कलियुग में रामकथा ही मानव मोक्ष का एक मात्र साधन है। रामकथा अथाह सागर है, इसमे जितना गोता लगाएंगे उतना ही आनंद आयेगा।

🔴उमानाथ यादव 20जुलाई2022 रायबरेली -डलमऊ में अयोध्या से पधारे संत स्वामी श्री कृष्णनंदनजी द्वारा आ योजित श्री राम कथा के दूसरे दिन कथा वाचक श्री मारुति नंदन बाबू जी महाराज ने श्रद्धालुओं को कथा का रसपान कराते हुए कही। उन्होंने कहा कि राम कथा समुद्र है। इसके बारे में जितना की बताया जाय उतना ही कम है। सती प्रसंग सुनाते हुए उन्होंनें कहा कि सीताहरण के बाद रामचन्द्र जी वन-वन उन्हें खोज रहे थे। उसी समय मां सती ने शंकर भगवान से कहा कि मैं मर्यादा पुरुषोत्तम की परीक्षा लेना चाहती हूं। भगवान शंकर ने उन्हें मना किया लेकिन वे नहीं मानीं और परीक्षा लेने पहुंच गयीं। कथा को विस्तार देते हुए उन्होंनें कहा कि मां सती सीता का वेश धारण कर भगवान राम के सामने पहुंचीं। मां सती को देखते ही भगवान ने उन्हें प्रणाम कर कुशल क्षेम पूछा जिससे मां सती लज्जित हो गईं और पुन: जब सती कैलाश पर्वत पर पहुंची तो शंकर जी ने उनसे सारा वृत्तांत पूछा। उन्होंने शंकर जी से झूठ बोला और कहा कि ‘कछु न परीक्षा लीन्ह गोसाईं, कीन्ह प्रनाम तुम्हारेहि नाई’। शंकर जी ने ध्यान लगाकर देखा तो सती जी सीता का रूप धारण कर रामचंद्र जी के सामने पहुंची थीं। कथा को आगे बढाते हुए उन्होंने कहा कि तब शंकर जी ने निश्चय किया कि सती जी ने मां सीता का वेश धारण किया है। इस तरह वे उनकी पत्नी नहीं मां हुईं। भगवान शंकर ने वहीं पर उनका परित्याग कर दिया।