इस्लाम धर्म के पहले मुअज्जिन हज़रत बिलाल का मनाया गया उर्

🟥गोरखपुर। मंगलवार को इस्लाम धर्म के पहले मुअज्जिन (अज़ान देने वाले) सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना बिलाल हबशी रदियल्लाहु अन्हु के उर्स पर क़ुरआन ख़्वानी व फातिहा ख़्वानी हुई। हज़रत बिलाल को शिद्दत से याद कर अकीदत का नज़राना पेश किया गया। मकतब इस्लामियात व मदरसा रजा-ए-मुस्तफा तुर्कमानपुर में अज़ान प्रतियोगिता हुई। बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को उलमा किराम ने ईनाम से नवाजा।

मकतब की छात्रा मुस्कान परवीन ने अज़ान देने की विशेषताएं बताई। मो. फरहान, अलहम खान, मेराज हुसैन, मो. हसनैन, अली अकबर, तालिब हुसैन, अंजुम आरा, आतिफ ने अज़ान देकर अनुवाद बताया। अबू तलहा ने अज़ान के अहम मसाइल बताए। छात्रा खुशी नूर ने अज़ान का जवाब देने की फजीलत और शिफा खातून व कनीज़ फातिमा ने अज़ान व इकामत का जवाब देने का तरीका बताया। छात्रा नूर सबा ने हजरत बिलाल की जिंदगी पर रोशनी डाली।

मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि हज़रत बिलाल पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथियों में से थे। आप दीन-ए-इस्लाम के पहले मुअज्जिन हैं। आपका जन्म मक्का शरीफ में हुआ। आपके माता-पिता हबशा (अबीसीनिया/अफ्रीका) के रहने वाले थे। आप गुलाम थे और आपका शुमार दीन-ए-इस्लाम में दाखिल होने वाले अव्वलीन सहाबा किराम में होता है। आपने तीस साल की उम्र में दीन-ए-इस्लाम कबूल किया। आपके मालिक को जब इसका पता चला तो उसने आप पर बहुत जुल्म ढ़ाया। आपको गर्म रेत पर लिटाकर आपके ऊपर बड़ा भारी पत्थर रखा जाता था। हज़रत बिलाल ने हर तकलीफ बर्दाश्त की मगर इस्लाम और दामने मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को न छोड़ा और इश्क-ए-मुस्तफा का सबूत दिया। पैग़ंबरे इस्लाम के हुक्म पर हज़रत सैयदना अबू बक़्र सिद्दीक़ ने भारी कीमत देकर आपको गुलामी से आज़ाद करवाया। हज़रत बिलाल बहुत इबादतगुजार थे।

कारी मो. अनस रजवी ने कहा कि हज़रत बिलाल ने जंगे बद्र और दूसरी तमाम जंगों में शिरकत की। पैग़ंबरे इस्लाम ने हज़रत बिलाल को मुअज्जिन मुकर्रर किया। आप हमेशा पैग़ंबरे इस्लाम के साथ रहते थे। जब मक्का फतह हुआ तो आपने काबा शरीफ पर अज़ान दी। पैग़ंबरे इस्लाम ने आपको अपना खजांची मुकर्रर किया था। हज़रत बिलाल हमेशा वुजू करते तो दो रकात नफ्ल नमाज़ तहीयतुल वुजू अदा करते थे। जब वुजू टूट जाता तो फौरन वुजू कर लिया करते थे। पैग़ंबरे इस्लाम के पर्दा फरमाने के बाद हज़रत सैयदना अबू बक़्र सिद्दीक़ के कहने पर आप मदीना शरीफ में ठहरे रहे लेकिन हज़रत सैयदना अबू बक़्र के इंतकाल के बाद आप शाम (सीरिया) की तरफ रवाना हो गए। आपका इंतकाल 20 मुहर्रम को हुआ। आपका मजार दमिश़्क सीरिया में है।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर तरक्की, खुशहाली, भाईचारा व अमनो अमान की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। इस मौके पर हाफिज आमिर हुसैन निजामी, मौलाना महमूद रजा कादरी, मौलाना दानिश रजा अशरफी, हाफिज सैफ अली, हाफिज मो. अशरफ आदि मौजूद रहे।