बड़े बुजुर्गों के साथ साथ माता पिता का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें – महर्षि अरविन्द

✍️ANA/ Indu Prabha

खगड़िया बिहार। अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक केन्द्र प्रांगण में काशी (वाराणसी) के ज्योतिषी दिव्यांश ने उपस्थित धर्म प्रेमियों को डिजिटल मध्यम से कहा प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि में होली का दहन होगा क्योंकि होलिका का दहन प्रदोष काल में होता है जो इस वर्ष 6 मार्च दिन सोमवार को पूर्णिमा सायं 4:00 लग रहा है और 7 मार्च को सायं काल 5:44 तक ही पूर्णिमा है इस कारण प्रदोष एवं पूर्णिमा का संयोग 6 मार्च सोमवार को रात्रि में ही मिल रहा है क्योंकि होलिका दहन में भद्रा भी विचारणीय है भद्रा में होलिका दहन का निषेध किया गया है भद्रा 6 मार्च सायं 4:07 से 7 मार्च को प्रातः 5:02 तक है ऐसी परिस्थिति में धर्मसिंधु कहता है कि दूसरे दिन यदि पूर्णिमा का स्पर्श प्रदोष काल में ना हो रहा हो तो पहले दिन यदि भद्रा की समाप्ति अनिश्चित काल के बाद हो रही हो तो भद्रा के मुख्य को त्याग करके भद्रा में ही होली का दान करना चाहिए। प्रदोष काल में यदि भद्रा की व्याप्ति हो तो भद्रा बीतने के बाद या प्रदोष काल बीत जाने के बाद होली का

 

दान करना चाहिए। ऐसी स्थिति इस वर्ष बन रही है अतः 6 मार्च दिन सोमवार को भद्रा मुख काल का त्याग करके भद्रा पृच्छ भाग के समय जो भद्रा परिहार स्वरूप प्रशस्त समय होता है आधार रात्रि 12:27 से 1:39 तक के मध्य 1 घंटे 12 मिनट के समय अंतराल में होलिका दहन करना उचित रहेगा। आगे उन्होंने कहा 7 मार्च दिन मंगलवार को सायं काल के समीप पूर्णिमा समाप्त हो रहा है इसलिए इस दिन ना तो होली का विभूति धारण करना चाहिए और ना ही रंगों का उत्सव मनाना चाहिए क्योंकि रंगों का उत्सव एवं होली का भस्म धारण प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस वर्ष यह सूर्योदय व्यापिनी प्रतिपदा 8 मार्च को बुधवार को हो रहा है। अतः होलिका विभूति धारण करना एवं रंग उत्सव मनाना शुभ होगा। शुभ समय में होलिका दहन एवं होली का विभूति धारण करने से वर्ष पर्यंत मंगल एवं शुभ रहेगा। वहीं दूसरी तरफ अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक केन्द्र के संस्थापक महर्षि अरविन्द ने होली की अग्रिम शुभकामना संदेश देते हुए कहा होली में आपसी सदभाव व भाईचारे के साथ रंग गुलाल और अबीर लगाकर खुशी मनाएं, मादक द्रव्यों से दूर रहें। एक दूसरे के प्रति हमेशा दोस्ताना व्यवहार करते रहना चाहिए। भेद भाव को त्याग कर सबको गले लगाना चाहिए। आगे महर्षि अरविन्द ने कहा बड़े बुजुर्गों के साथ साथ माता पिता का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें।