शहीद अशफाक उल्ला खॉ प्राणी उद्यान के प्रदर्शनी हाल में खुला बांस के निर्मित उत्पाद की बिक्री का शॉप
अनुकरणीय पहल
🟥गोरखपुर
बांस से किसानों की जिंदगी में ‘हरियाली’ लाने के लिए गोरखपुर वन प्रभाग न केवल बांस की खेती बढ़ावा दे रहा। ब्लकि वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग लक्ष्मीपुर में बने कॉमन फैसेलिटी सेंटर (सीएफसी) में बांस के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण पाए लोगों को स्वरोजगार के लिए मंगलवार को शहीद अशफाक उल्ला खॉ प्राणी उद्यान के प्रदर्शनी हाल में स्टॉल भी उपलब्ध करा दिया। अब प्राणी उद्यान भ्रमण पर जाने वाले शहरवासी इस स्टॉल पर बांस के निर्मित उपयोगी उत्पाद खरीद कर समूह की महिलाओं की प्रगति में सहायक बन सकते हैं।
मंगलवार को प्राणी उद्यान परिसर में मुख्य वन संरक्षक गोरखपुर मंडल भीमसेन, प्राणी उद्यान के निदेशक डॉ एच राजा मोहन ने फीता काट कर उदघाटन किया। इस दौरान प्रभागीय वन अधिकारी विकास यादव, वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ डॉ योगेश प्रताप सिंह, प्राणी उद्यान एवं गोरखपुर वन प्रभाग के कर्मचारी भी मौजूद रहे। इस दौरान भीमसेन और डॉ एचराजा मोहन ने समूह की महिलाओं को मनोबल बढ़ाया, उनके बनाए गए उत्पाद की जानकारी भी हासिल की। महिलाओं को प्रेरित किया बांस की बनी ज्वैलरी भी स्टॉल पर रखे और आत्मविश्वास के साथ उनकी बिक्री करें। डीएफओ विकास कुमार कहते हैं कि प्रशिक्षण लेने वाली अन्य महिलाओं को भी समूह बना इससे जोड़ा जाएगा।
12 से अधिक महिलाएं जुड़ी, बना रही उत्पाद
नेशनल बम्बू मिशन के अंतर्गत कैंपियरगंज में स्थापित सामान्य सुविधा केंद्र पर प्रशिक्षित सिंकदर स्वयं सहायता समूह से 12 से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई है। उनके द्वारा निर्मित बांस के उत्पादों की बिक्री के लिए एवं फॉरवर्ड लिंकेज बनाने के लिए उन्हें प्राणी उद्यान में शॉप उपलब्ध कराई गई। यहां प्रदर्शित उत्पाद पर्यावरण फ्रेंडली होने के साथ इको टूरिज्म को बढ़ावा देने वाले भी हैं।
उपलब्ध हैं ये उत्पाद
यहां बांस से हस्त निर्मित नाव, पेन स्टैंड, पेन स्टैंड कप मॉडल, लैम्प, कप, गिलास, फ्लावर पॉट, प्लेट, कटोरी, बाक्स सरीखे आईटम हैं। इनकी कीमत 60 रुपये से लेकर 350 रुपये तक है। हेरिटेज फाउंडेशन की संरक्षिका डॉ अनिता अग्रवाल इस कदम की सराहना करते हुए कहती हैं कि इन हस्त निर्मित ग्रामीण कलाकारों को हौसला बढ़ावा गया तो यह नई डिजाइन और उन्नत आइटम बनाने में सफलता अर्जित करेंगे।

केंद्र सरकार ने बांस को घास की श्रेणी में ला दिया है। ताकि किसानों इसे लगाने और काटने में किसी तरह के अवरोध का सामना नहीं करना पड़े। सरकार का मानना है कि बांस की खेती को बढ़ावा दिया जाए तो न केवल हरियाली में इजाफा होगा बल्कि किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी। डीएफओ अविनाश कुमार कहते हैं कि इस योजना से न केवल किसान लाभान्वित होंगे। बांस से उत्पाद बनाने वाले भी लाभांवित होंगे। बांस की खेती के विकास, बांस की खेती को बढ़ाना, बांस से बनाए गए उत्पादों की मार्केटिंग और प्रमोट करना मिशन का लक्ष्य है।

इन रेंज में बनेगी नर्सियां, लगेंगे बांस के पौधे
फिलहाल फरेंदा, तिलकोनिया, कैम्पियरगंज और बॉकी रेंज में बांस की नर्सरियां बनाई जाएगी, और बांस के पौधों का रोपण किया जाएगा। इस कार्य में काफी संख्या में ग्रामीण स्तर पर लोगों को मजदूर के रूप में काम मिल सकेगा। एक बांस तैयार होने में यह 6 माह से 1 वर्ष तक का समय लेता है। इसके लिए उन्नतशील पौधे विभाग स्वयं की नर्सियों में उपजाएगा।