गोरखपुर। हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की याद में रहमतनगर, सूफीहाता, जमुनहिया बाग, अलहदादपुर, तुर्कमानपुर, चक्शा हुसैन, निज़ामपुर, व शाहिदाबाद जलसा-ए-ग़ौसलुवरा हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से जलसों का आगाज़ हुआ। नात व मनकबत पेश की गई। जलसा-ए-ग़ौसुलवरा के जरिए मुस्लिम समाज की तमाम समस्याओं व उसके समाधान पर विचार विमर्श किया जा रहा है। तालीम के प्रति जागरूकता की चलाई जा रही है मुहीम।

रहमतनगर के जलसे में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि जब तक हम खुद नहीं बदलेंगे तब तक हमारे हालात नहीं बदलने वाले। लिहाजा हमें रौशनी के अज़ीम मरकज़ पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ात से खुद को जोड़ना होगा। सहाबा-ए-किराम वाला दीनी ज़ज़्बा पैदा करना होगा। क़ुरआन-ए-पाक व हदीस-ए-पाक पर मुकम्मल अमल करना होगा। इल्म हासिल करना होगा। बुराईयों से दूरी अख़्तियार करनी होगी। दूसरों के दुख दर्द में शरीक होना होगा। सुन्नत-ए-नबवी पर चलना होगा। फर्ज की वक्तों पर अदाएगी करनी होगी। तब जाकर हमारा मुस्तकबिल रौशन होगा।

निज़ामपुर के जलसे में मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी (नायब क़ाज़ी) ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम की तालीम में प्यार, मोहब्बत, भाईचारगी व अदब है। दीन-ए-इस्लाम की सभी तालीम सिर्फ और सिर्फ इंसानियत की भलाई के लिए है। इंसानियत के हित में जितना भी तरीका और तालीम दीन-ए-इस्लाम में दी गई वो दुनिया के किसी भी धर्म में नहीं मिलेगी। दीन-ए-इस्लाम की तालीम और दीन-ए-इस्लाम की मोहब्बत लोगों के दिलों में रचती बसती जा रही और लोग दीन-ए-इस्लाम अपनाते जा रहे हैं। इस्लामी शरीअत मुसलमानों की जान है।

अलहदादपुर के जलसे में अल जामियतुल अशरफिया मुबारकपुर के मौलाना मो. मसऊद अहमद बरकाती व पीरे तरीक़त मो. अब्दुल लतीफ़ नूरी ने कहा कि अल्लाह की इबादत करें। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बताए रास्ते पर चलें। मस्जिदों को अपने सजदों से आबाद करें। बुराई, नशा, फिजूल बातों से दूर रहें। पैग़ंबर-ए-आज़म की तालीमात पर अमल कर दुनिया वालों के लिए बेहतरीन नमूना बनें। इससे पैग़ंबर-ए-आज़म खुश होंगे। पैग़ंबर-ए-आज़म हमारे आदर्श हैं। जिन कामों से उन्होंने मना किया है मुसलमान उससे दूर रहें। वह काम करें जिसे पैग़ंबर-ए-आज़म ने पसंद फरमाया है। दीन-ए-इस्लाम का क़ानून, पैग़ंबर-ए-आज़म की शिक्षा व जीवन शैली के जरिए ही पूरी दुनिया में अमन मुमकिन है। इल्म हमारा सरमाया है। इसकी हिफ़ाजत करें। एक वक्त का खाना छोड़ना पड़े तो भी बच्चों को तालीम जरूर दिलाएं।

तुर्कमानपुर के जलसे में मौलाना मोहम्मद असलम रज़वी ने कहा कि अल्लाह इल्म-ए-दीन हासिल करने वालों से बहुत खुश होता है। इसलिए हम सबको चाहिए कि इल्म-ए-दीन खुद भी हासिल करें और घर वालों को भी सिखाएं। दीन-ए-इस्लाम ने अमानतदारी, वादा पूरा करना, झूठ से बचने, दूसरे के हक़ का ख्याल, मां-बाप की ख़िदमत, उस्ताद की फरमाबरदारी का पैग़ाम दिया।

जमुनहिया बाग के जलसे में मौलाना अनवर अहमद तनवीरी ने कहा कि पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम व औलिया किराम की ज़िंदगी का हर गोशा हमारे सामने है उनकी ज़िंदगी का हर लम्हा किताबों में दर्ज है। दीन-ए-इस्लाम के पैग़ाम पर अमल करते हुए कामयाब इंसान बनेें।

सूफीहाता के जलसे में मुफ़्ती मुनव्वर रज़ा रज़वी ने कहा कि हम अपना सारा वक्त किसी न किसी काम में लगा देते हैं, लेकिन हमारा सबसे अच्छा और कीमती वक्त वही है जो अल्लाह की इबादत में गुजर जाए। क्योंकि जिक्रे इलाही ज़िदंगी है। मुसलमान सब्र व नमाज़ से मदद तलब करें। अल्लाह हमारे साथ है। परेशानियों का डट कर सामना करें। खुद भी इल्म हासिल करें और दूसरों को इल्म सिखाएं।

शाहिदाबाद के जलसे में मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन रज़वी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम किसी मजलूम पर हाथ उठाने की अनुमति नहीं देता। दीन-ए-इस्लाम इंसानियत की दावत देता है।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो शांति की दुआ मांगी गई। जलसे में मुफ़्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी (मुफ़्ती-ए-शहर), कारी शराफ़त हुसैन क़ादरी, मुफ़्ती मो. शमीम अमजदी, मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही, मो. अफरोज क़ादरी, मौलाना अली अहमद, नूर मोहम्मद दानिश, जलालुद्दीन, कारी जमील मिस्बाही, अली गज़नफर शाह, अलाउद्दीन निज़ामी, मो. शहनवाज़, जलालुद्दीन क़ादरी, मो. फैज़, मो. सैफ़, हाफ़िज़ अमन, महबूब आलम, ज़ैद चिंटू, अमान, गुड्डू, हाफ़िज़ मो. शाकिब, हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी, दानिश रज़ा अशरफ़ी, कारी सरफुद्दीन, मौलाना मकबूल अहमद, कारी अंसारुल हक, मौलाना गुलाम दस्तगीर, हाफ़िज़ असलम, मौलाना शाह आलम, मो. आतिफ आदि ने शिरकत की।