🟥रिपोर्ट सत्येंद्र यादव

प्रदेश सरकार का समर्थन मूल्य लागत मूल्य से भी आधा

मथुरा – देशभर में आलू उत्पादन को लेकर चली आंधी तूफान से आलू का बाजार धड़ाम से गिरा तो इस से निकले सारे तीर किसानों के सीने में ऐसे धंसे कि कंही किसानों ने आलू की खड़ी फसल जोत दी तो कंही आलू को सड़कों पर फेंकता दिखा। आलू के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि खेत से आलू की बिक्री नहीं हुई, सीधा आलू शीतग्हों में भंडारण हुआ है। इस मौके का फायदा उठाते हुए शीत गृह स्वामियों ने भी किसानों को लोन देने से धीरे से हाथ खींच लिये। किसानों को लोन नहीं मिला उन्हें हर वर्ष दो सौ से ढाई सौ रुपए पैकेट के हिसाब से जो शीत ग्रह स्वामी लोन देते थे इस बार किसी किसान को 50 से 100 रुपये पैकेट दिया है। दरअसल किसान शीत

 

गृह स्वामियों से लोन लेकर आलू की खुदाई, बिनाई, लोडिंग आदि कराकर आलू शीतगृह तक पहुंचा देता था।
आलू किसानों का तो हाल यह है कि वह विचौलियों की सांठ-गांठ से ठगा जाता है। आलू किसानों को कभी भी फसल का सही भाव नहीं मिलता। बिचौलियों की अघोषित साठ गांठ ऐसी है कि जिसके कारण किसानों के आलू की उचित बोली लगती ही नहीं है, जिसके चलते किसानों का आलू सही रेट में नहीं बिक पाता। आलू की फ़सल में लाखों रुपये लगाकर भी किसान तबाह होते जा रहे हैं तो दूसरी ओर बिचौलियों मालामाल हो रहे हैं। दुनियाभर में एक किसान ही जिसे आलू बिकने के एक महीने बाद कोल्ड स्टोरेज मालिक उसके बैंक एकाउंट में रकम ट्रांसफर करता है।
यदि किसान को आलू बिकने के बाद तुरंत पैसा चाहिए, तो कोल्ड स्टोरेज मालिक एक निर्धारित राशि काटकर ही भुगतान करता है। या मैनेजर द्वारा किसानों से उस रकम की एक महीने की ब्याज बसूली की जाती है। कोल्ड स्टोरेज मालिक को लगता है कि आलू सस्ता है और किसान ने आलू की बोरी (पैकेट) के रखने के एवज में कोल्ड से लोन लिया हुआ है, तो कोल्ड स्टोरेज मालिक क़ई बार किसान को बिना बताए उसके आलू को ओने पौने दाम में बेच देता है। जिसके खिलाफ कोई कार्रवाही न तो कोल्ड स्टोरेज के मालिक पर होती है और न ही कोल्ड स्टोरेज के मैनेजर पर। यह सब व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा यदि किसान कोल्ड स्टोरेज से बारदाना उधार लेते हैं, तो उन्हें दो रुपये सैकड़ा यानि 24 फीसदी ब्याज पर बारदाना मिलता है।
केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट में 26 कृषि उत्पादों को एमएसपी देने का वायदा किया था। इसमें इन तीनों फसलों आलू, टमाटर और प्याज को शामिल किया गया था,
उत्तर प्रदेश सरकार ने आलू किसानों को राहत देने के लिए इस साल आलू का समर्थन मूल्य 650 रुपये क्विंटल घोषित किया है लेकिन 650 रुपये में किसानों लागत मूल्य भी नहीं निकलेगा। किसानों ने इस साल 11 सौ का डीएपी 1350 रुपये में और 7 सौ रुपये का पोटाश 17 सौ रुपये में डाला है। महंगा डीजल व मजदूरी के बाद किसानों की लागत पिछले साल से डेढ़ गुनी महंगी होने के कारण आलू की लागत 8 सौ से हजार रुपये बैठती है। इसलिए सरकार को कम से कम हजार रुपये समर्थन मूल्य तो रखना चाहिए था।
