गोरखपुर / हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया “जंग की तमन्ना मत करो लेकिन अगर तुमसे कोई लड़ना चाह रहा है और बाज़ नहीं आ रहा तो यक़ीन कर लो जन्नत अल्लाह ने तलवारों की झंकार में रखी है”
आज सिर्फ़ यह बात आम की जाती है कि इस्लाम सिर्फ अमन का मज़हब है, लेकिन इस्लाम में इतनी जंगें भी तो हुई हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने अपने सहाबा के साथ कितनी जंगें लड़ीं। दीन की ख़ातिर, हक़ की सर-बुलंदी की ख़ातिर और इंसानियत की अमान की ख़ातिर कितने ही मुजाहिदीन ने अपनी जानों की कुर्बानियां दीं।
बेशक इस्लाम अमन और इंसानियत का दर्स देता है। इख़लाक़ और इख़्वानीयत को फ़रोग़ देता है लेकिन साथ ही साथ बातिल क़ुवतो के सामने डटकर खड़े होने, बोलने और लड़ने का भी दर्स देता है।
नबी और सहाबा से ज़्यादह न कोई इख़लाक़ वाला है ना अम्न वाला लेकिन जब हक़ की बात आयी तो नबी अलैहिस्सलाम मैदान में भी आए, नबी अलैहिस्सलाम की अम्न-इंसानियत वाली सीरत के साथ साथ उनकी हक़/इंसानियत की ख़ातिर जंग और जिहाद वाली सीरत को भी बयान किया जाना चाहिए ताकि लोगों को पता चल सके की नबी ने हमेशा बातिल के ख़िलाफ़ तलवार बुलंद की है।

हुज़ूर अलैहिस्सलाम को क़ुरआन ने रहमतुल्लिल आलमीन कहा है। वो रू-ए-ज़मीन के सबसे बड़े अम्न वाले इंसान हैं। इंसानियत की किताब में उन्हें मोहसिन-ए-इंसानियत भी कहा जाता है। हर ज़िक्र कीजिए लेकिन साथ साथ ये नाम भी बयान किया जाना चाहिए कि उसी अज़ीम ज़ात को…
“नबी-उस-सैफ़” यानी की तलवारों वाले नबी
“नबी-उल-मलाहिम” यानी जंगों वाले नबी
“नबी-उल-मलहमा” यानी घुमसान की जंगो वाले नबी
“नबी-उल-मुहर्रीद” यानी जिहाद की तरफ उभारने वाले नबी भी कहा जाता है।
सिद्दिक़-ए-अकबर, उमर फ़ारूक़, उस्मान-ए-ग़नी, मौला अली, ख़ालिद बिन वलीद, सलाहुद्दीन अय्यूबी की तलवारों की भी बात होनी चाहिए ताकि लोग बुज़दिल ना बनें।
आज मुसलमानो ने अपनी बुज़दिली को इस्लाम सिर्फ अम्न का मज़हब है कह कर छिपाया हुआ है। लोग अपनी बुज़दिली को अम्न पसंदी का नाम दे रहे हैं और बेगैरती को इख्लाकियात का नाम देते हैं।
इस्लाम बेशक अम्न का हुक्म देता है तब तक जबतक आपका दुश्मन आपसे नहीं लड़ता। आज आपको मारा जा रहा है। आपको ज़लील किया जा रहा है। आपका हक़ मारा जा रहा है। पैगंबर-ए-इस्लाम और इस्लाम की शान में कितने तौहीन आमेज़ जुमले बोले जा रहे हैं और हमें ग़ैरत नहीं आरही है। हम बेग़ैरती से अम्न पसंद बने हुवे हैं। हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया “जो हक़ देख कर ख़ामोश रहे वो गूंगा शैतान है”
“उम्मत एक जिस्म की मानिंद है, जैसे इंसान का जिस्म है। जैसे इंसान के जिस्म के किसी एक हिस्से को तकलीफ़ होती है तो दर्द पूरा जिस्म महसूस करता है वैसे ही उम्मत एक जिस्म की मानिंद है। तकलीफ़ धरती के किसी भी हिस्से पर रहने वाले मुसलमान को हो दर्द पूरी उम्मत महसूस करती है”