अब्दुल गफ्फार खान की रिपोर्ट
गोरखपुर(ब्रह्मपुर)
आस्था व श्रद्धा का केंद्र निंबेश्वर नाथ शिव मंदिर
गोरखपुर से 35 किमी दूर ग्रामपंचायत ब्रह्मपुर मे स्थित है।गोरखपुर से चौरी चौरा तथा नई बाजार होते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।आने जाने के लिए साधन हमेशा उपलब्ध रहता है।
पूर्व में यह पूरा क्षेत्र जंगल ही जंगल था।जनश्रुति के अनुसार उक्त स्थान पर नीम के पेड़ की बहुलता थी।उक्त स्थान पर एक ऋषि आए तथा नीम के पेड़ के नीचे कुंड
बनाकर तपस्या में लीन हो गए।नीम की पत्ती ही उनकी जीवन दायनी रही।कालांतर में उक्त ऋषि का नाम निम्ब ऋषि तथा उनकी आराधना स्थली का नाम निम्बाश्रम एवम वहां स्थापित शिव जी को निंबेश्वर नाथ के नाम से जाना गया।यह भी कहा गया है कि कोलाहल नाम के दैत्य का युद्ध देवताओं से चल रहा था।युद्ध में परास्त देवता गण वेश बदल कर निम्बाश्रम गए तथा भगवान शिव के आराधना में लीन हो गए।उनके तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए तथा देवताओं से कहे कि आप लोग इसी आश्रम में भगवान सूर्य की उपासना करे तभी विजय मिलेगी।सभी देवता भगवान शिव के कहे अनुसार
निम्न कुंड में स्नान कर सूर्य की उपासना में लीन हो गए।तथा उन्हें विजय मिली।आगे चलकर इसे निंबतीर्थ की ख्याति मिली।पुराणों में यह भी उल्लेख है कि एक बार शिव जी ने पार्वती को बताया कि निम्ब तीर्थ जाने से सभी देवताओं के दर्शन तथा पूजन अर्चन का लाभ मिलता है।ऐसी मान्यता है कि द्वादस मंत्रों के पाठ करते हुए जो निंबेश्वर नाथ व सूर्य की उपासना करेगा उसे सभी मनोवांछित फलों को प्राप्ति होगी।उद्धरणों में यह भी कहा गया है कि निंबकुंड में स्नान करने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।
सावन माह के प्रत्येक सोमवार को सावन महोत्सव मनाया जाता है।सैकड़ों की संख्या में पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालु आते है।
श्रद्धालुओं की भीड़ के मद्देनजर स्थानीय श्रद्धालु भीड़ नियंत्रित करते है।
ज्ञातव्य है कि पर्यटन विभाग द्वारा दो बर्ष पहले पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है।
यह रुद्रपुर के दुग्धेश्वर नाथ मंदिर से चार कोस उत्तर पश्चिम में स्थित है।ब्रह्मपुर तथा मिठाबेल का इतिहास उक्त मंदिर से जुड़ा है।