🛑जौनपुर / आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज अयोध्या के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र, अमिहित, जौनपुर-2 के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डाॅ संजीत कुमार कुमार ने कहा किसान भाईयो गेहूँ की फसल में उचित सिंचाई एवं जल निकास प्रबन्धन करके गेंहू की फसल से अधिकतम उत्पादन ले सकते है। उन्होने कहा कहा किसान भाई गेंहूँ की फसल मे उसकी क्रान्तिक अवस्थाओं पर सिंचाई अवश्य करे जिससे फसल की उचित बढवार हो सके। सभी अवस्थाओं में एक यही आधार लिया जा सकता है। गेहूँ की अवस्था के आधार पर सिंचाई
गेहूँ के पौधें के जीवन चक्र की कुछ ऐसी अवस्थाएं होती है जिनको हम अच्छी तरह पहचान सकते है और यदि इन अवस्थाओं पर सिंचाई करें तो गेहूँ में पानी का उचित प्रबन्ध हो जाता है। डाॅ संजीत कुमार ने कहा किसान भाईयो गेहूँ की ऐसी अवस्थाएं निम्नलिखित है जिन पर सिंचाई करने से अच्छा लाभ होता है।
1.बोआई के बाद औसत समय
मुख्य जड बनाते समय (बुवाई के 21-25 दिन बाद)
2. कल्लों के विकास के समय (बुवाई के 40-45 दिन बाद)
3. तने में गाँठ पडते समय (बुवाई के 65-70 दिन बाद)
4. बालियां निकलते समय (बुवाई के 85-90 दिन बाद)
5. दानों में दूध पडते समय
(बुवाई के 105-110 दिन बाद)
6. दाना सख्त होते समय (बुवाई के 120-125 दिन बाद)
उचित मात्रा में पानी उपलब्ध होने पर उपयुक्त सभी अवस्थाओं मे सिंचाई करनी चाहिए क्योंकि पौधों की बढवार के लिए प्रत्येक अवस्था में पानी की आवश्यकता पडती है। कुछ ऐसे क्षेत्र होते है जहां पानी पूरी सिंचाई के लिए उपलब्ध नही होता है। ऐसे क्षेत्रों में सिंचाई विशेष अवस्था में करें। परीक्षणों से यह पता चला है कि पौधों के जीवन चक्र मे कुछ ऐसी अवस्थाएं होती है जबकि पानी की कमी के कारण उन्हें सर्वाधिक हानि पहुंचती है। यह अवस्थाएं सिंचाई की दृष्टि से क्रान्तिक अवस्थाएं कहलाती है। गेहूँ की फसल में मुख्य जड के विकास तथा फूल आने का समय सिंचाई की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसलिए जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सीतित सुविधाएं प्राप्त है, वहां पानी का उपयोग सिंचाई के लिए निम्नलिखित तरीके से करना चाहिए। इस बात को अच्छी तरह ध्यान में रखना चाहिए कि केवल क्रान्तिक अवस्थाओं में ही सिंचाई करने से इष्टतम उपज प्राप्त की जा सकती है।
किसान भाईयो यदि पानी केवल एक सिंचाई के लिए उपलब्ध है तो यह सिंचाई मुख्य जड के विकास की अवस्था में कर देनी चाहिए जो बौनी किस्मों में बोआई के 20-25 दिन बाद आती है।
किसान भाईयो यदि पानी दो सिंचाइयों के लिए उपलब्ध है तो पहली सिंचाई मुख्य जड के विकास के समय तथा दूसरी फूल आते समय करनी चाहिए। किसान भाईयो यदि पानी तीन सिंचाइयों के लिए उपलब्ध है तो पहली सिंचाई मुख्य जड के विकास के समय, दूसरी सिंचाई तने में गाँठ बनते समय तथा तीसरी दाने में दूध बनते समय करनी चाहिए।
किसान भाईयो यदि चार सिंचाइयों की सुविधा है तो सिंचाई मुख्य जड बनते समय, तने में गाँठें बनते समय, बाली निकलते समय तथा दानों में दूध बनते समय करनी चाहिए। गेहूँ में सबसे ज्यादा नुकसान मुख्य जड बनते समय सिंचाई न करने से होता है। गेहूँ में विभिन्न क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई न करने से पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पडता है । किसान भाईयो प्राय: यह देखा गया है कि जिन क्षेत्रों में सिंचाई के सिमित साधन है, उनमें पानी की कमी के कारण इतना कम पानी लग पाता है के जडों की पूरी गहराई तक पानी नहीं पहुंच पाता, इसलिए फसल की उपज में भारी कमी हो जाती है। इसके विपरीत नहरी क्षेत्रों में तथा सरकारी नलकूपों द्वारा सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में किसान आवश्यकता से अधिक गहरी सिंचाई करने हैं क्योंकि अगली सिंचाई को कब उपलब्ध होगी यह निश्चित नहीं होता। आवश्यकता से अधिक पानी फसल के लिए प्रत्यक्ष रूप से हानिकारक है तथा पोषक तत्वों को भूमि में जड क्षेत्र से अधिक गहराई में बहा ले जाता है। बलुई भूमि में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है और मटियार में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है, क्योंकि बलुई भूमि को पानी रोकने की क्षमता मटियार भूमि की अपेक्षा कम होती है। यदि सिंचाई अधिक उपज के अंतर पर की जाय तो सिंचाई की गहराई अधिक होनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में पानी का स्तर भूमि की सतह के समीप हो तो उन क्षेत्रों में कम संख्या में सिंचाई की आवश्यकता होगी क्योंकि बाद की अवस्थाओं में भूमि के इस जल स्तर से कुछ पानी पौधों की जडों का उपलब्ध हो जाता है। औसतन 4 से 5 से0मी0 पानी प्रत्येक सिंचाई में देना चाहिये। यदि बारिश या सिंचाई के द्वारा खेत में आवश्यकता से अधिक पानी भर जाता है तो फालतू पानी को तत्काल खेत से बाहर निकाल दें। इस कार्यक्रम के सम्पादन मे प्रदीप कुमार यादव, सचिन यादव, धीरज कुमार, रंजना विश्वजीत, तिलक राज आदि का सहयोग रहा।