🔴मक़सूद अहमद भोपतपुरी
भाटपार रानी,देवरिया।भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के भिंगारी बाजार स्थित नया प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर तैनात फार्मासिस्ट अभय गुप्ता की दो बेटियां काफी जद्दोजहद के बाद अमन व सलामती की हसरत लिये यूक्रेन से वतन वापस लौट आईं हैं।इसे लेकर उनके परिजनों के उदास चेहरे पर खुशियां छा गई हैं।बेटियों से मिलकर परिजनों ने राहत की सांस ली है।घर वापस पहुंचने के बाद परिजनों ने दोनों बेटियों को माला पहनाकर उनका हौसला आफजाई किया।बता दें कि क्षेत्र के भिंगारी बाजार स्थित नया प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर तैनात फार्मासिस्ट अभय गुप्ता मूल रूप से कुशीनगर जिले के निवासी हैं।उन्होंने गोरखपुर के पादरी बाजार में भी मकान बनवा रखा है।उनकी दो बेटियां अंकिता गुप्ता व ज्योति गुप्ता विगत तीन वर्षों से यूक्रेन में रहकर मेडिकल की पढ़ाई करती हैं।दोनों बेटियां यूक्रेन स्थित इवानो के फ्रांसिस्को मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस तृतीय वर्ष की छात्राएं हैं।अभय गुप्ता ने बताया कि दोनों बेटियां वहां पर अच्छी तरह से अपनी पढ़ाई कर रही थीं।इसी बीच 24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग की शुरुआत कर दी।रूस द्वारा यूक्रेन पर बमबारी की जाने लगीं।फार्मासिस्ट अभय गुप्ता व उनकी पत्नी लाची गुप्ता का कहना है कि युद्ध की खबर मिलते ही हम पूरे परिवार के लोग काफी घबरा गए।दोनों बेटियों से सम्पर्क साधा तो उन लोगों ने यूनिवर्सिटी से महज तीन किलोमीटर दूरी पर ही बमबारी होने की बात बताई।इससे हम लोगों की चिंता बढ़ गई।हम लोगों ने भारत सरकार से बेटियों को वतन वापस लाने की गुहार लगाई।बेटियां वहां से अपनी तस्वीरें व वीडियो भेजती थीं,जिसे देखकर हम लोगों को कुछ तसल्ली मिलती थीं।आज जब बेटियां घर वापस लौटीं तो हम लोगों की सारी चिंताएं दूर हो गईं।

*तीन दिनों तक बार्डर पर फंसी रहीं बेटियां*
यूक्रेन से वतन वापस लौटीं फार्मासिस्ट की बेटियां अंकिता व ज्योति यूक्रेन की हालत बताकर फफक पड़ीं।उन्होंने बताया कि हमारे यूनिवर्सिटी के आसपास जब धमाके व धुएं सुनाई व दिखाई देने लगे तो हम लोग अपने जिंदगी को लेकर काफी चिंतित हो उठे।लेकिन कुछ समझ मे नही आ रहा था कि क्या करें।वहां खाने-पीने के सामानों की किल्लत भी हो गई थी।कई दिनों तक दहशत के माहौल में रहने के बाद हम दोनों बहनें आठ किलोमीटर पैदल चलकर रोमानिया बार्डर पर पहुंची।हम लोगों ने देखा कि बार्डर पर अलग-अलग देशों के हजारों छात्रों की कई किलोमीटर तक लम्बी कतारें लगी हुई थीं।बार्डर पार करने के लिए हमें तीन दिनों तक संघर्ष करना पड़ा।जो कुछ भोजन-पानी था,वह भी खत्म हो गया।वहां भोजन व ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं थी।तीन दिनों तक लाइन में लगने के बाद हम लोग बार्डर पार करके रोमानिया में प्रवेश किए।रोमानिया के लोगों में मानवता का मिसाल देखने को मिली।सैकड़ों की तादाद में रोमानियाई लोग बॉर्डर पार कर
आने वालों के लिए फल,भोजन व पानी लेकर खड़े थे।अब हम लोगों ने राहत की सांस लिया।फिर वहां से भारतीय दूतावास की मदद से हम लोग दिल्ली पहुंचे।वहां यूपी भवन में आकर केंद्र सरकार के कई मंत्रियों ने ढांढस बंधाया।फिर वहां से लखनऊ पहुंचे।उसके बाद वहां से गोरखपुर पहुंचे।दोनों बहनों ने बताया कि यूक्रेन से आने में हम लोगों का एक भी पैसा नहीं लगा।दोनों बहनों व उनके माता-पिता ने मोदी सरकार को धन्यवाद दिया है।

*काश! भारत मे कम होती फीस तो नहीं जाते यूक्रेन*
वतन वापस लौटने के बाद फार्मासिस्ट की बेटियां अंकिता व ज्योति ने बताया कि डॉ बनकर समाज की सेवा करने का जज़्बा लिये छात्र-छात्राओं को मजबूरी में यूक्रेन जाना पड़ता है।उन्होंने बताया कि भारत के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस के कोर्स के लिए कुल फीस डेढ़ करोड़ रुपए है, जबकि यूक्रेन में इसके लिए महज तीस लाख रुपए खर्च आता है।इतनी ज्यादा रकम की व्यवस्था कर पाना हर परिवार के वश की बात नहीं है।इसलिए मजबरी में कम पैसे में पढ़ाई करने के लिए छात्र-छात्राओं को यूक्रेन जाना पड़ता है।अगर अपने देश मे भी फीस सस्ती होती,तो विदेश जाकर पढ़ाई करने की जरूरत नहीं पड़ती।