डॉ शशिकांत सुमनमुंगेर जिले के धरहरा प्रखंड के अमझर कोल काली को पर्यटन स्थल बनाए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। जिले में कई देवी मंदिर ऐसे हैं। जहां श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। रामचन्द्रपुर बस्ती से सटे अमझर पहाड़ी की तराई में कोल काली मां का मंदिर अवस्थित है। करीब 301 साल से भी ज्यादा पुराने इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है। यहां की मान्यता के कारण दूसरे जिलों से भी लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं। शारदीय नवरात्र में यहां पर भीड़ होती है। साथ ही अन्य महीनों में भी बड़ी संख्या में माता के दर्शन करने लोग पहुंचते हैं। मंदिर पुरानी वास्तुकला के आधार पर बना है। हालांकि काली देवी के मंदिर के आगे कुछ जीर्णोद्वार जरूर कराया गया है। लोगों की मान्यता है कि निर्धन से लेकर धनवान तक की मुरादें पूरी होती है। जिस जगह पर यह मंदिर है वहां पर पहाड़ और पेड़ों का बाग है। संकीर्ण रास्ता होने के बाद भी लोग माता के दर्शन को आते हैं।

मंदिर में लोग जो मन्नतें मांगते हैं वह पूरी हो जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि जिन नि:संतानों की गोद भर जाती हैं। वह यहां पर बच्चों का मुंडन कराते हैं। नवविवाहित जोड़े शादी के बाद देवी का आशीर्वाद लेने जरूर आते हैं। धर्मप्रेमियों ने कहा कि माता अमझर कोल काली माता के दरबार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं गया। यहां पर संकल्प लेकर नियम से पूजा करें तो उसके माता बड़े से बड़ा संकट दूर करती हैं।

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दरबार का रास्ता हुआ चकाचक, उमडती है भीड़

अमझर कोल काली मंदिर पहुंचने का रास्ता पूर्व में काफी संकीर्ण और दुर्गम है। पहाड़ का सुनसान खतरनाक रास्ता होने के बाद भी भक्त निíभक होकर पहुंचते थे। लेकिन ग्रामीणों की उमडती भीड़ व उनकी महिमा को देखते हुए पूर्व ग्रामीण कार्य विभाग शैलेश कुमार के प्रयास से सड़क का पीसीसी करण किया है। जिससे श्रद्धालुओं को आने जाने में हो रही कठिनाइयों से निजात मिली है। ट्रस्ट के सचिव डॉ बहादुर साह कहते हैं कि पौराणिक अमझर कोल काली माता मंदिर के प्रति आसपास के इलाकों में भक्तों की अपार आस्था है। जिस वजह से सुनसान व नक्सली क्षेत्र होने के बावजूद भयमुक्त होकर भक्त यहां पूजा पाठ के लिए पहुंचते हैं।

जमालपुर शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर कोल काली मंदिर
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योग के लिए विश्व प्रसिद्ध, धार्मिक क्षेत्र में पूरे देश में प्रसिद्ध व दानवीर कर्ण की भूमि बिहार राज्य के मुंगेर के जमालपुर में एशिया का रेलवे का पहला कारखाना स्थापित जमालपुर पहाड़ी के गोद में रमणीय, दर्शनीय और मनोरम स्थल पर कौवा कोल काली स्थान अमझर में स्थित है । यह जमालपुर से पूरब -दक्षिण 5 किलोमीटर पर है। लक्ष्मणपुर से 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जमालपुर -धरहरा से लक्ष्मणपुर तक जाने का सुगम सड़क है। लक्ष्मणपुर पहुंचने के उपरांत 2 किलोमीटर का सड़क मार्ग तय करना होता है। इस मार्ग से साइकिल, मोटर साइकिल,ई-रिक्शा,व सुमो आदि गाड़ी जा सकता है। इस 2 किलोमीटर क्षेत्र से गुजरने का सुखद एहसास होता है बिल्कुल पहाड़ी के किनारे- किनारे, ऐसा आपको लगेगा जैसे कश्मीर से वैष्णो देवी जाने में अनुभव होता है । यदि पैदल जाया जाए तो इस प्राकृतिक सौन्दर्य को आप अपनी आखों में कैद करना चाहेंगे। खाली पांव गए तो ऐक्युप्रेशर से जो लाभ मिलता है।

चमत्कार वट वृक्ष में भगवान की है कई आकृतियां
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कौआ कोल काली स्थान तीन ओर पहाड़ियों से घिरा है। पूरब, उत्त्तर की पहाड़ी हरियाली से आच्छादित है, पश्चिम की पहाड़ी बिलकुल खड़ी दीवाल की तरह दिखती है और यहां नाम मात्र की हरियाली दिखती है।दक्षिण की ओर से प्रवेश किया जाता है। और यह भाग विशाल मैदान जैसा है लगभग मुंगेर के पोलो ग्राउंड इतना बड़ा, सर्वत्र हरियाली है जो, आँखों को बड़ा सकून देता है। कौआ कोल काली मंदिर वास्तव में एक विशाल वट वृक्ष का अंश है। यह वृक्ष लगभग 350 वर्ष पुराना है। लगभग 25-30 फूट की त्रिज्या में यह वृक्ष फैला है। इससे अनेक शाखाएँ निकलकर जमीन में समा गयी है । लगता है कि ये छत का स्तम्भ है। इस वृक्ष की शाखाओं में विभिन्न देवी-देवताओं की आकृति बनी है। जिसमें काली मां की भी स्पष्ट आकृति है। नाग देवता की आकृति है। मां काली एक विशाल पांव , गणेश जी , धरती माँ आदि की आकृति है। यह स्थल मंच जैसा है। यहां के आस-पास के 15 गाँवों के लोग का श्रद्धा का केन्द्र है। प्रत्येक मंगलवार को सैकड़ों की संख्या में लोग यहां आते हैं। यहां खिचड़ी का प्रसाद बांटा जाता है। दानदाता पहले से जिम्मेदारी ले लेते हैं। यदि आप खिचड़ी भोज में दान देना चाहे तो छ:माह से साल भर में आपका नंबंर आएगा। यह तथ्य स्थानीय लोगों के अत्यंत श्रद्धा को अभिव्यक्त करता है। यहां एक कुंआ है, जिसके जल में गजब की पाचन क्षमता है।पास एक और कुंआ है। जहां से आसपास के लोग दिनभर पानी ले जाते हैं।इस पानी से अनेक लोग को रोजगार मिला है।
भक्तगण श्रमदान कर एक बगीचा का निर्माण किया है। जहां विभिन्न प्रकार के पुष्पों के लहलहाते पौधें हैं। इस काली मंदिर से जुड़ी अनेकानेक गाथाएँ हैं। यहां इनकी भक्ति और श्रद्धा देखते बनती है। यह मुंगेर के लिए शिमला व नैनिताल जैसा है। शहर के कुछ दूरी पर स्थित यह मनोरम स्थल है यहां फिल्मों की शूटिंग हो सकती है।