रविंद्र सिंहरायबरेली। महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए हलषष्ठी व्रत रखा गया। यह मूल रूप से षष्ठी माता का व्रत है। बलराम जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में यह मनाया जाता है।

बलराम का प्रधान शस्त्र हल है। इसी से ये हलधर कहलाते हैं और यह व्रत हलषष्ठी कहलाता है। हल किसानो का भी प्रमुख औज़ार है, जिनसे वें खेती का कार्य करते हैं। अतः यह किसान त्योहार भी है, इस इस दिन किसान अपने हल का पूजन करते हैं।

इस व्रत को विशेषकर नवविवाहित स्त्रियां पुत्र कामना से व विवाहित स्त्रियां पहली संतान प्राप्ति पर संतान की दीर्घायु कामना से व्रत करती हैं।

हलषष्ठी व्रत रख रहीं गृहणी स्नेहा सिंह ने बताया कि बलरामजी का संबंध हल से है, और कृष्णजी का संबंध गौमाता से। इस कारण से हल जुते हुए जगहों का कोई भी अन्न व गाय का दुध, दही, घी आदि का उपयोग इस व्रत में वर्जित है।

एक अन्य गृहणी सुमन देवी ने बताया इस दिन महुआ की दातुन करते हैं। भोजन बनाते समय चम्मच के रूप में महुआ पेड़ की लकड़ी का उपयोग करते हैं। भोजन के लिए महुआ पेड़ के पत्ते का दोना-पत्तल उपयोग करते हैं।

गृहणी बीना ने बताया की
हलषष्ठी व्रत में शिव परिवार अर्थात शिवजी, माता पार्वती, सिद्धि-बुद्धि सहित गणेशजी, स्वामी कार्तिकेय इनके अलावा भगवान श्री कृष्ण व बलरामजी तथा हलषष्ठी माता की विशेष पूजन होता है।