🟥जयनगर (बिहार)

प्राचीन कहावत है कि –
*जरूरी नहीं रोशनी चिरागों से हो, शिक्षा से भी घर रोशन होते हैं*

अनेक वर्षों तक चर्चा और विचार करने के बाद, भारत की नई शिक्षा नीति, *’राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’* को सरकार ने जुलाई 2020 में हरी झंडी दे दी। 1968 और 1986 के बाद, यह आजाद भारत की तीसरी शिक्षा नीति है।
साल 2017 से, इसरो प्रमुख रह चुके *डॉ. के कस्तूरीरंगन* की अध्यक्षता में गठित समिति ने इसे बनाया, और 2019 में ये तैयार थी।

*क्यों चाहिए एक नई शिक्षा नीति*
1980 से 2020 तक, इंडिया पूरी तरह से बदल चुका था, हर मायने में। अर्थतंत्र, समाज, कंपनियां, प्रोडक्ट्स, एजुकेशन सब कुछ। एक *नई शिक्षा नीति* इसलिए चाहिए थी कि करोड़ों यंग स्टूडेंट्स को स्कूल और कॉलेज में ऐसे तैयार किया जाए जो उन्हें इस समय के चैलेंज के लिए तैयार करे।
मैं 2014 से शिक्षा से जुड़ा हूं, और मेरा एनालिसिस कहता है कि सरकार इस NEP से चार फोकस एरिया / चार पिलर्स (स्तम्भ) पर काम करेगी –
*1) फ्लेक्सिबल एजुकेशन*
*2) इनोवेशन*
*3) प्रैक्टिकल नॉलेज*
*4) अडैप्टेबिलिटी (अनुकूलन)*

*NEP का मुख्य लक्ष्य क्या है*
*NEP 2020* का मुख्य लक्ष्य स्टूडेंट्स को ज्ञान के साथ-साथ रोजगार परक शिक्षा देना है।

*नेशनल एजुकेशन पालिसी के मुख्य पहलू*

*1) वोकेशनल स्टडीज पर फोकस*: छठवीं से ही वोकेशनल स्टडीज मिलने के कारण सेल्फ-एम्प्लॉयमेंट के अवसर लॉन्ग टर्म में बढ़ जाएंगे। छठी कक्षा से ही बच्चों को इंटर्नशिप कराई जाएगी जिससे प्रैक्टिकल नॉलेज प्राप्त हो। शिक्षा नीति में कोडिंग और टेक्निकल नॉलेज को भी शामिल किए जाने का प्रावधान है। अभी वोकेशनल स्किल्स सीखने वाले स्टूडेंट्स की संख्या बहुत कम है। नई शिक्षा नीति में 2025 तक लगभग 50% स्टूडेंट्स को वोकेशनल स्टडीज पढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

*2) लचीलापन (फ्लेक्सिबिलिटी)*: NEP का लक्ष्य है अधिक स्टूडेंट-सेंट्रिक होना, जिससे स्टूडेंट अपने स्किल्स के साथ अपने पैशन को भी आगे बढ़ा सके। 9वीं से 12वीं क्लास के दौरान बच्चे अपने फेवरेट (मनपसंद) सब्जेक्ट्स को सिलेबस में शामिल कर पाएंगे। सब्जेक्ट्स के कॉम्बिनेशन में लचीलापन लाया गया है और इसे मल्टी-डिसिप्लिनरी बनाया गया है। अर्थात मैथ्स-साइंस, मैथ्स-बायो, कॉमर्स, और आर्ट्स विषयों के कई कॉम्बिनेशंस लिए जा सकेंगे। बोर्ड एग्जाम का वेट घटाया गया है जिससे बच्चों का स्ट्रेस कम होगा। बोर्ड एग्जाम दो भागों में आयोजित की जाएगी। यदि कोई बच्चा अपनी उच्च शिक्षा पूरी कर पाने में असमर्थ है या 3 वर्ष का कोर्स पूरा नहीं कर पाता है तो भी उसे सर्टिफिकेट, डिप्लोमा प्राप्त हो पाएगा (उसका नुकसान नहीं होगा)।

