✍️जी पी दुबे
संवाददाता
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🟥बस्ती जून ग्राम पंचायतों में गरीबों को रोजगार देने के लिए बना मनरेगा, ग्राम पंचायतों में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का कारण बनता जा रहा है |

भारत सरकार ने जब 2008 में गांव के ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार देने के लिए यह कानून बनाया तो शायद भारत सरकार ने भी यह नहीं सोचा होगा की ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार देने के लिए बनाया गया मनरेगा प्रधान एवं अधिकारियों के कमाई का जरिया बन जाएगा |
कागजों में ग्रामीण मजदूरों को रोजगार देने का लक्ष्य भले ही शत-प्रतिशत नजर आ रहा हो लेकिन वह हकीकत से कोसों दूर है | यदा-कदा जांच होने पर वही अधिकारी जांच करते हैं जिसमें उनको भी इसका हिस्सा मिला होता है | मतलब ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती है | कुछ दुर्लभ मामलों में ही निष्पक्ष जांच हो पाती है |
ताजा मामला दुबौलिया विकासखंड के तिघरा ग्राम सभा का है जहां सूत्रों के अनुसार 200 से ज्यादा मजदूरों की हाजरी मात्र कागजों में लग रही है | जिसमें हजारों रुपए प्रतिदिन जिम्मेदारियों द्वारा गोलमाल किया जा रहा है |
जिम्मेदारों द्वारा किस प्रकार मामले की लीपापोती की जाती है
उसको आप कप्तानगंज विकास क्षेत्र के बहुचर्चित कौड़ी कोल ग्राम सभा के 3 साल पुराने मनरेगा के भ्रष्टाचार की जांच के ना पूरा होने पाने से लगा सकते हैं |
यह तो मात्र बानगी भर है, अगर निष्पक्ष और गोपनीय तरीके से जांच हो तो लगभग 80% ग्राम पंचायतों का यही हाल मिलेगा |