ईश्वरीय दूत धरती पर अपनी विधा का सर्वोत्तम दे चले जाते हैं : आत्मीय

– भारत रत्न लता मंगेशकर की मुंगेर में मनाई गई पहली जयंती समारोह

🟥मुंगेर। जिस दिन इस साल मां सरस्वती की प्रतिमाओं का विसर्जन हुआ उसी दिन विश्व की सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका भी संसार से विदा हो कर अलविदा कह गयीं। स्पष्ट है कि वे मानव योनी में धरती पर आईं, परंतु अवतार की तरह गायकी का अद्वितीय एवं शिखर आनंद पृथ्वी के निवासियों को प्रदान कर गयीं। भारतरत्न लता मंगेशकर वस्तुतः विश्व-रत्न रही हैं। सात सुरों के तीनों सप्तक सहित उन्होंने ऐसे नये सुरों को जन्म दिया जिसकी कल्पना बड़े बड़े संगीतकारों को भी नहीं थी। तभी तो अधिकांश संगीतकार उनसे परामर्श के बाद सुरक्षा का सृजन कर संगीतबद्ध करते थे। उक्त सारगर्भित विचार अखिल भारतीय साहित्य परिषद मुंगेर जिला शाखा के दो दशक पूर्व से अध्यक्ष बने साहित्यकार व अभिनेता मधुसूदन आत्मीय ने रविवार को लल्लू पोखर स्थिति कंठ काॅलोनी के श्री सिस्टर्स डान्स एकेडमी के प्रशिक्षण कक्ष में आयोजित महान पार्श्व गायिका लता मंगेशकर की प्रथम जयंती पर कलाकारों के समक्ष मंगलवार को व्यक्त किये।
जयंती समारोह का शुभारंभ लता मंगेशकर की तस्वीर पर माल्यार्पण कर मधुसूदन आत्मीय ने व्यवस्थापिका भावना प्रसाद व अनिरुद्ध के साथ किया। इनके अलावा कार्यक्रम की प्रस्तुति देने वाली नृत्यांगना शुभश्री, श्रुतिश्री ( विश्वविद्यालय की डान्स चैम्पियन), सुहानी शर्मा, अश्विका, आन्वी, पीहू, डौली, वैष्णवी, श्रेया खुशबू, मनीषा व बालकों ने भी पुष्पांजलि अर्पित की। लताजी के गाये समूह गीत ” तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो…” से कार्यक्रम शुरू हुआ। फिर लता मंगेशकर के गाये गीतों ‘ अपलम चपलम चपलाई रे आई रे…’ पर तीन दिन पूर्व मुंगेर विश्वविद्यालय नृत्य – प्रतियोगिता की चैम्पियन रही श्रुतिश्री ने, उनकी बड़ी बहन शुभ श्री ने ‘ परदेशिया ये सच है पिया लोग कहते हैं तू ने मेरा दिल ले लिया…’ पर, सुहानी शर्मा ने ‘ मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ियां हैं…’ पर काफी आकर्षक एकल नृत्य कर उपस्थित लोगों को झुमा दिया। अन्य उपरोक्त छात्राओं ने भी ‘योगी हम तो लुप्त गए तेरे प्यार में…, ‘ ऊंचे हिमालय के नीचे…, मोंगिया से छल किये जा…’ गीतों पर सदा हुआ नृत्य प्रस्तुत कर महान पार्श्व गायिका लताजी को श्रद्धांजलि अर्पित की। आकर्ष व अमित ने तस्वीर के चतुर्दिक सज्जा की।
इस अवसर पर शिक्षिका भावना प्रसाद ने संगीत को आनंद-प्राप्ति का सशक्त साधन और नृत्य को पूर्ण व्यायाम बताया। अनिरुद्ध प्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापन किया।