🔴गोरखपुर / हिन्दुस्तान सहित दुनिया भर में सूबा राजस्थान के अजमेर शरीफ़ का नाम बड़ी ही अ़क़ीदत और मोहब्बत के साथ लिया जाता है। वक्त बाते मुनाजिर हसन ने कही। इसका श्रेय महान सूफ़ी हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अ़लैह और उनकी शिक्षाओं व नसीहतों को जाता है। इनका उर्स मूबारक हर साल इस्लामी सन् हिजरी कलेण्डर के मुत़ाबिक़ 1 रजब से 6 रजब तक बड़े ही एहतेमाम के साथ अजमेर शरीफ़ में मुन्अ़क़िद किया जाता है। उर्स के मुबारक मौक़े पर देश-विदेश के हज़ारों लाखों हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई, अमीर, ग़रीब, बादशाह, फ़क़ीर वग़ैरा बड़ी ही अ़क़ीदत व मोहब्बत के साथ अजमेर शरीफ़ तशरीफ़ लाते हैं, दरबारे ख़्वाजा में अ़क़ीदत के फूल पेश करते हैं, अपनी ग़ुलामी का सबुत देते हैं और मचल-मचल कर कहते हैं कि…

ग़रीब आए हैं दर पे, तेरे ग़रीब नवाज़!
करो ग़रीब नवाज़ी, मेरे ग़रीब नवाज़!!
तेरे दर की करामत, यह बार-हा देखी!
ग़रीब आए और हो गए, ग़रीब नवाज़!!

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का जन्म 9 रजब 530 हिजरी, सन् 1143 ईस्वी में मध्य एशिया के सीस्तान के संजर क़स्बे में हुई थी। आपके अब्बू जान का नाम हजरत ख़्वाजा ग़यासुद्दीन और अम्मी जान का नाम बीबी उम्मुल्वरा, अल्मौसूम माहे नूर था। आपकी अम्मी जान फ़रमाती हैं कि जब मेरा बेटा मोईनुद्दीन मेरे शिकम (पेट) में था, मेरा घर ख़ैर व बरकत से भर गया और जब मेरा बेटा मोईनुद्दीन पैदा हुआ, तो मेरा पूरा घर नूर से मामूर हो गया। जब ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की उम्र 14 साल की हुई, तो आपके अब्बू जान का साया सर से उठ गया। आप यतीम हो गए। इस हादसे के कुछ ही महीने बाद आपकी अम्मी जान का भी इन्तिक़ाल हो गया। इस पर आपने सब्र किया।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का बचपन असरारे इलाही और मार्फ़ते इलाही से भरा हुआ था। आप बड़े ही रहम दिल और दयालू थे। आप हमेशा ग़रीबों, फ़क़ीरों और नेक लोगों से मोहब्बत किया करते थे और उनका अदब-व-एहतराम किया करते थे। अब्बू और अम्मी का साया सर से उठने के बाद, विरासत में जो कुछ भी आपको मिला था, सबको ख़ुदा की राह में पेश करके तालीम हासिल करने के लिए बुख़ारा आ गए। यहाँ आपने क़ुरआन शरीफ़ को ज़बानी याद किया और क़ुरआन शरीफ़ के हाफ़िज़ बने। तालिम से फ़ारिग़ होने के बाद आप इराक़ तशरीफ़ ले गए। इराक़ में आपने हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारुनी से बैअ़त हासिल की और पूरे 20 साल तक आपने अपने पीर की ख़िदमत की। इन 20 सालों में आपने ऐसे-ऐसे मुजाहिदात किए कि हक़ीक़त की तमाम मंज़िलों को आपने तय कर लिया। आप दिन-रात ईबादते ईलाही में मशग़ूल रहा करते थे। आपकी जिन्दगी बहुत ही सादा थी। आपके बारे में कहा जाता है कि आपने कभी भर पेट खाना नही खाया। आपके बारे में यह भी मशहूर है कि आपने ज़िन्दगी भर एक ही लिबास को पहना और जब यह फट जाता था, तो उस पर पैबन्द लगा लिया करते थे। पैबन्द पे पैबन्द लगाने से आपका लिबास इतना भारी हो गया था कि आपके इन्तिक़ाल के बाद, जब उसे तौला गया तो उसका वज़न साढ़े बारह सेर था।

