✍️मकसूद अहमद भोपतपुरी

🔴भाटपार रानी,देवरिया।मुहर्रम के मौके पर बनने वाले हादरा-हुदरी मुल्क की गंगा-जमुनी तहजीब की उपज हैं।इसका कोई जिक्र इस्लामी किताबों में नहीं मिलती।बावजूद इसके यह भारत की मिली -जुली संस्कृति की देन है।मंगलवार को मुहर्रम के मौके पर भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर हादरा-हुदरी बने हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदायों की युवक- युवतियां या हसन-या हुसैन का नारा बुलंद कर दौड़ लगाते हुए दिखे।बता दें कि मुहर्रम के मौके पर भारत के विभिन्न हिस्सों में हादरा-हुदरी बनने का प्रचलन है।खास तौर से उत्तर प्रदेश व बिहार में हादरा-हुदरी बनने वालों की तादात ज्यादा पाई जाती है।जब किसी छोटे बच्चे की तबियत खराब होती है या किसी व्यक्ति का कोई संतान पैदा नहीं होता है या फिर किसी मनचाहे कार्य की पूर्ति नहीं होती है, तो ऐसी स्थिति में लोग मनोकामना पूरी होने पर अपने बच्चों को हादरा-हुदरी बनाने की मन्नतें मांगते हैं।मन्नतें पूरी होने पर सम्बन्धित युवक-युवती,छोटे बच्चों या फिर कभी बड़े उम्र के लोगों को भी हादरा-हुदरी बनाया जाता है।मुस्लिम समाज के अलावा अधिकांश हिन्दू बिरादरी के बच्चों को भी हादरा-हुदरी बनाया जाता है।इनके ज्यादातर तौर- तरीके हिन्दू धर्म से भी मिलते -जुलते हैं।नौवीं मुहर्रम की रात में जब ताजिया कसकर चौक पर रख दिया जाता है, उसी समय हादरा-हुदरी बनाने का सिलसिला शुरू होता है, जो रात भर चलता है।अगले दिन सुबह दसवीं मुहर्रम को ये हादरा-हुदरी पूरे दिन भर दर्जनों गांवों में घूमकर या हसन-या हुसैन का नारा बुलंद करते हुए दौड़ लगाते हैं।ये चौक व ताजिए के चारों तरफ परिक्रमा भी करते हैं।हादरा-हुदरी के दोनों कंधे पर धोती या साड़ी को लपेट कर उसे लटकती हुई चोटियों की तरह बांधा जाता है।वहीं उनके सिर पर पगड़ी भी बांधा जाता है।कुछ हादरा अपने कमर में घुंघरू भी बांधते हैं, जो दौड़ते समय बजता रहता है।वहीं हादरा-हुदरी बांस के बने हुए तीर कमान से लैश रहते हैं।इनकी माताएं नौवीं व दसवीं मुहर्रम को व्रत रखकर ताजिए पर खिचड़ी का चढ़ावा भी करती हैं।वहीं हादरा-हुदरी भी मुहर्रम के रोज दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करते हैं।वे सिर्फ फल व शर्बत का सेवन करते हैं।इस्लाम धर्म मे हर जगह निर्जल व्रत का प्रावधान है, लेकिन यहां इनके व्रत रहने का तरीका हिन्दू धर्म से मिलता -जुलता है।बताया जाता है कि हादरा-हुदरी बनने का कोई जिक्र इस्लामी किताबों में नहीं है।बावजूद इसके भारत मे कई धर्म के लोगों को साथ-साथ रहने के चलते यह हमारी गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतिफल है।हादरा-हुदरी को हुसैनी फौज का प्रतीक माना जाता है, जो प्यार,भाईचारे,शांति व इंसानियत की रक्षा के लिए जुल्मो-सितम के खिलाफ संघर्ष का पैगाम देते हैं।