✍️वीरेंद्र सिंह

🛑तिलोई/अमेठी

इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत मोहर्रम महीने से होती है यानी कि मोहर्रम का महीना इस्लामी साल का पहला महीना होता है। इसे हिजरी भी कहा जाता है हिजरी सन की शुरुआत इसी महीने से होती है । इमाम हुसैन और उनके फॉलोअर्स साथी की शहादत की याद में दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय के लोग मोहर्रम मनाते हैं । वही आपको बता दें कि इमाम हुसैन पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे थे जो कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे इसी शहादत को लेकर आज रायबरेली के लालगंज में मोहर्रम को बड़ी ही अकीदत के साथ मनाया जा रहा है । कहीं लोग लंगर बांट रहे हैं तो कहीं गरीबों को खाना खिलाया जा रहे हैं । और कही कही तो लोग शरबत का स्टाल लगाकर , शरबत को वितरण कर रहे है । इसी कड़ी में लालगंज कस्बे के घोसियाना और चिकमड़ी मोहल्ले में ताजिया रखी जाती है और लोग वही पर कुरान खानी, मिलाद, शहादत नामा, पढ़कर इबादत करते हैं । लालगंज के मेन रोड सराफा मंडी से होते हुए दसवीं मोहर्रम की शाम ताजिया को चिकमंडी में सुपुर्द ए खाक कर दिया जाता है । वही चिकमण्डी की ताजिया मंडी समिति में बने कर्बला में सुपुर्द ए खाक किया जाता है । वही बछरावा के ताजियादार रज्जू मास्टर ने बताया कि सीरिया में एक बादशाह था जिसका नाम यजीद था जिसने खुद को खलीफा घोषित कर लिया था और इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था तब इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया इससे नाराज होकर यजीद ने एक फरमान वलीद को भेजा और उसमें कहा कि तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने के लिए कहो अगर वह नहीं माने तो उसका सर कलम कर दो मोहर्रम महीने की 2 तारीख 61 हिजरी को हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला गए हुए थे 9 तारीख तक यजीद की सेना के साथ समझाइश देते रहें और फिर यजीद ने बड़ी ही चालाकी से हुसैन के 72 साथी को बड़े ही लाव लश्कर के साथ मार दिया था और उसके बाद दसवीं हिजरी के दिन उनके 6 महीने के बेटे अली असगर को भी मार डाला । इसके बाद भूखे, प्यासे हजरत इमाम हुसैन का भी कत्ल कर दिया गया था उन्हीं की याद में मुस्लिम समुदाय के लोग इबादत करते है और गम मानते है । इस मौके पर राम जाने,पप्पू, नानू, अबरार, अजल,सलमान ,असरफ,चांद बाबू, मुख्तार अहमद,शाहरुख, सोहेल, मोइन, इंतिसार,गुड्डू,सलीम, मो.समसुद्दीन, मो .जसीम, सोनू (अयाज) यमन, नदीम, यमन, अनम,मोहम्मद कैफ, अहद, शाद,परवेज, अफरोज, आदि लोग मौजूद रहे ।।