एक मर्तबा हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ अपने पीर व मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारुनी के साथ मदीना शरीफ़ तशरीफ़ ले गए। आप पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अ़लैहे वसल्लम के मज़ार की सुनहरी जालीयों के पास बैठे थे कि इतने में एक आवाज़ आई, ऐ मोईनुद्दीन! हिन्दुस्तान की विलायत तुम्हारे सुपुर्द है, अजमेर जाओ और वहीं ठहरो। पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अ़लैहे वसल्लम का हुक्म मिलने के बाद, कई मुल्कों की सैर करते हुए 10 मुहर्रम सन् 561 हिजरी को आप अजमेर में तशरीफ लाए। यहां सबसे पहले मीर सय्यद हुसैन साहब आपके मुरीद हुए। उसके बाद तो लोगों का तांता लग गया। हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की शान, शख़्सीयत और आपकी त़ाअ़लीमात ऐसी थी कि हर आदमी आप से मुताअस्सिर होता था।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ फ़रमाया करते थे कि अल्लाह का मेहरबान वही इन्सान है, जिसके दिल में दरिया जैसी सख़ावत, आफ़ताब जैसी मेहरबानी और ज़मीन जैसी ख़ातिरदारी हो। ईल्म वह है, जो सुरज की तरह चमके और फिर पूरी दुनिया को अपनी रौशनी से चकाचैंध कर दे। अगर दोस्त की दोस्ती में सारी दुनिया को छोड़ दिया जाए, तब भी वह कम है। अच्छे लोगों की सोहबत, अच्छाई की वजह से अच्छी है और बुरे लोगों की सोहबत, बुराई की वजह से बुरी है। दुनिया में दो बातों से बढकर कोई बात नहीं, पहली आलिमों की सोहबत और दुसरी बड़ों की इज़्ज़त।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की तब्लीग़ और हिदायत का त़रीक़ा निहायत ही आला था। आप हर आने वाले इंसान से कहा करते थे कि तमाम मख़लूक़ ख़ुदा का कुन्बा है और इसकी ख़िदमत करने से ख़ुदा के नज़दीक़ बहुत बड़ा मुक़ाम हासिल होता है। ख़ुदा के नज़दीक़ सबसे ईज़्ज़त वाला वही है, जो लोगों में सबसे ज़्यादा नेक हो। किसी को सिर्फ़ ज़ात, पात, रंग, रुप की वजह से दुसरे पर फ़ज़ीलत नहीं मिल सकती। इंसानियत का एहतेराम और मज़हब व मिल्लत के बड़े बुज़ुर्गों की इज़्ज़त करना आला दर्जे का अख़लाक़ है। मज़हब इंसानियत की इस्लाह और फ़लाह का त़रीक़ा है और हर आदमी को हक़ हासिल है कि उसकी ताअ़लीमात को सीखे और उस पर अ़मल करे।

हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का इन्तिक़ाल सन् 633 हिजरी में 5 व 6 रजब की दरमियानी रात को हुआ था। जब यह ख़बर आशिक़ाने ख़्वाजा तक पहुंची, तो हज़ारो हज़ार की संख्या में अ़क़ीदत के आंसू बहाते हुए, अपने मसीहा के जनाज़े की नमाज़ में शरीक हुए। जनाज़े की नमाज़ आपके बड़े साहबज़ादे, हज़रत ख़्वाजा फ़ख़्रुद्दीन चिश्ती ने पढ़ाई। जिस जगह पर आपका इन्तिक़ाल हुआ था, उसी जगह पर आपको सुपुर्दे ख़ाक किया गया।

ग़रीबों, यतीमों, फ़क़ीरों वग़ैरा की मुरादें पूरी करने वाले, हज़रत ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ का मज़ारे मुबारक उस वक़्त से लेकर आज तक हिन्दुस्तान समेत पूरी दुनिया का रुहानी मर्कज़ बना हुआ है। आपका उर्से मुबारक हर साल इस्लामी महीने के अनूसार 1 से 6 रजब तक मनाया जाता है, जिसमें हज़ारों लाखों की तादाद में अ़क़ीदतमंद शरीक होते हैं। उर्स के दौरान अजमेर शरीफ़ हिन्दु मुस्लिम एकता और मानवता की जीती जागती तस्वीर बन जाता है।