🟥वाराणसी नरपतपुर में श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस की कथा में सर्वप्रथम गणेश वंदना से प्रारम्भ हुआ कथावाचक मनीष कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने विदुर चरित्र का वर्णन विस्तार से सुनाया तथा उन्होंने कहा कि जहां भी भागवत कथा होती है, वह स्थान दिव्य हो जाता है। भागवत ज्ञान गंगा है जिस प्रकार से गंगा सभी प्रकार की पुण्य प्रदान करती है। उसी प्रकार ज्ञान गंगा है। इसके सुनने कहने से पुण्य की प्राप्त होती है। कथा के पहले दिन कथा वाचक ने बताया कि कथा मनुष्य को मोक्ष देने वाली है। इसके श्रवण मात्र से ही मनुष्य को सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।

 

 

पूज्यनीय मनीष कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने बताया कि भागवत कथा सुनने और समझने के लिए पंडाल में तीन प्रकार के लोग बैठते हैं। एक श्रोता, जो इस पूरी कथा को सुनता है समझता है और जानता है, जिसे अपने जीवन में आचरण के रूप में ग्रहण करता है।

वहीं अपने दिनचर्या को उस रूप में ढालने के लिए कथा को सुनता है। दूसरा होता है सोता, जो इस कथा में पूरे 7 दिन तो पहुंचता है और लोगों को बोलता भी है कि मैं भागवत कथा सुनने जा रहा हूं, लेकिन इस कथा के दौरान अपनी आंखें बंद कर सिर्फ सोने का काम करता है। जिसमें उसे किसी भी प्रकार की शिक्षा और दीक्षा नहीं हासिल हो पाती और इस कथा को वह सोने का माध्यम बना देता होता है। तीसरा होता है सरोता, यह एक सुपारी काटने वाला औजार होता है, वहीं काम यहां श्रोता करता है, वह इस कथा को सुनता है समझता है और फिर उसने बहुत सारी कमियां पेशी व बुराइयां निकाल कर उसको सुपारी की तरह काट कर रख देता है। कथा को समझने के लिए वक्त और सोच दोनों होती है उस पर

 

 

अच्छाई की बुराई देखेगा तो वह केवल काटने का ही काम करेगा। इस प्रकार से आप सभी भक्त यहां इस कथा को सुनने आ रहे हैं वह सारे लोग यह समझ ले हमें कथा सुनकर अच्छे आचरण के साथ अपने जीवन में उन तमाम जरूरी बातों को लेकर चलना है, जो इस कथा में सुनाया समझाया जा रहा है। कथावाचक मनीष कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने गुरू की महत्ता के बारे में बताते हुए कहा कि गुरू की महत्ता हमारे जीवन में अनुपम है क्योंकि गुरू के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते हैं। लेकिन हमें हमेशा इस बात का सदैव ही ध्यान रखना चाहिए कि गुरू के समक्ष चंचलता नहीं करनी चाहिए और सदा ही अल्पवासी होना चाहिए। जितनी आवश्यकता है उतना ही बोलें और जितना अधिक हो सके गुरू की वाणी का श्रवण करें। उन्होंने कहा कि गुरू चरणों की सेवा का अवसर मिलना परम सौभाग्य होता है, इसलिए गुरू सेवा को समर्पित भाव से करना और उनका आदेश का पालन सदा ही करना चाहिए। गुरू की महिमा अपार है और उनकी करूणा अदभुत है कब किस पर अनुग्रह हो जाएं। उन्होंने कहा कि घर द्वार छोड़कर वन में चले जाना ही वैराग्य नहीं होता बल्कि अपने अंतःकरण की शुद्धता इसमें नितांत आवश्यक है। हमारे जीवन में विचारों का आदान प्रदान रोम-रोम से होता है इसके लिए सिर्फ नाक, कान और आखें ही नहीं होती हैं। संत महात्मा की दृष्टि को दिव्य बताते हुए कहा गया कि हम उतना ही देख सकते हैं जितनी दूर तक हमारी दृष्टि जाती है, लेकिन संत जन अनंत तक देखने की दृष्टि रखते हैं।
उन्होंने कहा कि संतो का सत्संग करने यह नहीं सोचना चाहिए कि हमें कोई बीमारी नहीं आएगी, हमारा परिवार खुशहाल रहेगा या फिर हमारा व्यापार अच्छा चल जाएगा, यह तो प्रारब्ध होता है जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन जाना ही है जब लाभ होता है तो हानि भी निश्चित होती है। सत्संग तो जीवन की धारा बदल देता है जिसमें आप ज्ञान और भक्ति की धारा में बहने लगते हैं, लेकिन यहां पर भी यदि कई बार लोग सत्संग करते हैं लेकिन उसका मूल नहीं समझ पाते, जिससे जीवन पर्यंत सत्संग करने के बाद भी अंत में उनको कुछ भी हासिल नहीं होता है। इस दौरान कथा मंडली के कलाकारों ने अपने भजन से भक्तजनों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। व्यासपीठ पूजन का सभी कार्य आचार्य जितेन्द्र पांडेय,जितेन्द्र मिश्रा द्वारा विधिवत कराया गया। संगीत सहयोगी कलाकार जय चतुर्वेदी , विश्वजीत शर्मा,आकाश चौबे,अंकित पाठक, देवेश पांडेय, हिमांशु पाण्डेय रहे व कथा में विशेष रूप से यजमान बच्चा लाल आयोजक भोलेनाथ,गोलू ,अरविंद कुमार बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और कथा श्रोताओं का विशेष ध्यान दें रहे हैं।