*3) टीचर्स ट्रेनिंग*: बेहतर ट्रेनिंग का मतलब है बेहतर टीचर्स, और बेहतर रिजल्ट्स। अर्ली चाइल्डहुड करिअर एंड एजुकेशन (ईसीसीई) शिक्षकों का शुरुआती कैडर तैयार करने के लिए आंगनबाड़ी वर्कर्स और टीचर्स को एनसीईआरटी द्वारा बनाए पाठ्यक्रम के अनुसार प्रशिक्षण देगा। इन्हें 6 माह का सर्टिफिकेट कोर्स और एक साल का डिप्लोमा कराया जाएगा। ईसीसीई कोर्स और टीचिंग मेथड की जिम्मेदारी शिक्षा मंत्रालय की होगी। महिला और बाल विकास, स्वास्थ्य तथा जनजातीय कार्य मंत्रालय कोऑपरेट करेंगे। टीचर्स ट्रेनिंग से बचपन से ही स्टूडेंट्स की एजुकेशन का लेवल सुधरेगा और वह अधिक एम्प्लॉयबल होगा।

*4) इंडियन यूनिवर्सिटीज के लिए विदेशों के दरवाजे खोले गए*: हाई-परफॉर्मेंस इंडियन यूनिवर्सिटीज को अन्य देशों में कैंपस स्थापित करने के लिए मोटीवेट किया जाएगा। इसी तरह दुनिया के शीर्ष यूनिवर्सिटीज को भारत में संचालन की अनुमति दी जाएगी। इसके लिए एक लीगल फ्रेमवर्क तैयार किया जाएगा। फॉरेन यूनिवर्सिटीज में अर्जित किए गए क्रेडिट को देश में मान्य करने के बारे में सोचा जा रहा है।

*5) शिक्षा पर खर्च बढ़ाया जाएगा*: आज इंडिया एजुकेशन पर जीडीपी का 3% से कम खर्च करता है, जिसे 6% करने की बात है। यदि केंद्र एवं राज्यों द्वारा शिक्षा पर ज्यादा निवेश करेंगे तो संसाधन बढ़ेंगे। इसका सीधा असर शिक्षा की क्वालिटी और उसके बाद एम्प्लॉयबिलिटी पर पड़ेगा।

*6) उच्च शिक्षा में फीस रेगुलेशन*: संस्थानों को उनके प्रमाणन के आधार पर फीस की एक उच्चतर सीमा तय करने के लिए पारदर्शी तंत्र विकसित करने का भी प्रोविजन है। निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों द्वारा निर्धारित सभी फीस क्लीयरली बताया जाना और फीस में मनमानी वृद्धि रोकना भी शामिल है।

*7) आईआईटी मल्टी-डिसिप्लिनरी बनाया जाएगा*: आईआईटी जैसे इंजीनियरिंग संस्थानों को ह्यूमैनिटी छात्रों के लिए भी कोर्सेस उपलब्ध कराने होंगे।

*8) नेशनल रिसर्च फाउंडेशन*: नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के माध्यम से रिसर्च के कल्चर को बढ़ाया जाएगा। भारत में रिसर्चर्स को बढ़ावा दिया जाएगा जिससे एम्प्लॉयबिलिटी की समस्या को हल करने में मदद मिलेगी।
हाल के दिनों में वर्कफोर्स में लचीलापन, प्रैक्टिकल नॉलेज, इनोवेशन और अडैप्टेबिलिटी की आवश्यकता बढ़ गई है। हायरिंग से लेकर परफॉर्मेंस रिव्यू तक, इन स्किल्स को हमेशा प्राथमिकता दी जाती है।
उम्मीद करते है नई शिक्षा नीति, वर्तमान शिक्षा प्रणाली की स्टूडेंट्स में इन क्वालिटीज को डेवलप न कर पाने की कमी को पूरा करेगी। इसमें राज्यों का रोल अहम रहेगा।
उम्मीद है कि नई शिक्षा नीति को यदि ठीक से लागू किया गया, तो आगामी दस सालों में बड़े और सकारात्मक बदलाव दिख सकते हैं….

*डॉ. शैलेश कुमार सिंह*
सहायक प्रोफेसर, वाणिज्य विभाग
डी. बी. कॉलेज, जयनगर (बिहार)
अंगीभूत इकाई ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा