*786/92🕌*
*दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ,बाड़मे(राज:)*
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*मक़सदे क़याम, रफ्तारे तरक़्की़ और दर्द मन्दाना अपील
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*📝अज़:मुहम्मद शमीम अहमद नूरी मिस्बाही📝*
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*बानी-ए-इदारा*
*नमूना-ए-असलाफ हज़रत पीर सय्यद कबीर अहमद शाह बुखारी अ़लैहिर्रहमा!*
इसहकीॆ़क़त से हर साहिबे नज़र वाकि़फ है कि मुसलमानों की बक़ा और तरक़्की़ का मदार कुरआन व हदीष और उ़लूमे कुरआन व हदीष की हिफाज़त व तरक़्की़ पर है, इसी बिना पर अल्लाह की तौफीक़ व रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के तवस्सुल और बुज़ुर्गाने दीन के फैज़ान की बदौलत मुसलमान कभी इशाअ़ते उ़लूमे कुरआन व हदीष से गाफ़िल नहीं रहे| हिंदुस्तान में इस्लामी हुकूमत के ज़वाल के बाद जब मुसलमानों का मिल्ली तशख्खुस बल्कि सिरे से वजूद ही खतरे में था|इन खतरनाक हालात में अल्लाह तआ़ला ने मुसलमानों को ऐसे अ़ज़ीम रहनुमाओं की क़यादत नसीब फरमाई जिन्होंने मुस्तक़्बिल के खतरों का एहसास करके कुरआन व हदीष और उ़लूमे इस्लामिया की हिफाज़त व सियानत और दीन व सुन्नियत की नशर व इशाअ़त के कि़ले क़ाइम फरमाए, इसी नज़रिया और ज़रूरत के पेशे नज़र क़ुतबे थार हज़रत पीर सय्यद हाजी अ़ाली शाह बुखारी अ़लैहिर्रहमा के आस्ताना के क़रीब सेहलाऊ शरीफ में इस इदारा का क़याम अ़मल मे आया| यूं तो इस इलाके़ में बढ़ती हुई बद मज़हबिय्यतऔर तअ़लीम व तअ़ल्लुम से दूरी की वजह से इस ज़रूरत का एहसास एक अ़रसा(ज़माना) से था लेकिन तक़दीर में इसके लिए 2 फरवरी 1993 ईस्वी का दिन था | इस दिन मक़ामी व बैरूनी सादाते किराम ,अकाबिर उ़ल्मा व मशाइख और इलाक़े के मुअ़ज़्ज़िज़ीन के हाथों से संगे बुनियाद रखा गया और उस्ताज़ुल उ़ल्मा मुफ्ती-ए- आज़म राजस्थान हज़रत अ़ल्लामा *मुफ्ती मुहम्मद अशफाक़ हुसैन साहब क़िब्ला नईमी* अ़लैहिर्रहमा ने इदारा का नाम *”दारुल उलूम अनवारे मुस्तफा”* तज्वीज़ फरमाया|
*मक़सदे क़याम:* कुरआन और उ़लूमे कुरआन की तरवीज व इशाअ़त के साथ दुनियावी तअ़लीम का बंदोबस्त कर के नौनिहालाने इस्लाम को जदीद अ़सरी तक़ाज़ों से बाखबर करना, और ऐसे बा सलाहियत अफराद तैयार करना जो मिल्लते इस्लामिया की इल्मी, दीनी व फिक्री क़यादत का अ़ज़ीम फरीज़ा अंजाम दे सकें!
