खान की रिपोर्ट
गोरखपुर(ब्रह्मपुर),
समाजवादी नेता कालीशंकर की मांग पर बुधवार को गोरसैरा गांव में पुरातत्व विभाग की जांच में 2000 साल पुराना स्तूप और 13वीं शताब्दी की मूर्तियां मिली है। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी श्री नरसिंह त्यागी और उनकी टीम ने आकर के गोरसैरा, उपधौलिया, राजधानी व बसुही गांव में पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के अवशेषों का सर्वे किया।सर्वे के पश्चात क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी नरसिंह त्यागी ने बताया की गोरसैरा स्थित स्तूप से प्राप्त पकी हुई ईटो के अवशेषों के आधार पर यह टीला कुषाण कालीन है जो लगभग आज से 2000 वर्ष से अधिक पूर्व का स्तूप है। जिसे प्रमाणिक अभिलेखों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह वही भगवान बुद्ध का प्रसिद्ध स्तूप का शेष है जिसमें बुध की चिता की लकड़ी की राख को रखा गया है।
कालांतर में तेरहवीं शताब्दी ईस्वी सन के आसपास इस स्तूप के ऊपर एक से शिव मंदिर का निर्माण करा दिया गया है शिव मंदिर के गर्भ ग्रह में लाल बलुवे प्रस्तर पर निर्मित शिवलिंग स्थित है जो लगभग 700 वर्ष प्राचीन है. इस मंदिर के देव कुलिका में प्राचीन खंडित मूर्तियों का पृष्ठ भाग और स्थानक त्रिभंग मुद्रा में कार्तिकेय कि वाहन सहित मूर्ति है यह मूर्ति भी तेरहवीं शताब्दी ईस्वी सन की है। मुकेश तू के समीप लगभग 500 मीटर पर एक अन्य स्तूप बना है जो पहले के स्तूप के अपेक्षाकृत छोटा है। इस स्तूप पर भी लाल बल हुए प्रस्तर पर निर्मित शिवलिंग को स्थापित किया गया है या अभी लगभग 13 वीं शताब्दी का है. शिवलिंग के पास पक्की हुई ईटों की दीवार के अवशेष विद्यमान हैं ।ईटों के आकार, प्रकार एवं मां के आधार पर यह कुषाण काल का है।बस उसी में गोर्रा नदी के बाएं किनारे पर खुले आसमान में लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित दोस्ती वर्गा और एक शिवलिंग स्थापित है। यह भी तेरहवीं शताब्दी का ही है।
कालीशंकर ने बताया कि हमने पूर्व में अपने शोध के दौरान उक्त स्थानों का निरीक्षण किया तथा अपने अध्ययन में पाया कि प्रसिद्ध अंग्रेज पुरातत्वविद ए.सी.एल. कार्लाइल और ए. कनिंघम की रिपोर्ट “रिपोर्ट्स आफ टूर्स इन गोरखपुर सारन एंड गाजीपुर इन 1877, 78,79-80” आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया खंड XXII में उपरोक्त गावों का वर्णन करते होते इनके पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व को बहुत ही गंभीरता से दर्शाया है। ए.सी.एल. कार्लाइल और ए. कनिंघम की अन्य प्रकाशित रिपोर्टो में भी इनकी महत्वता को बताया गया है।
काली शंकर ने बताया कि अपने शोध और सर्वे के पश्चात हमने उ०प्र० राज्य पुरातत्व निदेशालय के निदेशक से वार्ता कर व मांग-पत्र प्रेषित कर चौरी-चौरा तहसील के अंतर्गत पुरातात्विक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अतिमहत्वपूर्ण १-उपधौलिया, २- गोरसैरा, ३- बसुही, ४- राजधानी, ५- मिट्ठाबेल, ६- बरही, ७- डीहघाट, ८- बसडीला व ९- भोपा गांवो का पुरातात्विक सर्वेक्षण करा संरक्षित कराने की माँग पर मेरे मांग पत्र पर ही निदेशक ने क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी को सर्वे हेतु निर्देशित किया.।
कालीशंकर ने कहा कि हमारी सरकार से माँग है कि उपरोक्त गावों की पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्वता को दृष्टिगत रखते हुए अतिशीघ्र इसे संरक्षित किया जाए।जिससे इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता विश्व पटल पर उजागर हो सके तथा इसको पर्यटन की  दृष्टि से भी विकसित किया जाय।