किसान कड़ी मेहनत के बाद एक एकड़ खेत में 200 से 240 बोरा आलू पैदा कर पाता है, जिसमें 50 से 52 किलोग्राम आलू होता है। यानि एक एकड़ खेत में 10-12 कुंटल से 13-14 कुंटल तक आलू पैदा होते हैं। इसमें भी हर साइज का आलू होता है, मोटे आलू, गुल्ला और किररी मतलब महीन आलू यानि तीन से चार साइज के आलू निकलते हैं, जिनके रेट भी अलग-अलग होते हैं।बाजार में सिर्फ मोटे आलू को लोग सब्जियों के लिए खरीदते हैं। गुल्ला और महीन आलू तो एक-डेढ़ रुपए किलो भी नहीं बिक पाता। अगर महंगाई हो, तो उसका भाव 10 से 15 रुपए प्रति किलो ही बिकता है। वह भी किसान के पास से निकल चुका होता है। किसानों को इसका कोई फायदा नहीं मिलता। अगर किसी किसान ने थोड़ी-बहुत फसल रोक ली हो तो उसे जरूरतें इतनी मार देती हैं कि थोड़े ही समय से पहले ही उसे बेचने के लिए मजबूर हो जाता है, जब ढंग से बाजार में भाव चढ़े भी नहीं होते हैं। और अगर चढ़ भी जाएं, तो उसे व्यापारियों की तरह फायदा कभी नहीं मिल पाता। या तो वह बाजार में हर रोज 10, 20, 50 किलो उसे अपने हाथों से बेचे। सही बात तो यह है कि छोटे और मंझोले किसानों के पास तो वह फसल भी पूरा नहीं बचती, जिसे वो अपने और अपने परिवार का पेट भरने के लिए रखते हैं। कहने का मतलब यह है कि किसानों की मेहनत का फायदा व्यापारी और तमाम अन्य बिचौलिए उठाते हैं और किसान बेचारा कड़ी मेहनत करके भी फटेहाल ही रहता है।
आगरा के खंदौली को आलू की केपिटल कहा जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा ख़राब हालात आलू किसानों की यही है। आलू के घाटे से किसानों को शहरी लोगों जैसी बीमारियां जैसे कार्डिक डिसीज, हाइपरटेंशन, सुगर, डिप्रेशन मिलना आम हो गया है। कई युवा किसानो को, जिनको कोलेस्ट्रॉल बढ़ने के कारण नशों में छल्ले पड़ गए हैं। घाटे से हार्ट अटैक हो कर मर गए हैं।
बहरहाल, उम्मीद है कि आलू किसानों की इन समस्याओं को न सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार, बल्कि आलू की पैदावार करने वाले बाकी प्रदेशों की सरकारें और केंद्र सरकार भी अपने संज्ञान में लेते हुए उनकी समस्याओं का हल करने का काम करेंगी। आज के आधुनिक युग में जब मजदूर को भी 500 से 700 रुपए रोजाना की मजदूरी मिलती है और केंद्र की सरकार अमृत महोत्सव मनाने को कह रही है और दावा भी कर रही है कि उसके 9 साल के शासनकाल में हर देशवासी की आमदनी दोगुनी से ज्यादा हो चुकी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि वह 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देंगे। 2022 गुजर गया और इस बार के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दावा किया है कि देश के हर नागरिक की आय उनकी सरकार के कार्यकाल में दोगुनी से ज्यादा हो चुकी है। ऐसे में भी अगर देश में किसान अपनी जायज मांगों के लिए सरकार से फरियाद कर रहा है, तमाम किसान घाटे और कर्ज के कारण आत्महत्या कर रहे हैं, तो यह बहुत शर्मनाक बात है। हमारे कृषि प्रधान देश में 21वीं सदी में किसानों का यह हाल किसी के लिए भी गौरव या गरिमा की बात नहीं है।