*रफ्तारे तरक़्क़ी:* दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा अल्लाह के फज़्ल व करम और बुजुर्गोने दीन के रूहानी फुयूज़ व बरकात और उ़ल्मा-ए- किराम व मशाइखे ज़विल एहतिराम की मुकद्दस दुआ़ओं के सदक़े व तुफैल अपनी तमाम तर बे सरो सामानी और वसाइल की कमी के बावजूद अपने रोज़े क़याम ही से तेज़ी के साथ तरक़्क़ी की राह पर गामज़न और अपने मक़ासिद की तरफ रवां दवां है| इदारा की शुरुआ़त घास फूस की बनी छप्पर की इमारतों, छप्पर की आ़रज़ी मस्जिद (इबादत खाना) चन्द इब्तिदाई तल्बा और मुदर्रिसीन से हुआ था| आज तक़रीबन 29 साल की मुख्तसर मुद्दत में दारुल उ़़लूम का स्टाफ 28 मुदर्रिसीन व मुलाज़िमीन पर मुश्तमिल है | जबकि तल्बा की तादाद लगभग साढ़े 350 है इसके एलावा दारुल उ़लूम के मातहत हाई स्कूल (10वीं क्लास)तक अ़सरी तअ़लीम का भी बन्दो बस्त है!इदारा ने अपने ज़ेरे निगरानी लगभग 80 तअ़लीमी शाखैं बशक्ले मदारिस व मकातिब क़ायम कर लिए हैं! जो अपनी अपनी जगह तअ़लीम व तअ़ल्लुम की नश्र व इशाअ़त और दीन व सुन्नियत की अ़ज़ीम खिदमत अंजाम दे रही हैं|
*दर्द मन्दाना अपील:* दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ अहले सुन्नत व जमाअ़त का एक फअ़्आ़ल व मुतहर्रिक और वसीअ़ तअ़लीमी व तरबियती इदारा है, यह इदारा रामसर तहसील के तहत गागरिया से 18 किलोमीटर दूर लबे रोड [भारत माला हाईवे पर ]वाके़अ़ है, यह इलाक़ा तअ़लीमी व तरबियती और सनअ़ती लिहाज़ से निहायत ही पस माँदा व पिछड़ा हुआ है ,मुसलमानों का आ़म पेशा ज़राअ़त (खेती-बारी व काश्तकारी) है वह भी दूसरे इलाक़ों के एतबार से बारिश की कमी और ज़मीन में मीठा पानी दस्तयाब ना होने की वजह से सिर्फ एक ही फसल, मुसलमानों की आ़म मेअ़यारे जिंदगी बिल्कुल निचली सतह पर है| ऐसी सूरत में बिरादराने इस्लाम अंदाज़ा कर सकते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर इस तअ़लीमी इदारा को जिंदा रखने और तरक़्क़ियों के मनाज़िल पर गामज़न करने के लिए किस क़दर जिद्दो जुहद और कोशिश करनी पड़ती होगी|_ सच्ची बात तो यह है कि अगर दूसरे सनअ़ती व कारोबारी इलाक़ो के खुशहाल मुसलमानों का ज़बरदस्त तआ़वुन इस इदारा को हासिल ना हो तो इसे अपना वजूद बचाना भी मुश्किल से मुश्किल हो जाएगा|
और सबसे अहम और खतरनाक बात यह है कि indo-pak बॉर्डर के पस माँदा इलाके़ पर बातिल क़ुव्वतों व बातिल अ़क़ाइद के लोगों की खुसूसी नज़र है, चुनान्चे हर गांव और ढाणी में मदारिस व मकातिब का जाल बिछाया जा रहा है, दौलत का सहारा लेकर गरीब और भोले-भाले मुसलमानों का ईमान ख़रीदा जा रहा है इसके अ़लावा इस तरह की और भी नापाक कोशिशैं की जा रही हैं| इसके बावजूद अल्हम्दुलिल्लाह इस इलाक़ा के उ़ल्मा-ए-हक़ अहलेसुन्नत व जमाअ़त व मुर्शिदाने तरीक़त की जान तोड़ जिद्दो जुहद और अनथक कोशिशों से बद अ़क़ीदों की मक्कारियाँ और फरेब कारियाँ कामयाब नहीं होतीं!
हो सकता है कि कुछ लोग हमारी इन बातों को मुबालग़ा पर महमूल करें मगर यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता-
*लिहाज़ा जुम्ला मुखय्यिरीने दीन व मिल्लत से पुरज़ोर व दर्द मंदाना अपील व गुज़ारिश है कि हमारी इन बातों को संजीदगी से लें-*
बराए खुदा इस अ़रीज़े को आ़म मदरसों की रसमी अपील या रवायती गुज़ारिश न तसव्वुर करें बल्कि यह तूफाने बला खेज़ के गरदाब में फंसे मुसाफिर की एक दिलदोज़ और दर्दनाक चीख है, जो रूह की गहराइयों से बुलंद हो रही है |
एक बार फिर आप सभी हमदर्दाने क़ौम व मिल्लत से गुजारिश है कि *आप हज़रात रमज़ानुल मुबारक के मौसमे खैर व बरकत* (जब कि मुल्क में लाक डाउन की वजह से हमारे सफीर आप तक नहीं पहुंच सके) *व दूसरे मौक़ों पर* अपने महबूब व मुस्तहिक़ इदारा *”दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा”* को याद फरमा कर *ज़कात, सदक़ात, खैरात व अ़तिय्यात से नवाज़ कर तअ़लीमी व तअ़मीरी तरक़्क़ी में हिस्सा लेकर अजरे अ़ज़ीम के मुस्तहिक़ हों|*
आप हज़रात ने अगर इस जानिब तवज्जुह दे दिया तो यह इदारा इंशाअल्लाहुल अ़ज़ीज़ रसूले हाशमी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़े व तुफैल अपनी तअ़लीमी, तरबियती, दावती और तबलीग़ी मिशन में मज़ीद कामयाबियों से हम किनार होगा-
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*DARUL ULOOM ANWARE MUSTAFA PACHHAMAI NAGAR,SEHLAU SHARIF,P/GARDIYA,TAH:RAMSAR,DIST:BARMER(RAJASTHAN)*
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