🟥जौनपुर

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के दिशा निर्देशन में संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, अमिहित, जौनपुर-2 के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ संजीत कुमार ने कहा किसान भाईयों विभिन्न प्रकार की फसलों के उगाने मे उपयोग किये जा रहे क्रान्तिक निवेशों की बहुत ज्यादा महंगे होने के कारण फसल उत्पादन की लागत दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है। जिसके कारण किसान भाईयों को फसलों से प्राप्त होने वाली शुद्ध आय पर नकारात्मक प्रभाव पडता है। किसान भाई प्राकृतिक खेती को अपनाकर वातावरण का संरक्षण एवं फसल का गुणवत्तायुक्त

 

उत्पादन करते हुए अपनी शुद्ध आय बढा सकते है। किसान भाईयों, जब हम फसलों में कीट प्रबंधन करते है, किसान भाईयों आप जानतें है बहुत महंगे रसायन का उपयोग करके फसलों को कीटों से बचाने का प्रयास जाता है, कभी-कभी महंगे से महंगे कीट नाशक का उपयोग भी हमारी फसलों को कीटों से सुरक्षित नही रख पाता उल्टा वातावरण प्रदूषण के साथ-साथ किसान की आर्थिक हानि भी होती है। किसान भाई प्रकृति के दिये गये उपहार; पेड-पौधों की पत्तियों, बीज, छाल, फल आदि का उपयोग करके प्राकृतिक कीटनाशी तैयार कर सकते है। कुछ प्राकृतिक कीट नाशियों को इस प्रकार से तैयार किया जा सकता है;

1. नीम की पत्तियों से कीटनाशी बनाना: नीम की पत्तियों से एक बाल्टी को भरा जाता है। बाल्टी को पानी से भरकर चार दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है। पांचवें दिन पत्तियों को अच्छी तरह से मिलाकर छान लिया जाता है। उसके बाद, छिड़काव करने से सूंण्डी, भृंग, पत्ती लपेटक, फनगा, दीमक को नियंत्रित किया जा सकता है।

2. नीम की फली से कीटनाशी बनाना: एक किलोग्राम नीम बीज को धूल के रूप में परिवर्तित किया जाता है। इस धूल को 20 लीटर पानी में डालकर मिला दिया जाता है। 10-12 घंटा पानी में भिगाने के बाद घोल को अच्छी तरह से मिलाकर छान लिया जाता है। छानने के बाद घोल में 10-15 ग्राम कपड़ा धोने वाला वाशिंग पाऊडर मिलाकर लकडी के डंडे से चलाये, उसके बाद छिड़काव किया जाना चाहिए। इसके छिड़काव से अनेक प्रकार के कीड़ों की रोकथाम की जा सकती है।

3. तम्बाकू (खैनी) के डंठल से कीटनाशी बनाना: एक किलोग्राम खैनी के डंठल को चूर्ण के रूप में बदलकर 10 लीटर पानी में गर्म करते हैं। आधा घंटा खौलने के बाद घोल को ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद घोल को छानकर उसमें वाशिंग पाऊडर को 2 ग्राम प्रति लीटर मिलाया जाता है। इस घोल में पानी मिलाकर कुल 80-100 लीटर बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके छिड़काव से श्वेतमक्खी, फली छेदक, तनाव छेदक, माहू आदि को नियंत्रित किया जा सकता है।

4. मिर्चा-लहसुन से कीटनाशी बनाना: तीन किलोग्राम हरा एवं तीता मिर्चा लेते हैं एवं उसके डंठल को हटाकर मिर्च को पीस देते हैं। पिसे हुए मिर्चा को 10 लीटर पानी में डालकर रातभर छोड़ देते हैं। सुबह में घोल को अच्छी तरह से मिलाकर छान दिया जाता है। दूसरे बर्तन में आधा किलोग्राम लहसुन को पीसकर 250 मिली. कैरासन तेल में डालकर रातभर के लिए छोड़ दिया जाता है। सुबह में अच्छी तरह मिलाकर घोल को छान लिया जाता है। सुबह में एक लीटर पानी में 75 ग्राम कपड़ा धोने वाला साबुन का घोल बनाते हैं। अब इन सब घोल को एक साथ मिलाकर 3-4 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। घोल को पुन: छान लेते हैं। इस घोल में पानी मिलाकर कुल 80 लीटर बना लेते हैं। उसके बाद फसलों पर छिड़काव करना चाहिए। इस कीटनाशी के उपयोग से चना के फलीछेदक एवं सरसो के माहू आदि को नियंत्रित किया जा सकता है।

5. गोमूत्र से कीटनाशी बनाना: पाँच किलोग्राम ताजा गोबर + 50 लीटर गोमूत्र + 5 लीटर पानी का घोल बनाकर मिटटी के बर्तन में रखकर मुंह को ढक्कन से ढंक दिया जाता है। चार दिनों तक सड़ने के बाद घोल को अच्छी तरह से मिलाकर छान लिया जाता है। घोल में 100 ग्राम चूना मिलाकर कुल घोल को 80 लीटर बनाकर फसलों पर छिड़काव किया जाता है। इस कीटनाशी के छिड़काव से तितली फलों पर अंडा नहीं डे पाती है एवं रोग के नियंत्रण में भी सहायता मिलती है। इस घोल के छिड़काव से पौधे हरे-भरे हो जाते है।

किसान भाईयों नीम से बने कीटनाशी बाजार में भी उपलब्ध है जैसे अचूक, निम्बोसिडिन, नीमगोल्ड, नीमोल इत्यादि, जिसके उपयोग से रस चूसनेवाले कीड़े एवं माहू को भी नियंत्रित किया जा सकता है।