🛑देवरिया
ग्रामीण परिवेश व स्वस्थ्य जीवन मनुष्य के साथ पशुओं के लिए अत्यंत हितकर अलसी(तीसी )के खली व तेल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

बदलते जीवन शैली व कृषि कार्यो में कम हो रही रुचि व परिस्थितयों के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं विकराल होती जा रही है।
परम्परागत व लुप्त हो रहे बीज,संरक्षण की दिशा में कार्यरत, अनेक राष्ट्रीय मंचो पर सम्मानित, मल्टी लेयर कृषि से किसानों की आर्थिक समृद्धि के कीर्तिमान स्थापित कर रहे आकाश चौरसिया सागर, मध्यप्रदेश ने किसान भाईयों से तीसी की खेती से जुड़ कर स्वयं समृद्ध होने के साथ , समाज को भी स्वस्थ्य बनाने में सहयोग का आह्वान किया।

सामान्य जानकारी – अलसी ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड से भरपूर होता है जो शरीर का ब्लडप्रेशर, कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल में रखता है साथ ही त्वचा को भी अच्छा रखता है ! इसमे विटामिन , प्रोटीन और फ़ाइबर भी अधिक होता है ख़ास कर माताओ बहनों के लिये बेहद फ़ायदेमंद है ।

भूमि का चयन व उपचार – यह फसल भारी मिट्टी और दो मट मिट्टी में होने वाली फसल है ख़ास बुंदेलखंड की भूमि इस फ़सल के लिए उपयुक्त है , भूमि के उपचार हेतु सामान्य पी एच की मिट्टी में 100 किलो चूने की डस्ट और 50 किलो नीम की खली का पॉउडर (या 200 किलो ग्राम नीम की पत्तियाँ ) प्रति एकड़ के दर से छिड़काव कर मिट्टी में मिला देना होता है फिर 15 दिन के बाद फसल की बुवाई करते है ।
ऐसा करने से मृदा जन्य रोग फसल को प्रभावित नहीं करते है ।

बीज की मात्रा व उपचार – अलसी प्रति एकड़ 12 से 14 किलो प्रति एकड़ बो सकते है और बीच उपचार हेतू किसी भी नमी युक्त फ़ार्मूले से ना करे क्योंकि इसका तेलिये नेचर होने के कारण आपस में बीच चिपक जाते है इसलिये इसके उपचार हेतू देशी गाय के गोबर के कंडे की राख से करते है एक एकड़ के बीजों को 10 किलो सूखी राख में मिक्स करके कम से कम तीन घंटे के लिये रखे और राख के साथ बो दे अधिकतम एक रात्रि बीजों को राख में रखे ध्यान रखे बीजो को उपचार करने से पहले उनको तीन घंटे तक बीजों की सन थैरेपी करे अर्थात् तीन घंटे खुली धूप में सुखाए फिर बीज उपचार करे ।

समय व फसल की अवधि – यह फसल रवी सीजन की है इसे 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच बोना सर्वोत्तम होता है ।अलसी की फसल120दिन की है।

पानी की आवश्यकता – अलसी की फसल में केवल दो पानी पर्याप्त होते है यह बहुत कम पानी में होने वाली फसल है । यह असिंचित क्षेत्र में होने वाली फ़सल है ।

रोग व खरपतवार प्रबंधन – इसमे रस्ट (फफूँद) रोग एवं उकठा रोग आने की संभावना ज़्यादा रहती है इसके उपचार के लिये चुना 200 ग्राम और देशी गाय की ताजी छाछ 2 लीटर और 13 लीटर पानी मिलाकर स्प्रे करने से रस्ट से राहत मिलती है और भूमि उपचार से ज़मीन जनित रोग नियंत्रित रहते है ! इसके अलावा इल्ली और अन्य कीटों के नियंत्रण हेतू 2 लीटर छाछ 200 ग्राम लाल तीखी मिर्ची पॉउडर और 100 मिली नीम का तेल मिलाकर स्प्रे करना चाहिये ।
खरपतवार प्रबंधन हेतु खेत में पहले नमी रखे और एक सप्ताह तक छोड़े फिर जुताई कर फसल बोए इससें उगने वाले खरपतवार पहले ही उग आते है और फसल ऊपर निकल जाती है ।

उत्पादन व लाभ – अलसी का उत्पादन सामान्य स्थिति में 6 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ होता है । अलसी की फसल से 60 से 70 हज़ार रू तक प्रति एकड़ मुनाफ़ा लिया जा सकता है यह बहुत कम लागत , कम पानी वा कम मेंटेनेंस में होने वाली फसल है । अलसी का तेल निकाल कर या इसका अन्य प्रोसेस कर अनेक उत्पाद बना कर आय में वृद्धि की जा सकती है ।
यह फसल असिचिंत भूमि के किसानों व हल्की मिट्टी के किसानों के लिये बहुत ही उपयुक्त है ।
शिवम सेवा संस्थान रूद्रपुर, देवरिया के प्रबंधक/सचिव मृत्युंजय प्रसाद विशारद ने किसान भाईयो को तिलहन व दलहन के उत्पादन की ओर प्रयास करने की अपील की है।

प्रेषक मृत्युंजय विशारद